कांग्रेस से BJP में आए अक्षय बम के पिता कांति बम के हाथ से फिसल रही 200 करोड़ की भंडारी मिल जमीन

भाजपा नेता डॉ. अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम की भंडारी मिल ज़मीन पर कानूनी संकट गहरा गया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने फिर केस दर्ज किया और नोटिस जारी कर दिया।

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Sanjay Gupta
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इंदौर की बहुचर्चित भंडारी मिल जमीन विवाद ने फिर जोर पकड़ लिया है। कांग्रेस से बीजेपी में आए डॉ. अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम के कब्जे वाली करीब 200 करोड़ की 10 एकड़ से ज्यादा जमीन पर संकट मंडराने लगा है। हाईकोर्ट इंदौर के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने दोबारा केस दर्ज कर कांति बम को नोटिस जारी कर दिए हैं।

हाईकोर्ट इंदौर में यह हुआ था

तत्कालीन इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने तीन अक्तूबर 2012 को आदेश जारी किए थे। कलेक्टर ने मिल की जमीन को सरकारी घोषित करते हुए इसे कब्जे में लेने के आदेश दे दिए थे। बाद में यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया।

यहां 13 साल करीब तक लंबे चले केस के बाद हाईकोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को खारिज यह कहते हुए किया कि इसमें फरियादी के पक्ष को सुना नहीं गया। केस अपर कलेक्टर कोर्ट में था, वहां से नोटिस हुए लेकिन फिर केस को कलेक्टर कोर्ट में शिफ्ट किया गया लेकिन यहां उनका पक्ष नहीं सुना गया। ऐसे में आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्दांत के खिलाफ है। इसलिए इस आदेश के पूर्व की स्थिति बहाल की जाती है।

कलेक्टर कोर्ट में फिर नए सिरे से लगा केस

हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस कीमती जमीन को लेकर एक बार फिर इंदौर कलेक्टर की कोर्ट में केस लग चुका है।  इसे लेकर संबंधित पक्षकारों को जिसमें कांति बम इसमें एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (ईडी) की भूमिका में हैं, उन्हें नोटिस दिए जा चुके हैं और केस शुरू हो गया है।

क्या है जमीन का केस

होलकर काल में सितंबर 1939 में नंदलाल एंड भंडारी संस को सर्वे नंबर 148, 151/1654, 148/1653 की 3.18 एकड़ और सर्वे नंबर 282/2 की 22.24 एकड़ जमीन इंडस्ट्रियल यूज के लिए दी गई। यह जमीन 99 साल की लीज पर पांच लाख रुपए में दी गई। शर्त थी की इंडस्ट्रियल यूज होगा, यह पांच लाख की राशि 50-50 हजार की किश्तों में चुकाई जाएगी और साथ ही 6000 रुपए प्रति साल का वार्षिक किराया होगा।

साल 1967 में सरकार की मंजूरी से इस जमीन को सब लीज किया गया। साल 1976 में भंडारी मिल का नाम होप टेक्सटाइल लिमिटेड हो गया। मिल के संकट में आने पर शासन द्वारा 60 लाख की गारंटी के अतिरिक्त मजदूर हित में 75 लाख की गारंटी और दी गई, इसके बदले में जमीन का एक हिस्सा शासन में समाहित कर दिया गया।

तय हुआ कि 22.24 एकड में से 8.24 एकड़ जिस पर मिल है वह चलती रहेगी और इंडस्ट्रियल यूज होगा। बाकी जमीन में से करीब 2.60 एकड़ सड़क निर्माण के लिए जाएगी। बाकी बची 11.37 में से 60 फीसदी जमीन 6.8 एकड शासन के पास होगी और बाकी 40 फीसदी 4.50 एकड़ पर वाणिज्यिक व आवासीय उपयोग हो सकेगा, जिससे प्राप्त राशि से मजदूर व अन्य बकाया राशि का समयोजन होप टेक्सटाइल कंपनी द्वारा किया जाएगा।

