कार्टूनिस्ट के कार्टून क्यों मचाते हैं हड़कंप? जानें इसका A to Z

इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की पीएम मोदी पर विवादित कार्टून बनाने की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की। पॉलिटिक्स और कार्टून का विवाद नया नहीं है। कार्टून हमेशा सरकार और नेताओं की आलोचना का तरीका रहे हैं।

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Manish Kumar
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इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की पीएम मोदी पर विवादित कार्टून बनाने के मामले में अग्रिम जमानत याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बैंच ने खारिज कर दी। पॉलिटिक्स और कार्टून का विवाद नया नहीं है। व्यवस्था और राजनेताओं पर कार्टूनिस्ट की छोटी-मोटी रेखाएं अक्सर गहरा घाव कर जाती हैं। ब्रिटिश शासन काल से भारत में कार्टून की शुरुआत हुई। आजादी के बाद भी कार्टूनिस्ट लगातार सरकार और नेताओं पर टिप्पणी करते रहे हैं। यह कार्टून इतने घातक क्यों हैं, इसे हम इस स्टोरी में समझेंगे...

भारत में कार्टून और कार्टूनिस्ट का इतिहास

सबसे पहले जान लेते हैं कि भारत में कार्टून और कार्टूनिस्ट का इतिहास क्या रहा है। आजादी की लड़ाई से लेकर आज तक इनका राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

आरके लक्ष्मण

आरके लक्ष्मण भारत के मशहूर कार्टूनिस्ट थे। उनका जन्म 1921 में हुआ था। आरके लक्ष्मण ने अपने बनाए कार्टून के जरिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ भी तीखी टिप्पणियां की थीं। वे उस दौर के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करते थे जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। उनके कार्टूनों में कभी-कभी ब्रिटिश साम्राज्य की आलोचना होती थी और वे स्वतंत्रता संग्राम के समय के संघर्षों को उजागर करते थे।

आरके लक्ष्मण को "कॉमन मैन" नामक अपने कार्टून पात्र के लिए खास पहचान मिली। आरके लक्ष्मण के कार्टून आम लोगों के जीवन की सच्चाइयों, समाज और राजनीति के मुद्दों पर आधारित होते थे। उनका "कॉमन मैन" पात्र एक साधारण आदमी था, जो हर रोज की परेशानियों और हालातों को झेलता था। इस पात्र के माध्यम से लक्ष्मण ने भारतीय समाज और राजनीति की काफी आलोचना की।

 

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Photograph: (google.com)

 

लक्ष्मण के कार्टून सीधे और सटीक होते थे, जिनमें गहरी सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी होती थी। उनके कार्टून मजेदार होने के साथ-साथ हमेशा अपने विषय को गंभीरता से उजागर करते थे। उनकी कला का मुख्य उद्देश्य सरकार और समाज के मुद्दों पर सवाल उठाना और सुधार की आवश्यकता को दर्शाना था।

के. शंकर पिल्लई

के. शंकर पिल्लई भारतीय कार्टून कला के पितामह माने जाते हैं। उनके कार्टून 1940 से 1980 के दशक तक भारतीय राजनीति और समाज की स्थिति को दर्शाते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध कार्टून "द ट्रबल विद बापू" था, जिसमें महात्मा गांधी की आदर्शवादी दृष्टि की आलोचना की गई थी।

नेहरू सरकार के समय हुआ विवाद

 

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Photograph: (google.com)

 

नेहरू सरकार के समय के. शंकर पिल्लई के कार्टूनों में सरकार के खिलाफ आलोचना देखने को मिलती थी। इसकी वजह से कई बार सरकार और उस दौर के कई नेताओं द्वारा उनकी आलोचना और विरोध होता था।

पिल्लई के कई कार्टूनों में नेहरू और उनकी नीतियों की आलोचना की जाती थी। कभी-कभी तो उनके कार्टूनों पर राजनीतिक नेताओं का गुस्सा भी देखने को मिलता था।

1980-90 का दशक : भारतीय राजनीति और कार्टून

1980 और 1990 के दशक में भारतीय राजनीति में कई बड़े बदलाव हुए। इनमें आपातकाल (1975-1977), राजीव गांधी सरकार और लिबरलाइजेशन की शुरुआत शामिल हैं। इस दौरान कई कार्टूनिस्ट ने अपने कूचियां चलाते हुए तीखी टिप्पणियां करते कई कार्टून बनाए। इन कार्टूनों की वजह से कई बार विवाद भी पैदा हुए।  

रामनिवास

रामनिवास ने 1980 और 1990 के दशक में भारतीय राजनीति पर कार्टून बनाए। उनके कार्टून ने तत्कालीन नेताओं के खिलाफ तीव्र आलोचनाएं कीं। इसका खामियाजा उन्हें कई बार जेल की हवा खाकर उठाना पड़ा। 

