BHOPAL. भारतीय जनता कांग्रेस पार्टी आने वाले सालों में बनेगी बीजेपी ( BJP ) का विकल्प? ये मत सोचिए कि मैं कोई सियासी भविष्यवाणी कर रहा हूं। ये कोई चुनावी फोरकास्ट नहीं है। न ही मैं कोई ऐसा चुनावी पंडित हूं जो दिन रात सिर्फ सियासी दुनिया की अलग-अलग चालों की स्टडी करता हूं और फिर लब्बोलुआब पेश करता हैं। मैं तो एक एनालिस्ट हूं जो देश के मौजूदा राजनीतिक हालात के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आने वाले सालों में कांग्रेस का हाथ और कमजोर पड़ सकता है, लेकिन एक नई पार्टी भी खड़ी हो सकती है। जो बीजेपी का जवाब बन सकती है और दिलचस्प पहलू ये होगा कि ये पार्टी बीजेपी के ही आंचल में पनप रही है।
एक कहानी का ताल्लुक चुनावी चर्चा और हमारी नई पार्टी से...
आपको दो भाइयों की एक बहुत छोटी सी कहानी सुनाता हूं। दो भाई थे, नाम मान लीजिए राम और श्याम। राम के थे दो बच्चे और श्याम के थे छह बच्चे। जब बच्चे बड़े हुए और बंटवारे की बात आई तो राम के खेत दो भागों में बंटे और और श्याम का खेत छह भागों में बंटा। हर बच्चे के नसीब में जमीन का इतना बड़ा टुकड़ा भी नहीं आया कि आसानी से गुजर बसर हो सके। अब आप ये भी जरूर जानना चाहेंगे कि चुनावी चर्चा के बीच और एक नई पार्टी बनने का शगूफा छेड़ने के बाद मैं ये कौन सी बात लेकर बैठ गया हूं। लेकिन घबराइए नहीं कहानी भले ही आम आदमी की हो, लेकिन इसका ताल्लुक चुनावी चर्चा और हमारी नई पार्टी से ही है। नई पार्टी की बात मेरे जेहन में अचानक आई उन खबरों की वजह से जो रोज सुर्खियां बटोर रही है। खबरें हैं दलबदल से जुड़ी। कभी खबर आती है कि गुजरात के कांग्रेसी नेता बीजेपी में शामिल हुए। कभी राजस्थान, कभी महाराष्ट्र, कभी मध्यप्रदेश और इस तरह किसी भी प्रदेश से कभी भी ऐसी खबर आ जाती है। इन खबरों का ट्रेंड एक सा है। तकरीबन हर राज्य में घुटन महसूस कर दल बदल करने वाले अधिकांश नेता कांग्रेस पार्टी के ही हैं। सबको अचानक घुटन महसूस होने लगी या अपनी पार्टी की रीती नीति बेकार लगने लगी या भगवान राम की आस्था जाग उठी और नेता ने पाला बदल लिया। ट्रेंड इतने पर ही खत्म नहीं हो रहा। ये आगे यूं बढ़ रहा है कि अब बीजेपी नेता दलबदल का आंकड़ा गिनाकर आलाकमान की नजरों में अपने नंबर बढ़ाने की कोशिश में जुट गया है। हर नेता ये दावा कर रहा है कि उसने सबसे ज्यादा कांग्रेसियों को भाजपाई बनाया। हाल ही में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ये दावा किया कि मध्यप्रदेश में 16 हजार से ज्यादा कांग्रेसी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसके जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा साबित होने पर पचास हजार रु. का इनाम देने की घोषणा कर दी। खेर ये तो चुनावी चक्कलस हैं जो चलती रहती हैं।
ये सोचने की बात है दल बदल के दूरगामी परिणाम क्या होंगे
फिलहाल हालात देखकर लगता है कि कांग्रेस के लिए ये मुश्किल की घड़ी है। जब हर दूसरा नेता दल बदल के लिए तैयार है या दलबदल कर चुका है, लेकिन इन परिस्थितियों को और ज्यादा गहराई से समझने की जरूरत है। ये सोचने की भी जरूरत है कि इसके दूरगामी परिणाम क्या होने वाले हैं। एक बार फिर ट्रेंड का रुख करते हैं और समझते हैं। आप पिछले दिनों की दलबदल की खबर उठाकर देखिए। आप ये समझ जाएंगे कि कांग्रेस नेता किसी भी कद का हो वो ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, सुरेश पचौरी हों, जितिन प्रसाद हों या कोई पंच सरपंच ही क्यों न हो। बीजेपी के नेता बकायदा हार फूल से उस नेता का स्वागत करते हैं और बीजेपी की सदस्यता दिलाते हैं। उसके बाद हार फूल पहनाकर हाथ जोड़े हुई तस्वीरें वायरल होती हैं। खबर छपती है कि कांग्रेस को एक और झटका, बीजेपी में फलां नेता शामिल। यहां बात केवल सिद्धांतों की नजर नहीं आती। ये एक इवेंट की तरह नजर आने लगा है कि एक निश्चित अंतराल पर दलबदल होना ही चाहिए और उसकी तस्वीरें छपना चाहिए।
