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बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल Photograph: (THE SOOTR)
BHOPAL. केंद्र सरकार उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने के प्रयास में जुटी है। इसके लिए नई शिक्षा नीति के तहत नवाचारों का समावेश भी जारी है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इसी के तहत देश के 78 विश्वविद्यालयों को मेरु प्रोजेक्ट यानी मल्टीडिस्पिलिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च प्रोग्राम में शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश के 8 विश्वविद्यालयों को चिन्हित किया गया है।
भोपाल के बरकतउल्ला, उज्जैन के विक्रम यूनिवर्सिटी और ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय को 100- 100 करोड़ सहित इंदौर, रीवा, छतरपुर, शहडोल और जबलपुर विश्वविद्यालयों को 20_20 करोड़ की फंडिंग मिली है। इसके बावजूद केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट `मेरु` को लेकर विश्वविद्यालयों का रवैया उदासीन है। ऐसे में करोड़ों रुपए की फंडिंग की फिजूलखर्ची और बजट लैप्स होने की शंका बनी हुई है। राजधानी के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के छात्रों ने प्रबंधन और सरकार पर केंद्र के मेरू प्रोजेक्ट की अनदेखी के आरोप भी लगे हैं।
प्रदेश के 8 विवि को मिला प्रोजेक्ट
देश के चुनिंदा 78 विश्वविद्यालयों में रिसर्च, सेमिनार, ट्रेनिंग, एक्सचेंज प्रोग्राम को बढ़ावा देने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पीएम- ऊषा योजना के तहत मेरु प्रोजेक्ट शुरू किया है। प्रोजेक्ट के तहत विश्वविद्यालयों में प्रयोगशाला, इंक्यूबेशन और फैकल्टी जैसे संसाधनों में भी इजाफा होना था। इसी के लिए इन विश्वविद्यालयों को तगड़ा बजट भी स्वीकृत किया गया है। 20 फरवरी 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इस प्रोजेक्ट की घोषणा विश्वविद्यालयों में की थी। तब से सवा साल बीत चुका है। यानी दूसरा शिक्षा सत्र शुरू भी हो चुका है लेकिन मेरु प्रोजेक्ट फाइलों से बाहर नहीं आ सका है।
मेरु प्रोजेक्ट सेमिनारों तक सिमटा
बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी प्रदेश में अलग पहचान रखती है। वहीं उज्जैन के विक्रम और ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय की भी अच्छी साख है। इसके बावजूद 100- 100 करोड़ की फंडिंग के बावजूद विश्वविद्यालयों में ये प्रोजेक्ट एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका है। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में तो मेरु प्रोग्राम दम तोड़ता नजर आ रहा है। यहां चंद सेमिनारों के अलावा अब तक प्रोजेक्ट पर कोई काम ही शुरू नहीं हुआ है। प्रबंधन ने कुछ विभागों की प्रयोशालाओं में रंग रोगन करा दिया है लेकिन वहां संसाधन जस के तस हैं। कहीं कम्प्युटर खराब पड़े हैं तो कहीं प्रयोगशाला उपकरणों के बिना चल रही हैं।
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संसाधन जुटाने में कछुआ चाल
फंडिंग के बाद भी अब तक उपकरणों की खरीदी नहीं हुई है। नई प्रयोगशाला, हॉस्टल भी नहीं बनाए गए। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय प्रबंधन की खरीदी प्रक्रिया कछुआ चाल होने की वजह से टेंडर ही नहीं हो पा रहे हैं। इस प्रोजेक्ट की सफलता के लिए फैकल्टी की उपलब्धता है लेकिन अब तक नियुक्ति ही नहीं हो पाई हैं। इसकी प्रक्रिया भी काफी धीमी गति से चल रही है। तमाम अवरोधों का प्रतिकूल प्रभाव मल्टीडिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च प्रोग्राम पर पड़ रहा है। फैकल्टी की कमी से फार्मेसी, माइक्रोबायोलॉजी, भौतिकी, जूलॉजी, बॉटनी, लॉ डिपार्टमेंट में पढ़ाई और प्रायोगिक कक्षाएं, रिसर्च कार्यक्रम पिछड़ रहे हैं। इससे छात्र बीयू के पाठ्यक्रमों में एडमिशन लेने से भी परहेज कर रहे हैं।
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फैकल्टी की कमी बनी चुनौती
बीयू में विभागों में फैकल्टी की कमी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। विश्वविद्यालय को डेढ़ साल पहले इस प्रोजेक्ट के लिए चिन्हित किया गया था लेकिन तब से संसाधन जुटाने के साथ ही फैकल्टी की उपलब्धता को लेकर प्लानिंग ही चल रही है। हांलाकि अब तक ऐसी प्लानिंग पर अमल नहीं हुआ है। लॉ डिपार्टमेंट में फैकल्टी के 124 पद स्वीकृत हैं लेकिन केवल 43 पदों पर ही प्राध्यापक काम कर रहे हैं। 81 पद खाली पड़े हैं। विश्वविद्यालय में इन खाली पदों को भरने बीते 10 साल में असिस्टेंट, एसोसिएट और प्रोफेसरों की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है। साल 2014 में शुरू हुई नियुक्ति प्रक्रिया भी विश्वविद्यालय में धारा 52 के प्रभावशील होने की वजह से पूरी नहीं हो सकी थी।
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प्लेसमेंट घटने से छात्रों में अरुचि
फैकल्टी और संसाधनों की कमी के कारण विश्वविद्यालय में कोर्स अपग्रेड नहीं हो पा रहे हैं। इस वजह से अब छात्रों में भी यहां प्रवेश लेने में निराशा बढ़ रही है। इसका सीधा असर छात्रों के प्रवेश पर पड़ रहा है। बीते 5 साल में विश्वविद्यालय के पोस्टग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या घटी है। विश्वविद्यालय के कई विभाग और डिप्लोमा कोर्सों में तो बीते तीन- चार साल में कोई एडमिशन ही नहीं हुआ है। वहीं दूसरी ओर फैकल्टी की कमी से शिक्षा की गुणवत्ता गड़बड़ाने की वजह से यहां से पढ़ाई करने वाले छात्रों को अच्छे प्लेसमेंट भी नहीं मिल रहे हैं।
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डेढ़ साल से बस हो रही प्लानिंग
प्रदेश के 8 विश्वविद्यालयों में प्रोजेक्ट मेरु की चाल मंथर बनी हुई है। सबसे खराब हालत बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की है। प्रोजेक्ट के तहत स्वीकृत 100 करोड़ की फंडिंग से कैंपस में 300 बेड गर्ल्स हॉस्टल, अत्याधुनिक कंप्यूटर सेंटर, सेंट्रल इंक्युबेशन सेंटर, एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट और प्रयोगशालाओं का निर्माण भी होना है। इनमें आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग जैसे उपकरण भी लगने हैं। लेकिन ये सब काम अब भी सतह पर आकार नहीं ले सके हैं। मेरु प्रोजेक्ट के तहत विश्वविद्यालयों को निर्धारित 44 कंपोनेंट्स पर काम करना है। इनमें एक्सपोजर विजिट, रिसर्च इनोवेशन, इंडस्ट्री लिंक और इंटरनेशनल टाईअप मुख्य हैं। हांलाकि बीयू में अब तक इन सभी पर केवल कागजी घोड़े ही दौड़ रहे हैं। जमीन पर कोई भी गतिविधि संचालित नहीं है।
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