सुब्रमण्यम स्वामी

सुब्रमण्यम स्वामी ने भारतीय राजनीति के प्रमुख मुद्दों पर कार्टून बनाए। इनमें इंदिरा गांधी और उनके विरोधियों की आलोचना की गई थी। 

इंदिरा गांधी और आपातकाल (1975)

आपातकाल के दौरान, इंदिरा गांधी और उनके समर्थकों ने कार्टूनिस्टों पर कड़ी कार्रवाई की। कई प्रमुख कार्टूनिस्टों को जेल में डाला गया और उनके कार्टूनों को सेंसर किया गया।

 

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Photograph: (google.com)

 

राजीव गांधी और 'बॉय' कार्टून

1989 में, कार्टूनिस्ट कृष्णकांत के एक कार्टून में राजीव गांधी को एक बालक की तरह प्रस्तुत किया गया था, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया और सरकार ने उसे सेंसर किया।

2000-10 के दशक में कार्टूनिस्टों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई

2000 और 2010 के दशक में कार्टून और कार्टूनिस्टों के खिलाफ कानूनी विवाद बढ़े। यह समय भारतीय राजनीति के लिए बहुत ही संवेदनशील था। कार्टून के माध्यम से नेता और उनकी नीतियों पर आलोचना करना एक सामान्य बात हो गई थी।

अशोक कुमार और 'आरएसएस' कार्टून

2006 में, कार्टूनिस्ट अशोक कुमार ने एक कार्टून बनाया, जिसमें उन्होंने आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की नीतियों की आलोचना की थी। इसके बाद, आरएसएस के समर्थकों ने विरोध किया और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी।

डिजिटल युग और सोशल मीडिया के प्रभाव में विवाद

आज के डिजिटल युग में कार्टून और कार्टूनिस्टों के लिए विवाद और आलोचना पहले से कहीं अधिक ज्यादा हो गए हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने कार्टूनिस्टों को अधिक स्वतंत्रता दी है, लेकिन इसके साथ ही नई चुनौतियां भी सामने आई हैं।

2016 में 'भगवा आतंकवाद' कार्टून विवाद

एक भारतीय कार्टूनिस्ट ने 'भगवा आतंकवाद' पर एक कार्टून बनाया, जिसके बाद देशभर में विवाद खड़ा हो गया। इस पर एक राजनीतिक पार्टी ने कार्टून को अपमानजनक बताया और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

2020 में CAA पर कार्टून विवाद

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर बने कार्टूनों को लेकर कई कार्टूनिस्टों को विरोध का सामना करना पड़ा। इनमें से कई कार्टून सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिससे विवाद और भी बढ़े।

दुनिया भर में हुए अन्य विवाद 

भारत सहित दुनिया भर में कार्टून को लेकर कई अन्य विवाद भी सामने आते रहे हैं। इनका समाज, राजनीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा असर पड़ा है। 

फ्रांस: शार्ली हेब्दो कार्टून विवाद (जनवरी 2015)

Det er ti år siden angrepet på Charlie Hebdo. Har vi lært noe? | Subjekt

घटना: 7 जनवरी 2015 को पेरिस स्थित व्यंग्य पत्रिका शार्ली हेब्दो के दफ्तर पर दो बंदूकधारियों ने हमला किया, जिसमें 12 लोग मारे गए।
विवाद का कारण: पत्रिका ने पैगंबर मोहम्मद के कार्टून प्रकाशित किए थे, जिसे मुस्लिम समुदाय ने अपमानजनक माना।
परिणाम: इस घटना के बाद "Je Suis Charlie" (मैं शार्ली हूं) आंदोलन शुरू हुआ, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया। साथ ही, यूरोप और इस्लामी देशों में तनाव और हिंसा की कई घटनाएं हुईं।

डेनमार्क: जाइलैंड्स-पोस्टन कार्टून विवाद (सितंबर 2005)

घटना: डेनिश अखबार जाइलैंड्स-पोस्टन ने 30 सितंबर 2005 को पैगंबर मोहम्मद के 12 कार्टून प्रकाशित किए।
विवाद का कारण: इन कार्टूनों को इस्लाम विरोधी और अपमानजनक माना गया।
परिणाम: दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय में भारी विरोध, कई देशों में डेनमार्क के दूतावासों पर हमले, दर्जनों लोगों की मौत और वैश्विक स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक भावना की बहस तेज हुई।

फ्रांस: पैगंबर मोहम्मद के कार्टून और शिक्षक की हत्या (अक्टूबर 2020)

