BHOPAL. धार की ऐतिहासिक भोजशाला कमाल मौला मस्जिद में सर्वे में गौतम बुद्ध की मूर्ति मिलने से विवादित इमारत के मालिकाना हक को लेकर हिंदू, मुस्लिम और अब बौद्ध समाज भी दावा पेश कर रहा है। दरअसल धार की भोजशाला में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) टीम ने 49वें दिन सर्वे किया ( Bhojshala ASI Survey )। टीम में 14 अधिकारी, कर्मचारी, 24 मजदूरों और पक्षकार सर्वे करने पहुंचे थे।
गर्भगृह के अंदर जो दीवार निकली, उसी जगह 10 फीट नीचे तक मिट्टी हटाई
वहीं सर्वे पूरा होने के बाद हिन्दू पक्षकार गोपाल शर्मा का दावा किया कि गर्भगृह के अंदर जो 3 दीवार निकली थीं, उसमें 1 दीवार की 10 फीट गहराई तक मिट्टी हटाई गई है। नीचे दीवार दिख रही है आगे भी मिट्टी हटाने का काम होगा। खुदाई में कुछ स्तंभ के टुकड़े और अन्य अवशेष मिले हैं। भोजशाला के गर्भ ग्रह सहित 18 चिह्नित स्थानों पर हो रहा सर्वे। ( Bhojshala Survey 49TH DAY )
तीन दीवारें आपस में जुड़ी मिली
भोजशाला के भीतरी भाग में गत दिनों तीन दीवारें आपस में जुड़ी हुई मिली थीं। इनमें दो दीवारें पूर्व से पश्चिम व एक दीवार उत्तर से दक्षिण की ओर जा रही है। गुरुवार को यहां 10 फीट तक खोदाई हुई। इतनी गहराई तक भी दीवार दिखाई दे रही है। इससे लग रहा है कि दीवार और भी अधिक गहराई तक हो सकती है। यह दीवार ईंटों की बनी हुई बताई जा रही है।
अब बौद्ध समाज भी पेश कर रहा दावा
विवादित इमारत में गौतम बुद्ध की प्रतिमा की जानकारी लगते ही बौद्ध समाज और बुद्धिस्ट संगठन ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन प्रशासन के अधिकारियों को सौंपा है। इसमें मांग की गई है की भोजशाला कमाल मौला मस्जिद में सर्वे के दौरान निकली गौतम बुद्ध की मूर्ति को विवादित इमारत में स्थापित कर उसका नाम बौद्ध शाला किया जाए और बुद्ध पूर्णिमा 23 मई 2024 को बोद्धिसत्व मनाने के लिए भोजशाला कमाल मौला मस्जिद में दिनभर बौद्ध वंदना करने की परमिशन दी जाए।
धार भोजशाला में कब बनी मस्जिद, क्या है पूरा विवाद
धार भोजशाला में बनी मस्जिद व पूरे परिसर का वैज्ञानिक तरीके से सर्वे करने के आदेश इंदौर हाईकोर्ट ने दिए हैं। धार भोजशाला में मस्जिद होने को लेकर अब बौद्ध समाज अपना का दावा है। वहीं हिंदू पक्ष का दावा है कि यह प्राचीन, ऐतिहासिक हिंदू स्थल है। यहां पर हिंदू संस्कृति के प्रमाण मौजूद हैं। हालांकि धार भोजशाला परिसर और इसमें बनी मस्जिद का सर्वे जारी है। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही कोर्ट तय करेगा कि किसका दावा अधिक सच है। आइए हम आपको बताते हैं कि यह विवाद क्या है...
मुस्लिम पक्ष के अनुसार
इस वर्ग का मानना है कि यहां कमाल मौलाना की दरगाह है। यह मस्जिद ही है और 1985 के वक्फ बोर्ड बनने पर उनके आर्डर में इसे जामा मस्जिद कहा गया है। इसलिए यह हमारा धर्मस्थल है। अलाउद्दीन खिलजी के समय 1307 से ही यह हमारा स्थल है, उन्हीं के समय से मस्जिद बनी हुई है। रिकार्ड में भोजशाला के साथ कमाल मौला की मस्जिद लिखा हुआ है। यह पूरा स्थल हमारा है।
हिंदू संगठन का पक्ष
हिंदू संगठनों का कहना है कि यह परमार वंश के राजा भोज द्वारा बनवाया गया विश्वस्तरीय स्कूल था। यहां पर इंजीनियरिंग, म्यूजिक, आर्कियोलॉजी व अन्य विषय की श्रेठ पढ़ाई होती थी और इसकी प्रसिद्धी का स्तर नालंदा, तक्षशिला जैसा ही था।
- यह सन् एक हजार में स्थापित हुआ था। यहां मां वाग्देवी की प्रतिमा थी। साथ ही यहां पर हिंदू स्ट्रक्चर के पूरे साक्ष्य मौजूद हैं। खंबों पर हिंदू संस्कृति की नक्काशी है, संस्कत व प्राकूत भाषा में शब्द लिखे हुए हैं।
- यहां कभी भी मस्जिद नहीं रही है। पुराने रिकार्ड में भी हमेशा भोजशाल शब्द का उपयोग हुआ है।
- इसलिए यह स्थल हमारी उपासना का केंद्र है। यह पूरी तरह हमे मिलना चाहिए। हिंदू पक्ष का यह भी तर्क है कि जिन कमाल मौलान की यहां मजार बताई जाती है, वह तो धार में कभी दफनाए ही नहीं गए। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने पहले यहां खुदाई भी की थी। उस समय भी हिंदू स्थल के सबूत मिले थे, लेकिन फिर रोक दी गई। इसलिए यह खुदाई यहां की और दरगाह स्थल की भी होना चाहिए, इससे सब साफ हो जाएगा।
- यह भी तथ्य कहा जाता है कि अलाउद्दानी खिलजी ने 1300 में अटैक किया था और फिर 1540 में मोहम्मद खिलजी ने भोजशाला पर अटैक किया था। इस दौरान दरगाह बनाई गई, जो वास्तव में है ही नहीं। जबकि यह स्थल मूल रूप से एक हजार साल साल पहले राजा भोज द्वारा तैयार कराया गया स्कूल था।