संजय गुप्ता, INDORE. भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, दोषियों को छोड़ेंगे नहीं। यह बातें इंदौर नगर निगम का फर्जी बिल घोटाला सामने आने के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव के साथ ही सभी नेता कर रहे हैं। लेकिन वार्ड 79 में सामने आए 52 लाख के घोटाले को लेकर मामला केवल अधिकारियों को सस्पेंड करने और फर्म को ब्लैकलिस्ट करने के साथ ही खत्म कर दिया गया। जबकि निगम की जांच में यह मामला साबित हुआ है तो फिर सवाल यही जोनल अधिकारी, उपयंत्री के साथ ही ठेकेदार पर 420 सहित अन्य धाराओं में केस क्यों नहीं कराया गया? उधर भिक्षुक प्रोजेक्ट जो हर साल 3.61 करोड़ के बजट का है इसे लेकर भी निगम के ही अधिकारी ने भुगतान के लिए मानसिक प्रताड़ित कर दबाव डालने की शिकायत की है।
इन अधिकारियों और ठेकेदार को बचाया
झोन 14 के झोनल अधिकारी सतीश गुप्ता पर आरोप है कि वार्ड 79 में सीमेंट कांक्रीट की सड़क बनाने के काम को सत्यापित काम से ज्यादा बताया गया और लागत राशि से अधिक 52.61 लाख रुपए का अधिक भुगतान प्रस्तावित किया गया। फर्म सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ सांठगांठ कर निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाई गई। उपयंत्री कमलेश शर्मा ने भी मेजरमेंट बुक में अधिक काम दर्ज कर अधिक राशि का भुगतान प्रस्तावित किया। इसी तरह उपयंत्री लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने इसी वार्ड में उद्यान विभाग की दीवार संबंधित काम के लिए गलत तरह से देयक राशि 13.34 लाख रुपए का देयक प्रमाणित किया गया। इसी में प्रभारी मस्टर उपयंत्री हरीश कारपेंटर की भी भूमिका थी।
नगर निगम ने क्या किया
निगम ने झोनल अधिकारी गुप्ता और उपयंत्री वाजपेयी को सस्पेंड कर विभागीय जांच बैठाई और ट्रेचिंग ग्राउंड किया। उपयंत्री कमलेश शर्मा और उपंयत्री हरीश कारपेंटर के भुगतान पर रोक लगाई और हाजरी मुक्त किया।
यह धाराएं बनती है इनके अपराध पर
इसके पहले निगम ने फर्जी बिल घोटाले में पुलिस में संबंधितों पर एफआईआर कराई है। इसमें धारा 420, 467, 468, 471, 474, 120 बी और 34 लगाई गई है। यही धाराएं इन सभी पर भी बनती है।
- 52 लाख अधिक भुगतान प्राप्त करने के लिए गुप्ता, वाजेपयी और सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर ने मिलकर कूटरचित दस्तावेज बनाए फर्जी मेजरमेंट बुक बनाई है, इसलिए सीधे धारा 467, 468 बनती है
- इन दस्तावेजों का उपयोग निगम से भुगतान प्राप्त करने के लिए किया जा रहा था। ऐसे में धारा 471 व 474 का मामला बनता है।
- वहीं इस भ्रष्टाचार के मामले में सभी मिले हुए थे इसलिए धारा 120बी बनती है।
- वहीं यह निगम के साथ धोखाधड़ी करने की कोशिश थी, इसलिए धारा 420 बनती है।
मामला निगम ने पुलिस को ही नहीं सौंपा
लेकिन निगम ने तो मामला पुलिस को ही नहीं सौंपा और विभागीय कार्रवाई करते हुए मामला इतिश्री कर ली। फिर सवाल यह उठ रहा है कि जो काम बाकी फर्जी फर्म और निगम के अधिकारियों, इंजीनियर ने किया, वहीं तो इन्होंने भी किया। इसके बचाव में एक ही तर्क दिया जा रहा था कि भुगतान हुआ नहीं, वह रोक दिया गया। लेकिन इसमें कूटरचित दस्तावेज बनाए गए, अधिक भुगतान लेने की कोशिश की गई। यह सभी तो अपराध कारित हो चुके थे।
इधर... भिक्षुक प्रोजेक्ट में फर्जी भुगतान के दबाव की शिकायत
निगर निगम में अब भिक्षुक प्रोजेक्ट में भी करोड़ों के घोटाले की आशंका तेज हो गई है। सिटी मिशन मैनेजर एनयूएलएम नगर पालिक निगम किसना बनाईत ने इसे लेकर महापौर से लेकर कलेक्टर, अपर आयुक्त सहित अन्य अधिकारियों को पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि भिक्षुक मुक्त पायलट प्रोजेक्ट के भुगतान के लिए मानसिक दबाव डाला जा रहा है। देयकों का भुगतान करने के लिए दबाव में काम नहीं करने पर भ्रष्टाचार में फंसाने की धमकियां देते हुए मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है। इन देयकों का विभाग से गठित ऑडिट मॉनीटरिंग समिति द्वारा सूक्ष्म परीक्षण किया जा रहा है। इसके बाद भी भुगतान देना संभव होगा। यह भी पत्र में कि इस प्रोजेक्ट के लिए परम पूज्य रक्षक आदिनाथ वेलफेयर एंड एजुकेशनल सोसायटी इंदौर को संचालन दिया गया था और इसके लिए 3.61 करोड़ प्रति साल का बजट था। संस्था अध्यक्ष रूपाली जैन व सोसायटी के द्वारा पेश निगम से हुए अनुबंध और शर्तों के अनुसार कार्य नही करते हुए विसंगतिपूर्ण देयकर और दस्तावेज पेश किए गए हैं। इसकी जांच जरूरी है।
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