घटना: 16 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के शिक्षक सैमुएल पैटी की हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने कक्षा में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे।
विवाद: इस घटना के बाद फ्रांस में सरकारी और सार्वजनिक इमारतों पर पैगंबर के कार्टून लगाए गए, जिससे मुस्लिम देशों में फ्रांस के खिलाफ व्यापक विरोध हुआ।
परिणाम: फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता की बहस और तेज हुई, जबकि मुस्लिम देशों में फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार की मांग उठी।

भारत: आनंद विकटन कार्टून विवाद (फरवरी-मार्च 2025)

घटना: तमिल पत्रिका 'आनंद विकटन' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पर व्यंग्यात्मक कार्टून प्रकाशित किया, जिसमें मोदी को जंजीरों में दिखाया गया था।
विवाद: भाजपा नेताओं की शिकायत पर केंद्र सरकार ने वेबसाइट ब्लॉक कर दी। मद्रास हाईकोर्ट ने 7 मार्च 2025 को विवादित कार्टून हटाने का आदेश दिया।
परिणाम: प्रेस की स्वतंत्रता और सेंसरशिप पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी, और अभिव्यक्ति की आजादी बनाम राजनीतिक दबाव का मुद्दा सामने आया।

दुनियाभर में अन्य विवाद

ईरान: 2006 में डेनमार्क के कार्टून विवाद के जवाब में ईरान के अखबारों ने होलोकॉस्ट पर कार्टून प्रतियोगिता आयोजित की, जिससे पश्चिमी देशों में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

अमेरिका: 2015 में टेक्सास में 'ड्रॉ मोहम्मद' प्रतियोगिता के दौरान गोलीबारी हुई, जिसमें दो हमलावर मारे गए।

भारत में अभिव्यक्ति की आजादी और सेंसरशिप

भारत में कार्टून की स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच गहरा संघर्ष चल रहा है, जो हाल के वर्षों में और तेज हुआ है। कार्टूनिस्टों का मानना है कि कार्टून लोकतंत्र में आलोचना और असहमति का वैध माध्यम है। वहीं दूसरी तरफ, सरकारें अक्सर असहज या आलोचनात्मक कंटेंट पर सेंसरशिप थोप देती हैं।

उदाहरण के तौर पर, फरवरी 2025 में तमिल पत्रिका 'विकटन' की वेबसाइट को प्रधानमंत्री मोदी पर बनाए गए राजनीतिक कार्टून के चलते बिना किसी स्पष्ट कानूनी आदेश के ब्लॉक कर दिया गया। इससे प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार पर गहरा सवाल उठने लगे।

इस तरह की कार्रवाइयां असहमति को दबाने और मीडिया को डराने का तरीका बनती जा रही हैं। सरकारें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम जैसे कानूनों का मनमाना इस्तेमाल करती हैं।

कई कार्टूनिस्टों और मीडिया विशेषज्ञों का कहना है कि कलाकार और सेंसरशिप हमेशा आमने-सामने रहेंगे, क्योंकि सेंसरशिप का मकसद आलोचनात्मक आवाजों को सीमित करना है, जबकि कार्टून समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं।

वहीं, विपक्षी नेता और प्रेस संगठनों ने ऐसे सेंसरशिप के मामलों की आलोचना करते हुए इसे लोकतांत्रिक संवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक बताया है।

भारत में यह है कानून

भारत में कार्टून बनाने और उनकी सीमाओं को लेकर कानून स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति विचार, व्यंग्य, आलोचना या कार्टून के माध्यम से अपनी बात कह सकता है। लेकिन, यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत इस पर कुछ "यथोचित प्रतिबंध" लगाए जा सकते हैं, जैसे:

  • राज्य की सुरक्षा
  • विदेशी राज्यों से संबंध
  • सार्वजनिक व्यवस्था
  • शालीनता या नैतिकता
  • मानहानि (Defamation)
  • अदालत की अवमानना
  • उकसावे या अपराध के लिए प्रेरित करना।

इसका अर्थ है कि कार्टूनिस्ट को अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन वे किसी की मानहानि, धार्मिक भावनाओं को ठेस, हिंसा या नफरत फैलाने, या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्टून नहीं बना सकते।

सीमाएं क्या हैं?

कार्टून समाज, राजनीति या सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत मानहानि, झूठी सूचना, या घृणा फैलाने वाले कंटेंट से बचना जरूरी है।
अदालत, सेना, धर्म, जाति आदि संवेदनशील विषयों पर कार्टून बनाते समय अतिरिक्त सावधानी अपेक्षित है।

हो सकती है कानूनी कार्रवाई

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं (जैसे 153A, 295A, 499/500) भी लागू हो सकती हैं, जिनके तहत आपराधिक कार्रवाई संभव है।

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