BHOPAL. एक तरफ पूरी बीजेपी और एक तरफ छिंदवाड़ा के 497 बूथ। जो कमलनाथ के लिए किसी किले का काम कर रहे हैं और बीजेपी ( BJP ) के लिए चुनौती बन चुके हैं। छिंदवाड़ा ( Chindwara ) को लेकर बीजेपी की इंटरनल रिपोर्ट पार्टी का ही टेंशन बढ़ा रही है। चुनाव का दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा की जंग सबसे दिलचस्प हो रही है। वैसे कांग्रेस ने कुछ ठीकठाक चेहरे उतार कर मध्यप्रदेश की कुछ सीटों पर चुनाव रोचक बना दिया है, लेकिन छिंदवाड़ा की बात सबसे अलग है। जिसे जीतने के लिए बीजेपी जो कुछ कर सकती है वो कर रही है। इसके बावजूद कमलनाथ के गढ़ के कुछ बूथ ऐसे हैं जिन्हें भेद पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं हो रहा है।
कौन होगा छिंदवाड़ा का नया सरताज
चुनावी सीजन में बहुत से प्रोग्राम टेलिकास्ट होते हैं। अगला मुख्यमंत्री कौन, किसके सिर सजेगा ताज, कौन बनेगा प्रधानमंत्री जैसे टाइटल के वाले बहुत से प्रोग्राम आपने देख होंगे, लेकिन मैं यहां इतना बड़ा सवाल पूछने नहीं आया हूं। मेरा तो बस ये जानना चाहता हूं कि कौन होगा छिंदवाड़ा का नया सरताज। कहने को तो ये 29 लोकसभा वाले मध्यप्रदेश की एक सीट है, लेकिन जिस तरह से यहां पेंचोखम लड़ाए जा रहे हैं उसके चलते हर रोज एक नया फेक्ट सामने आ रहा है। पूरे प्रदेश की सीटें एक तरफ और छिंदवाड़ा एक तरफ। जिसे जीतने के लिए बीजेपी ने अपने सबसे तजुर्बेकार नेता कैलाश विजयवर्गीय को जिम्मा सौंप दिया है। अपने तेजतर्रार मंत्री गिरिराज सिंह को भी छिंदवाड़ा साधने के लिए रण में उतार दिया है। बीजेपी की मुश्किलें क्या हैं और कमलनाथ और नकुलनाथ की कोशिशें क्या हैं। वो जानने से पहले जान लीजिए छिंदवाड़ा का हाल क्या हैं।
छिंदवाड़ा की चुनावी फिजा बदल रही है
इस बात में कोई शक नहीं कि छिंदवाड़ा की चुनावी फिजा बदल रही है। अगर आप पहले से छिंदवाड़ा की चुनावी तासीर जानते हैं तो आप इस बदलाव का महसूस कर सकते हैं और अगर नहीं जानते तो जरा सड़क पर निकल जाइए। किसी चाय की टपरी में चाय की कुछ चुस्कियां लीजिए या फिर किसी पान की दुकान पर कुछ देर एक बेहतरीन पान बनवाने के लिए ही रुक जाइए। आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी सिर्फ जिक्र भर छेड़ना है। कोई भी सवाल कर सकते हैं। चाहें तो यही पूछ डालिए कि क्या कमलनाथ जीत रहे हैं। बस इतने भर से किसी भी टपरी या गुमठी का माहौल चुनावी पटिए में तब्दील हो जाएगा और आप हालात समझ जाएंगे। छिंदवाड़ा की जनता जो पहले सिर्फ कमलनाथ-कमलनाथ करती थी। अब बीजेपी का नाम भी लेने लगी है और इसकी वजह है बीजेपी की वो तगड़ी चुनावी तैयारी जो बीजेपी लंबे समय से कर रही है।
बीजेपी की छिंदवाड़ा में ऐसे चल रही कोशिश
अब एक नजर में ये भी जान लीजिए कि बीजेपी किस कदर छिंदवाड़ा में सारी कोशिश करने में जुटी हुई है। बीजेपी की पहली कोशिश है छिंदवाड़ा के असंतुष्ट और प्रभावशाली नेताओं सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को बीजेपी में लाना जिससे कांग्रेस छिंदवाड़ा की जमीन पर कमजोर पड़े। इसी के तहत अमरवाड़ा के विधायक को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल किया गया है। अमरवाड़ा से तीन बार के विधायक कमलेश शाह कमलनाथ के बहुत करीबी माने जाते थे। अब वो बीजेपी का हिस्सा बन चुके हैं।
- अकेले छिंदवाड़ा से 50,000 कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बीजेपी में शामिल करने का लक्ष्य है। इस पर भी काम जारी है। खासतौर से उन 497 बूथों पर जो बीजेपी के लिए फिलहाल कमजोर हैं।
- बीजेपी ने पहले रणनीति तैयार की थी कि कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस से तोड़कर बीजेपी में ले आएंगे तो छिंदवाड़ा सीट खुद-ब-खुद बीजेपी की झोली में आ जाएगी, लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी के अंदर ही दोनों को लेकर खासा विरोध हो गया।
- बीजेपी की रणनीति के तहत छिंदवाड़ा में सबसे ज्यादा सरकारी योजनों के लाभार्थी बनाए गए। दावा है कि छिंदवाड़ा में इन दिनों 3 लाख 91 हजार 166 महिलाओं को लाड़ली बहना योजना का लाभ मिल रहा है। 1 लाख 87 हजार 285 किसान सम्मान निधि पा रहे हैं। 1 लाख 33 हजार 293 लाड़ली लक्ष्मी हैं। संबल योजना के हितग्राहियों की संख्या 5 लाख 32 हजार 999 है। 38 हजार 595 परिवार को सरकार की ओर से आवास मिला है।