बाद में केस बीआईएफआर में भी गया, जो बीमार कंपनियों के निराकऱण के लिए बनी संस्था थी। यहां कंपनी ने राशि देकर केस खत्म किया। वहीं 2012 में इंदौर जिला प्रशासन के पास इस जमीन को लेकर शिकायतें हुई कि यह जमीन सरकारी है लेकिन यहां पर जमीन को लेकर खेल चल रहा है।

2012 में जारी हुआ कलेक्टर का आदेश

पूरे केस की टाइमलाइन

  • 1939: भंडारी मिल को 25.42 एकड़ जमीन 99 साल की लीज पर दी गई।
  • 1967: सरकार की अनुमति से जमीन को सब-लीज किया गया।
  • 1976: भंडारी मिल का नाम बदलकर होप टेक्सटाइल लिमिटेड किया गया।
  • 1982: सरकार ने संकटग्रस्त मिल को सहायता दी और जमीन का बंटवारा तय हुआ।
  • 1996: कांतिलाल बम के अनुसार, वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति मिली।
  • 2003 से पहले- कांति बम का मिल से कोई संबंध नहीं था।
  • 2012: कलेक्टर त्रिपाठी ने जमीन को शासकीय घोषित कर कब्जे के आदेश दिए।
  • मार्च 2023: कांति बम को Executive Director नियुक्त किया गया।
  • 2012–2024: मामला हाईकोर्ट गया, कोर्ट ने आदेश रद्द कर पूर्व स्थिति बहाल की।
  • 2024 के बाद: केस दोबारा कलेक्टर कोर्ट में शुरू हुआ, कांति बम को नोटिस मिले।

जिला प्रशासन की जांच में यह चौंकाने वाली बात आई

तत्कालीन कलेक्टर त्रिपाठी द्वारा नजूल अधिकारियों से इसकी जांच कराई गई। कमेटी ने पाया कि मौके पर मिल है ही नहीं जो 8.24 एकड़ पर बताई गई थी, यानी इंडस्ट्रियल यूज जमीन का खत्म हो चुका था। वहीं 1982 के तय शासन शर्तों के अनुसार 4.5 एकड़ जमीन पर ही वाणिज्यिक व आवासीय न्यू सियागंज होना था जो इसके विपरीत 10.21 एकड़ जमीन पर विकसित कर बेच दिया गया। बाकी 12 एकड़ जमीन रिक्त है और बाउंड्रीवाल से घिरी हुई है।

इस मामले में बम ने कलेक्टर कोर्ट में बताया कि 1996 के आदेश से सभी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी मिली है और इस न्यू सियांगज विकास से 14.25 करोड़ मिले जिससे पूरी देनदारी खत्म की गई। लेकिन इन तर्कों से कलेक्टर कोर्ट सहमत नहीं हुई और उन्होंने लीज उल्लंघन मानते हुए सभी जमीन को शासकीय घोषित करते हुए कब्जे में लेने के आदेश दिए।

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इस मिल में कैसे आए कांतिलाल बम

इसमें चौंकाने वाली बात कांतिलाल बम की इंट्री रही। बम साल 2003 से पहले कहीं भी नहीं थे। लेकिन जब मिल का बीआईएफआर में केस चला तब मार्च 2023 में बोर्ड आफ डायरेक्टर्स की मीटिंग हुई। इसमें इसमें बीके पोद्दार चेयरमैन, डायरेक्टर में बीआईएफआर के नामिनी डीआर गंगोपाध्याय और डायरेक्टर वीके भूस्सरे मौजूद थे।

सभी ने एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर कांतिलाल बम को नियुक्त किया। इसके साथ ही बम को सभी तरह के कार्यकारी अधिकार भी जारी कर दिए गए। इसके बाद से ही बम ही अब इस मिल के सभी मामलों में औपचारिक चेहरा है। कलेक्टर कोर्ट में पहले चले केस में और अभी भी कांति बम ही इस मामले में सामने आए हैं।

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