11 साल से अटका था भुगतान, कोर्ट के आदेश पर भोपाल में कृषि विभाग के दफ्तर का सामान कुर्क

कृषि विभाग के अधिकारी कुंदनलाल साहू को भुगतान के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। विभागीय अधिकारियों ने जानबूझकर फाइलें दबाई। इस कारण साहू को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा।

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Kundanlal Sahu

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BHOPAL.मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में ऐसा मामला सामने आया है, जो बताता है कि कैसे किसी साधारण कर्मचारी को अपना हक​ पाने में सालों लग जाते हैं। विभागीय अधिकारी फाइलें दबाकर न्याय को टालते रहते हैं। 

यह दास्तां वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी कुंदनलाल साहू की है। उन्होंने अपने कार्यकाल में जो काम किया, उसका भुगतान पाने के लिए उन्हें हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। अंततः 11 नवंबर 2025 को कोर्ट के आदेश पर भोपाल में विंध्याचल भवन स्थित किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के संचालक के दफ्तर की संपत्ति कुर्क की गई, तब जाकर उन्हें न्याय मिला है। 

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काम हुआ, पर भुगतान अटक गया

कुंदनलाल साहू वर्ष 2012 से 2014 तक शासकीय कृषि प्रक्षेत्र चांचेड़ में फॉर्म मैनेजर के पद पर पदस्थ थे। उनके कार्यकाल के दौरान कृषि उपयोगी सामग्री की खरीदी और खेतों के विकास से जुड़े काम कराए गए थे। इन कामों के बिल और मजदूरी भुगतान के करीब 12 लाख 94 हजार रुपए विभाग पर बकाया थे।

इनमें से 7 लाख 10 हजार रुपए कृषि सामग्री के बिल और 5 लाख 84 हजार रुपए मजदूरों की मजदूरी के थे। तब उप संचालक कृषि ने 11 लाख 86 हजार रुपए के लंबित देयक चुका दिए, जबकि साहू के देयक नहीं चुकाए गए। इसमें भी 3 लाख 70 हजार रुपए का आवंटन लेप्स हो गया। नतीजा यह हुआ कि साहू और मजदूरों के भुगतान के लिए धन शेष नहीं रहा और फाइल थम गई।

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फाइलों के फेर में अटका रहा हक 

साहू ने 2014 से लेकर कई वर्षों तक वरिष्ठ अधिकारियों को दर्जनों आवेदन दिए। बार-बार याद दिलाया कि उन्होंने विभागीय आदेशों पर काम किया था और भुगतान रोका जाना अन्याय है, पर विभाग की मशीनरी मानो ठहर गई थी। किसी अधिकारी ने न जवाब दिया। न भुगतान किया। जब सब रास्ते बंद हो गए तो उन्होंने न्यायालय की शरण ली।

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हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला

थककर कुंदनलाल साहू ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में याचिका दायर की। कोर्ट ने मामले की गंभीरता समझते हुए संयुक्त संचालक, कृषि को आदेश दिया कि वे 60 दिनों के भीतर सभी देयकों का निराकरण करें, लेकिन यहां भी कहानी वही रही। आदेश आया। फाइल घूमी। मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया।

कोर्ट आदेश का पालन न होने पर साहू ने अवमानना याचिका लगाई। सुनवाई के दौरान संयुक्त संचालक ने कोर्ट में झूठी जानकारी दी कि भुगतान कर दिया गया है या मामला निपटा दिया गया है। इस भ्रामक जानकारी के आधार पर कोर्ट ने अवमानना प्रकरण समाप्त कर दिया।

साहू ने इसे आसानी से स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इसके पीछे की सच्चाई जानने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी मांगी, पर लोक सूचना अधिकारी ने भी जानकारी देने से इंकार कर दिया। इसके बाद साहू ने राज्य सूचना आयोग में अपील की।

आयोग ने पूरे दस्तावेज और तथ्य उजागर करते हुए साहू को जानकारी उपलब्ध कराई। जब उन्होंने ये जानकारी हाईकोर्ट में पुनः प्रस्तुत की, तो न्यायालय ने पूर्व की स्थिति पर नाराजगी जताई और स्पष्ट निर्देश दिए यदि भुगतान नहीं किया गया है, तो संबंधित विभाग से राशि वसूल कर दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने सिविल न्यायालय भोपाल को आदेश दिया कि वह विभाग से साहू का भुगतान ब्याज सहित वसूल करे।

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कोर्ट ने दी वसूली की मंजूरी

सिविल न्यायालय, भोपाल ने अपने आदेश में कहा कि कृषि विभाग कुंदनलाल साहू को 7 लाख 10 हजार रुपए, उस पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज और अधिवक्ता शुल्क सहित राशि अदा करे।

फिर भी विभाग ने आदेश को गंभीरता से नहीं लिया। जब भुगतान नहीं हुआ, तो साहू ने वसूली प्रकरण लगाया।
लगातार आदेशों की अनदेखी के बाद भोपाल सिविल न्यायालय ने किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के संचालक कार्यालय की संपत्ति कुर्क करने के आदेश जारी किए।

11 नवंबर 2025 को वसूली अमल में आई। विभाग की लाखों रुपए की संपत्ति कुर्क की गई। यह कदम केवल एक अधिकारी के प्रति नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर भी चोट था जो वर्षों तक किसी कर्मचारी को उसका हक नहीं देती।

अब मिला न्याय, पर बहुत देर से

कुंदनलाल साहू ने 'द सूत्र' को न्यायालय का आदेश दिखाते हुए कहा, मैंने सिर्फ अपना हक मांगा था, कोई दान नहीं। अगर विभाग ने समय पर सुनवाई कर दी होती, तो न मुझे कोर्ट जाना पड़ता, न विभाग की कुर्की होती। 

इस पूरे मामले ने यह उजागर कर दिया है कि किस तरह एक साधारण सरकारी कर्मचारी को अपने ही विभाग से न्याय पाने के लिए 11 साल तक लड़ना पड़ता है।

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