BHOPAL. दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह आखिर चाहते क्या हैं। क्या वो ये चाहते हैं कि जो बाजी अब दिग्विजय सिंह के हाथ में आती नजर आ रही है वो वापस निकल जाए। क्या उनकी मंशा ये है कि वो चुनाव नहीं जीत सके तो उनके बड़े भाई, बड़े राजा साहब चुनाव न जीत सकें। इन सवालों के पीछे खास वजह है। एक तरफ दिग्विजय सिंह हैं जो इस चुनाव को जीतने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं। पद यात्राओं में एक्सपर्ट दिग्विजय सिंह एक पदयात्रा कर भी चुके हैं। इस बीच उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह कुछ नहीं करके भी ऐसा मैसेज दे रहे हैं कि राघौगढ़ राजघराने में सब कुछ ठीक नहीं है जिसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है।
राघौगढ़ राजघराने में दरार पड़ने की अटकलें तेज
ये तो आप सभी जानते ही हैं कि दिग्विजय सिंह को राजगढ़ लोकसभा सीट से टिकट देकर कांग्रेस ने इस बार बड़ी अग्नि परीक्षा में झौंक दिया है। सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े पत्रकार और यूट्यूबर्स ये जताने में लगे हैं कि पहले चरण के कम मतदान के बाद बीजेपी बौखला गई है और उसे हार का डर सता रहा है। ऐसे वीडियोज के नीचे कमेंट्स की भरमार है, लेकिन हर कमेंट करने वाला मतदाता कांग्रेस के लिए वोट बैंक में तब्दील हो जाएगा ये संभव नजर नहीं आता। राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी दिग्विजय सिंह भी सोशल मीडिया पर चल रहे किसी भी दावे या आकलन के छलावे में आने वाले नहीं हैं। वो ये खूब समझ रहे हैं कि अपने ही गढ़ में लोकसभा की ये जंग लड़ना और जीतना उनके लिए आसान नहीं है। अगर गढ़ और लाज दोनों बचाए रखना है तो उन्हें जमकर पसीना बहाना है। वो हो सकते हैं राघौगढ़ के राजा, लेकिन वोट्स के रूप में अपनी ही प्रजा का प्यार पाना उनके लिए बहुत आसान नहीं है।
लक्ष्मण सिंह की निष्क्रियता भाइयों के बीच पारिवारिक कलह तो नहीं
वो अरसे बाद लोकसभा के चुनावी मैदान में वापसी कर रहे हैं। उनके आते ही राघौगढ़ का चुनावी माहौल बदल चुका है। बीजेपी ने इस सीट से फिर से रोडमल नागर को टिकट दिया है। ये सभी जानते हैं, लेकिन उनके खिलाफ एंटी इंकंबेंसी का फेक्टर हावी है। जिसे देखकर लगता है कि दिग्विजय सिंह चुनाव जीत सकते हैं। ये हालात भांपते ही बीजेपी ने भी अपनी रणनीति बदल दी है। अब पूरा फोकस इस सीट पर भी सिर्फ मोदी की गारंटी और मोदी के फेस पर टिका है। ऐसे में दिग्विजय सिंह की मुश्किलें बढ़ गई हैं। और इस मुश्किल घड़ी में उनके भाई लक्ष्मण सिंह उनकी और मुश्किलें बढ़ाने में बिलकुल पीछे नहीं है। हालात ये है कि अब राघौगढ़ राजघराने में दरार पड़ने की अटकलें तेज होती जा रही हैं। दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह राघौगढ़ से विधायक हैं और छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा से विधायक रहे हैं। परिवार के सदस्यों में विधायक बेटा जयवर्धन सिंह ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे हैं। पत्नी अमृता सिंह भी जनसंपर्क में उतर आई हैं। वहीं दादा के लिए पोता भी पिता जयवर्धन के साथ लोगों के बीच जनसंपर्क में पहुंच जाते हैं, लेकिन लक्ष्मण सिंह नदारद ही नजर आ रहे हैं। लक्ष्मण सिंह की चुनाव में निष्क्रियता को दोनों भाइयों के बीच चल रहे मनमुटाव और पारिवारिक कलह से जोडकर देखा जा रहा है।
लक्ष्मण सिंह एक भी दिन नहीं पहुंचे पदयात्रा में
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पिछले महीने 31 मार्च को आगर जिले के नलखेड़ा में माता पूजन के बाद अपने प्रचार अभियान को शुरू कर दिया था। उन्होंने 8 दिन तक राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर पदयात्रा निकाली थी, लेकिन लक्ष्मण सिंह एक भी दिन यात्रा में नहीं पहुंचे। न ही वे दिग्विजय सिंह की किसी चुनावी सभा या रैलियों में पहुंच रहे हैं। खास बात यह है कि चुनाव को लेकर वे सोशल मीडिया पर भी सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में आम लोगों के बीच यह अब चर्चा का विषय बन चुका है कि आखिरी क्या कारण है कि लक्ष्मण सिंह बड़े भाई को जिताने के लिए प्रचार के लिए नहीं जा रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस नेता राजघराने की लाज बचाने की अब भी पूरी कोशिश कर रहे हैं। गुना कांग्रेस जिलाध्यक्ष मेहरवान सिंह धाकड़ ने बताया कि लक्ष्मण सिंह जी पार्टी के प्रचार के लिए आ तो रहे हैं।
