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सड़क पर मुख्यमंत्री का इंतजार करते रहे लोग। Photograph: (the sootr)
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सड़क पर मुख्यमंत्री का इंतजार करते रहे लोग। Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का पहला जनता दरबार ही फीका रहा। इसकी बड़ी वजह रही, खुद सीएम (CM Mohan Yadav) का नहीं पहुंचना। प्रदेश के दूरदराज के इलाकों से आए फरियादी दिनभर सड़क पर मोहन का इंतजार करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री व्यवस्ताओं के चलते जनता दरबार में नहीं पहुंच सके। इसे लेकर लोग निराश नजर आए।
दरअसल, राजधानी भोपाल में सीएम डॉ.मोहन यादव के जनता दरबार लगाने की खबर सुनकर प्रदेश के कई हिस्सों से अपनी समस्याएं लेकर लोग सीएम हाउस पहुंचे थे, पर सीएम से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। मौके पर मौजूद अधिकारियों ने फरियादियों से आवेदन लेकर समस्याओं के निराकरण का विश्वास दिलाया।
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334 किलोमीटर दूर बुरहानपुर से भोपाल आई सरिता ने दो लोगों पर प्रताड़ना के आरोप लगाए। उन्होंने बताया, कुछ लोग हमें लगातार परेशान कर रहे हैं। घर की बिजली और पानी का कनेक्शन काट दिया है। बाथरूम के बाहर कैमरे लगा दिए हैं, जहां हमारी बच्चियां नहाती हैं। मैं कई बार भोपाल आकर शिकायत कर चुकी हूं। हर बार अधिकारी किसी न किसी बात को आवेदन लेकर चलता कर देते हैं। आज सोचा था सीएम को पूरी बात बताउंगी, पर उनसे मुलाकात नहीं हो गई।
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जनता दरबार के बीच कुछ ऐसे किसान भी पहुंचे, जो सीएम से मुलाकात कर उन्हें हल भेंट करते हुए सम्मान करना चाहते थे, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। सीहोर के चंदेरी गांव के किसान एमएस मेवाड़ा अन्य किसानों के साथ हल लेकर आए थे। उन्होंने कहा, किसानों की समस्याओं को लेकर सीएम से मिलने पहुंचे थे। मुलाकात होती तो सीएम को साफा बांधकर उनका सम्मान भी करते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 6 जनवरी से मुख्यमंत्री निवास में जनता दरबार की शुरुआत करने वाले थे, लेकिन पहला ही दरबार फीका रहा। लोगों को निराशा हाथ लगी। जनता दरबार का मकसद आमजन से सीधा संवाद स्थापित करना है। मुख्यमंत्री स्वयं जनता की समस्याओं को सुनकर अधिकारियों के साथ तत्काल समाधान निकालेंगे।
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गौरतलब है कि इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में भी जनदर्शन और जनसुनवाई की व्यवस्था की गई थी। उमा भारती ने कुछ समय जनदर्शन कार्यक्रम चलाया था, जिसमें वह जनता से मिलती थीं, लेकिन भीड़ की वजह से इसे बाद में बंद कर दिया गया। शिवराज के कार्यकाल में भी यह व्यवस्था ज्यादा कारगर नहीं रही।
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