- बीजेपी उम्मीदवार विवेक साहू बंटी भी अपने इंटरव्यूज में इसी बात पर जोर दे रहे हैं कि 'प्रदेश में नंबर एक का जिला है, छिंदवाड़ा जहां आम लोगों को सबसे ज्यादा केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा है।
- बीजेपी स्थानीय नेताओं से ज्यादा बीजेपी के बड़े चेहरों मसलन अमित शाह, गिरिराज सिंह, योगी आदित्यनाथ, हेमंत बिस्वा सरमा जैसे चेहरों को प्रचार में उतारेगी जो हिंदूवादी बयानों से माहौल बनाएंगे।
- इन तैयारियों के अलावा बीजेपी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भी पीछे नहीं है। जिसके तहत कमलनाथ के करीबियों को ज्यादा से ज्यादा बीजेपी में शामिल किया जा रहा है। फिर चाहें वो विधायक के कद का नेता हो या आम कार्यकर्ता ही क्यों न हो।
- जीत के लिए बीजेपी ने अपने 94 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारा है। रणनीति के तहत 15 हजार 876 बूथ समिति कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। ऐसे ही 18 हजार 104 पन्ना प्रभारी, 54 हजार 250 पन्ना प्रमुख, 1 हजार 868 शक्ति केंद्र सदस्य और 4 हजार 29 त्रिदेव बूथ प्रभारी हैं, जो पार्टी को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत में जुटे हुए हैं।
497 बूथ पर पांच चुनाव में बीजेपी कभी नहीं जीती
इसके बावजूद बीजेपी के लिए जीत बहुत आसान नहीं है। पार्टी की इंटरनल रिपोर्ट में 63 फीसदी बूथों पर बीजेपी की स्थिति बेहद खराब है। 2013 के बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कुल 1934 बूथों में से 497 बूथ ऐसे हैं, जहां पांच चुनाव में बीजेपी कभी नहीं जीती। यानी इन बूथों पर कांग्रेस का भारी दबदबा है। वहीं, 250 बूथ ऐसे हैं, जहां पांच चुनाव में बीजेपी कभी नहीं हारी है। बीजेपी ने अपने मजबूत और कमजोर बूथों को पांच भागों में बांटा है। इनमें सबसे ज्यादा 37 फीसदी बूथ C ग्रेड के हैं। 26 फीसदी बूथ D ग्रेड के हैं। यानी इन बूथों पर जीत के लिए बीजेपी को काफी मेहनत करनी होगी। यही मेहनत बीजेपी कर भी रही है।
बीजेपी वैसे भी ग्राउंड लेवल पर काम करते हुए कार्यकर्ताओं को एक्टिव कर मजबूत नेटवर्क गढ़ने में कुशल मानी जाती है। अब बीजेपी की इस ग्राउंड नेटवर्किंग की असल परीक्षा है। इसमें बीजेपी कितनी माहिर है इसकी भी परीक्षा छिंदवाड़ा के चुनाव में हो ही जाएगी।
2014 में कांग्रेस को 50.51 तो बीजेपी का वोट शेयर 40.09 फीसदी था
बीजेपी की तैयारियां देख कमलनाथ भी ये तो समझ ही चुके हैं कि हालात हाथ से निकल रहे हैं। इसलिए पूरी ताकत से यहां डटे हुए हैं। बीजेपी का हर तरफ से शिकंजा कसना तो साफ नजर आ रहा है। खुद उनकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। पिछले लोकसभा चुनाव में भी नकुलनाथ की जीत का अंतर बेहद कम था। कमलनाथ के बाद उनकी विरासत संभालने वाले नकुलनाथ पिछला चुनाव महज 37 हजार के आसपास के मतों से जीते थे। ये निहायती चिंता का विषय है। सिर्फ इतना ही नहीं यदि पिछले चुनाव के वोट परसेंट को देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को 50.51 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 40.09 फीसदी रहा था। हालांकि, 2019 के चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 47.70 प्रतिशत पर आ गया था। इस चुनाव में बीजेपी को 45.09 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, विधानसभा में पूरा छिंदवाड़ा यानी कि यहां की सात विधानसभा सीटें कांग्रेस के नाम रहीं। पर बीजेपी ने एक कांग्रेसी विधायक को तोड़ कर उसे भाजपाई बना ही दिया है। यानी ऐसे नहीं तो वैसे सीटें बीजेपी के खाते में जानी हैं।
देखना है कि इस बार छिंदवाड़ा नया चुनावी इतिहास लिखेगा?
जातों को तो शायद कमलनाथ न रोक पाएं, लेकिन अपनी सीट ही बचाने में कामयाब हो जाएं इस पर भी संशय है। चलते-चलते ये भी याद दिला दूं कि 1952 में अस्तित्व में आई छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर बीजेपी को सिर्फ एक बार जीत नसीब हुई है। यदि 1997 का उपचुनाव छोड़ दें तो यहां हमेशा कांग्रेस का सांसद चुना गया है। 1997 के उपचुनाव में बीजेपी ने छिंदवाड़ा में सुंदरलाल पटवा पर दांव खेला और उन्होंने 38 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। इत्तेफाक से पिछली जीत का आंकड़ा भी इसी के आसपास है। अब देखना ये है कि इस बार छिंदवाड़ा सीट पुराना इतिहास ही दोहराती है या फिर नया चुनावी इतिहास लिखती है।