विधानसभा चुनाव हारने की वजह है दिग्विजय सिंह से नाराजी
दिग्विजय सिंह से लक्ष्मण सिंह का मनमुटाव नया नहीं है। इससे पहले भी दोनों के बीच टकराव देखने को मिलता रहा है। चाचौड़ा सीट से करीब 35 हजार मतों से विधानसभा चुनाव हारने के बाद लक्ष्मण सिंह ने बड़े भाई दिग्विजय सिंह को लेकर तीखी बयानबाजी भी की थी। बताते हैं कि हार की वजह से वे दिग्विजय सिंह से नाराज हैं। यही वजह है कि उन्होंने दिग्विजय सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे। खास बात यह है जिस चाचौड़ा विधानसभा सीट से लक्ष्मण सिंह भारी अंतर से हारे थे, वह सीट राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में भी आती है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के सामने चाचौड़ा में बड़ी जीत दर्ज करने की चुनौती है।
दिग्विजय सिंह, बीजेपी के हर मुद्दे का जवाब दे रहे हैं
हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी शुरू से ही दिग्विजय सिंह पर हमलावर रही है। ऐसा कर बीजेपी दिग्विजय सिंह को हिंदू और राम मंदिर विरोधी बताने की कोशिश कर रही है। वहीं, कांग्रेस लाड़ली बहना को 3 हजार रुपए देने और किसानों के समर्थन मूल्य को मुद्दा बना रही है। दिग्विजय सिंह भी चुनाव लड़ने की रस्म अदायगी नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि बीजेपी उन्हें गंभीरता से ले रही है, लेकिन वो ऐसा जता नहीं रही है। इसलिए मुकाबला एकतरफा नहीं माना जा सकता है। दिग्विजय सिंह, बीजेपी के हर उस मुद्दे का जवाब दे रहे हैं जो वो उठा रही है, लेकिन मुश्किल तब बढ़ जाती है जब खुद उनका भाई लक्ष्मण सिंह उनके मुकाबले आकर खड़े हो जाते हैं। राम मंदिर मामले पर कुछ ही समय पहल वो ऐसा बयान दे चुके हैं कि उनके दोबारा बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हो गईं थीं। राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उन्होंने ये बयान दिया था कि इस कार्यक्रम से दूरी बनाकर आलाकमान गलत कर रहे हैं। इसके अलावा उनका एक और बयान वायरल हुआ राहुल गांधी के लिए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी आम सांसदों की तरह ही हैं, उन्हें मीडियो को ज्यादा भाव देने की जरूरत नहीं है। इस बयान के वायरल होने के बाद एक बार फिर ये खबरें आईं कि क्या कांग्रेस का लक्ष्मण बीजेपी का विभीषण बनने जा रहा है।
बाजी दिग्विजय सिंह के हाथ में आती हुई नजर आ रही है
राजगढ़ लोकसभा सीट दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले साल 1984 में जीती थी। इसके बाद फिर यहां बीजेपी काबिज हुई। 1991 के चुनाव में दिग्विजय सिंह ने फिर यहां जीत दर्ज की, लेकिन खुद सीएम बनने के बाद ये सीट उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण सिंह के हवाल कर दी। लक्ष्मण सिंह यहां से 1994 से लेकर 2004 तक सांसद तो रहे। जिसमें से एक बार उन्होंने ये चुनाव बीजेपी के टिकट से जीता। जिस वक्त वो बीजेपी का हिस्सा रहे। तब भी राघौगढ़ राजघराने में कलह और दरार को लेकर अटकलें लगती रहीं, लेकिन जिस नाटकीय अंदाज में लक्ष्मण सिंह ने पार्टी छोड़ी उसी नाटकीय अंदाज में उन्होंने पार्टी में वापसी भी की। साल 2014 के चुनाव से ये सीट बीजेपी के कब्जे में हैं। रोडमल नागर लगातार दो बार यहां से जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन अब दिग्विजय सिंह के चुनावी मैदान में उतरने से उनकी राह थोड़ी मुश्किल हो गई है। बाजी दिन पर दिन दिग्विजय सिंह के हाथ में आती हुई नजर आ रही है। ऐसे में लक्ष्मण सिंह का उनसे दूर रहना मतदाताओं को खटक रहा है। बीजेपी को बार-बार ये जताने का मौका दे रहा है कि राघौगढ़ घराने में अब दरार आ चुकी है।