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भोपाल गैस त्रासदी की 40वीं बरसी पर सरकार के द्वारा किए गए वादों की याद दिलाने के साथ यह स्पष्ट होता है कि आज भी इस हादसे के शिकार हुए लोग और पर्यावरण पर उसका प्रभाव जस का तस बना हुआ है। 40 साल बाद भी जहरीला कचरा यूनियन कार्बाइड परिसर में दबा हुआ है और गैस पीड़ितों को आज भी न्याय नहीं मिला है। इस त्रासदी के कारण आज भी भूजल प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसे सरकार द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया है।
337 टन जहरीले कचरे का निपटान
मध्य प्रदेश सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। जिसमें भोपाल के यूनियन कार्बाइड संयंत्र से निकले लगभग 336 टन जहरीले कचरे का निपटान जल्द शुरू करने का ऐलान किया गया है। यह निर्णय भोपाल गैस त्रासदी के लगभग 40 साल बाद लिया गया है, जिससे सैकड़ों लोग मारे गए थे और हजारों लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हुए थे। इस निपटान प्रक्रिया के लिए केंद्र सरकार से भी वित्तीय सहायता मिल रही है। हालांकि, एक्टिविस्ट इस कदम से संतुष्ट नहीं हैं, उनका कहना है कि इस विधि से कचरे का केवल एक छोटा हिस्सा नष्ट होगा और समस्या का समाधान नहीं होगा। राज्य सरकार ने इस कचरे के निपटान के लिए केंद्र सरकार से 126 करोड़ रुपये की सहायता प्राप्त की है। यह काम धार जिले के पीथमपुर में स्थित फैसिलिटी सेंटर पर किया जाएगा।
अब तक नहीं हुआ जहरीले कचरे का निस्तारण
गैस पीड़ितों के पुनर्वास और कचरे के निस्तारण के बारे में किए गए सरकारी वादे आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं। यूनियन कार्बाइड परिसर में दबे जहरीले रासायनिक कचरे का कोई प्रभावी निस्तारण नहीं हो पाया है, जिससे पर्यावरण पर और भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यूनियन कार्बाइड की त्रासदी के बाद आसपास के क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार जमीन के अंदर मौजूद पानी में कैंसर और किडनी की बीमारियों के लिए जिम्मेदार तत्व पाए गए हैं, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन रहे हैं।
पीथमपुर में कचरे फेंकने को लेकर हुआ था विरोध
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने की योजना पर स्थानीय ग्रामीणों का विरोध जारी है। वे प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को लेकर आशंकित हैं। खासकर जब पहले किए गए परीक्षण असफल रहे थे। स्थानीय निवासियों की मांग है कि उनके जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इस योजना पर पुनर्विचार किया जाए। भोपाल गैस हादसे की जमीन से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर है।
यहां के लोग नियमित रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि यूनियन कार्बाइड के अत्यधिक विषाक्त रासायनिक कचरे को यहां जलाने की योजना बनाई जा रही है, जो विश्व के सबसे खतरनाक कचरों में शामिल है। लोग अपना विरोध इसलिए जता रहे हैं क्योंकि उनके जीवन पर संभावित असर की आशंकाओं के बीच उन्हें लग रहा है कि भोपाल का प्रदूषण खत्म करने की वहीं कोई बेहतर व्यवस्था नहीं की जा रही है। और पीथमपुर के बहाने यहां के गांवों को इस जहरीले कचरे को ढ़ोने के लिए तैयार किया जा रहा है। ये लोग कहते हैं कि यह एक किस्म का भेदभाव है उनके क्षेत्र के साथ।
कचरे को हटाने की योजना बना रही सरकार
सरकार केवल 337 मीट्रिक टन कचरे का निपटान करने की योजना बना रही है, जो कुल जहरीले कचरे का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। जब तक इस सारे कचरे का उचित तरीके से निपटान नहीं किया जाता, यह जमीन के अंदर के पानी और मिट्टी को प्रदूषित करता रहेगा। यहां तक कि अधिकारियों की उदासीनता और निष्क्रियता के लिए अदालतें भी उन्हें फटकार लगा रही हैं, लेकिन वे काम नहीं कर रही हैं। सरकार प्रदूषण फैलाने वाले को जवाबदेह ठहराने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखती है, खासकर तब जब प्रदूषण फैलाने वाली कंपनी सफाई के लिए मांगे गए 310 करोड़ रुपये का भुगतान करने से इनकार कर देती है।
पर्यावरण पर कचरे का प्रभाव
कई एक्टिविस्टों का दावा है कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र से निकलने वाला जहरीला कचरा स्थानीय जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है। उनकी चिंता है कि कचरा खुले गड्ढों और बिना लाइनिंग वाले तालाबों में रिसकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।
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