आज दल बदलकर आने वाले कल बोझ न बन जाएं
दल बदल की इस साइक्लोजिकल स्ट्रेटजी से बीजेपी ये साबित करने में कामयाब रही है कि खुद नेता ही अपनी पार्टी में विश्वास खो रहे हैं तो आम मतदाता को उससे क्या मिलेगी, लेकिन क्या आज का ये इवेंट कल के लिए बड़ी मुसीबत साबित होने नहीं जा रहा। जो आज बीजेपी के लिए एसेट बन रहे हैं वो कल के लिए बोझ न बन जाए। अगर वो बोझ नहीं बने तो बीजेपी के जो पुराने नेता हैं कहीं वही उसके लिए बोझ न बन जाएं। इस बात को समझने के लिए आपको उन दो भाइयों के उदाहरण पर गौर करना होगा पार्टी में जगह और पद सीमित ही हैं। देश में लोकसभा, विधानसभा, पंचायतें या लाभ के पद सीमित ही हैं। जब बारी हिस्से बांटे की आएगी तो टुकड़े छोटे तो होंगे ही या बहुतों के हिस्से में आएंगे भी नहीं तब कोहराम तो मचेगा ही। और जब ये कोहराम मचेगा तब बीजेपी क्या करेगी। आज की तारीख में बीजेपी एक बेहद अनुशासित पार्टी के रूप में नजर आती है। जो हर किस्म के असंतोष और नाराजगी पर काबू पाने में सक्षम है और पार्टी में शामिल हुए नेता भी नए नए हैं, लेकिन कुछ सालों बाद भी हालात क्या यही रहेंगे।
2014 के बाद दलबदल के मामलों में आई तेजी...
डूबते जहाज को छोड़कर नए और बड़े जहाज पर कांग्रेसी भी किसी खास मकसद या ख्वाहिश के साथ ही शामिल हो रहे हैं। ख्वाहिश या तो उनकी पूरी होगी जो नए चेहरे हैं या उनकी पूरी होगी जो पहले से निष्ठावान हैं। दोनों ही सूरतों में बीजेपी के बड़े, आलीशान और ताकतवर जहाज को टाइटैनिक बनने में कितना वक्त लगेगा। एक आंकड़े पर गौर कीजिए तो मेरी बात को और बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।
- भारत में दलबदल का खेल काफी पुराना है। 1960-70 में हरियाणा से शुरू हुआ था। धीरे-धीरे यह सियासी रोग पूरे भारत में फैल गया। 2014 के बाद नेताओं के दलबदल के मामलों में काफी तेजी आई।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक सांसद और विधायक स्तर के 1 हजार से ज्यादा नेता 2014-21 दल बदल के खेल में शामिल हुए।
- इन 7 सालों में सबसे ज्यादा पलायन कांग्रेस से हुआ। 2014-21 तक विधायक-सांसद स्तर के 399 नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी रही। बीएसपी छोड़ने वाले नेताओं की संख्या 170 के आसपास थी। सत्ताधारी बीजेपी से भी नेताओं का मोहभंग कम नहीं हुआ। 7 साल में 144 नेता बीजेपी छोड़ दूसरी अन्य पार्टियों में शामिल हो गए।
- एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 2014 से 2021 तक विधायक-सांसद स्तर के 426 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है।
- 2021 से 2023 तक विधायक और सांसद स्तर के करीब 200 नेता बीजेपी में शामिल हो गए. 2021 से 2023 तक गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दलबदल का खेल हुआ।
- इस दरमियान कांग्रेस में सिर्फ 176 दलबदलू नेता शामिल हुए। कांग्रेस और बीजेपी के अलावा दलबदलुओं की सबसे पसंदीदा जगह एनडीए की सहयोगी शिवसेना और लोजपा जैसे दल भी बने हैं।
- बीजेपी ने दलबदलुओं को भी पद से खूब नवाजा है। वर्तमान में बीजेपी ने 7 राज्यों की कमान दलबदलू नेताओं को दे रखी है। इनमें बिहार, असम, झारखंड और बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं।
- बिहार में सम्राट चौधरी विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष हैं। सम्राट ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल से की थी। बाद में जेडीयू और हम होते हुए वे बीजेपी में आ गए।
- असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी मूल कांग्रेसी हैं। उन्होंने 2015 में पाला बदलते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था।
- झारखंड की कमान बाबूलाल मरांडी के पास है। मरांडी अभी प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी भी गिनती दलबदलू नेताओं में होती है। बीजेपी में आने से पहले मरांडी जेवीएम के प्रमुख थे।
- बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में भी दल बदलकर आए शुभेंदु अधिकारी पर ही भरोसा जताया है। शुभेंदु बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। शुभेंदु ने करियर की शुरुआत तृणमूल कांग्रेस से की थी। बंगाल में लोकसभा की 42 सीट हैं।
- इन राज्यों के अलावा अरुणाचल, त्रिपुरा और मणिपुर में भी दलबदलुओं के हाथ में ही बीजेपी की कमान है। तीनों राज्य के मुख्यमंत्री पहले कांग्रेस में रह चुके हैं।
- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत देश के 5 ऐसे राज्य हैं, जहां दलबदलू नेताओं की वजह से ही बीजेपी जनाधार बढ़ा पाने में सक्षम हुई। 2014 के चुनाव में करीब 10 सीटों पर बीजेपी ने दलबदलुओं को टिकट दिए।
- 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जमकर दलबदलुओं की खातिरदारी भी की। बीजेपी को इसका फायदा मिला और 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी ने सरकार बना ली। चुनाव बाद यूपी कैबिनेट में भी दलबदलुओं का दबदबा दिखा। स्वामी प्रसाद, रीता बहुगुणा जैसे दलबदलू नेताओं को बड़े विभाग दिए गए।
एक समय बीजेपी में इतने कांग्रेसी होंगे कि मूल नेता गायब हो जाएंगे
लगातार दलबदलुओं को नवाज रही बीजेपी ये मैसेज देने में कामयाब रही है कि दूसरे दलों से आने वालों को यहां भरपूर सम्मान मिल रहा है। एक तरह से दलबदलू उनकी मार्केटिंग का फेस बन रहे हैं, लेकिन इसकी वजह से जो असंतोष होता है उसकी खबरें गायब हो जाती हैं। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव इसका बड़ा उदाहरण हैं। जहां बीजेपी महाराज बीजेपी, शिवराज बीजेपी और वीडी बीजेपी में बंट गई थी। वरिष्ठ नेताओं ने टिकट न मिलने पर मोर्चा खोल दिया था। उस बगावत को दबा दिया गया। किसी को फोन कर आश्वासन दिया गया तो किसी को टिकट दिया गया या किसी की पसंद से टिकट दिया गया, लेकिन इस तरह का मैनेजमेंट क्या लॉन्ग टर्म में बीजेपी के काम आएगा और वो दिन भी क्या दूर नहीं जब भाजपा में इतने कांग्रेसी होंगे कि मूल नेता गायब हो जाएंगे जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की बात करते हैं। पार्टी में ज्यादा तादाद उन नेताओं की होगी जो सेकुलर सोच के साथ राजनीति में आए और अब वक्त की नजाकत को देख हिंदुत्व का चोला पहन रहे हैं।
ज्वालामुखी का लावा एक नई जमीन का निर्माण जरूर करता है
जब विचारधाराओं में द्वंद्व का वो दौर आएगा तब क्या होगा। ऐसा भी हो सकता है कि तब ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखा कोई बड़ा नेता एक नया चेहरा बनकर उभरे। उस नए नेतृत्व में कार्यकर्ता और नेताओं की ऐसी फौज खड़ी हो जो कांग्रेस छोड़ चुके हों, लेकिन बीजेपी में नाखुश हों और वो बीजेसीपी यानी कि भारतीय जनता कांग्रेस पार्टी की स्थापना करें। आखिर ऐसे ही तो पहले भी नेताओं ने अलग होकर अलग पार्टियां बनाई हैं और अब राष्ट्रीय स्तर के नेता हो चुके हैं। कभी कांग्रेस से नाराज होकर अलग पार्टी बनाने वाले शरद पवार, ममता बनर्जी इसका बड़ा उदाहरण हैं। नीतीश कुमार भी इसी फेहरिस्त का हिस्सा हैं और वैसे भी राजनीति तो अटकलों से भरा हुआ संसार है। यहां कब कौन सा किस्सा हकीकत बन जाता है और कब कौन सी हकीकत मजह अटकल साबित होती है ये कहा नहीं जा सकता, लेकिन अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। क्योंकि हर लावा में उबाल आता है तो सख्त से सख्त चट्टान भी फटने पर मजबूर होती है और ज्वालामुखी बन जाती है और वही लावा एक नई जमीन का निर्माण भी करता है।