BHOPAL. बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते...? ये मेहरबां कौन हैं, जिनके आने से चुनावी बिसात बदल जाती है, लेकिन इस बार जो ये मेहरबा आएं हैं तो जरा देर हो चुकी है। ये मेहरबां कोई और नहीं खुद अमित शाह ( Amit Shah ) हैं। जो राजनीति के चाणक्य हैं। इस बार उनकी चाणक्य नीति जरा देर से नजर आई है और बीजेपी को नुकसान होता नजर आ रहा है। बीजेपी तो बाद में मुश्किल में आएगी उससे पहले प्रदेश के करीब छह मंत्रियों की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। असल में अमित शाह ने ये वॉर्निंग दे दी है कि जिस सीट पर मतदान कम हुआ उस सीट के मंत्रियों की कुर्सी जाएगी। इस वॉर्निंग के बाद प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह जैसे सीनियर्ल लीडर्स भी डेंजर जोन में है, लेकिन क्या वाकई ये सख्ती अब काम आने वाली है।
बात करते हैं अमित शाह के भोपाल दौरे की
अभी कुछ दिन पहले मैंने आपको बताया था कि बीजेपी का जमीनी स्तर पर हाल बुरा है। खुद आरएसएस समर्थित पत्रकार भी अब इन हालातों को छुपा नहीं पा रहे। बल्कि, खुलकर बता रहे हैं। डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दी लिंक को क्लिक कर आप जान सकते हैं कि किस संघी पत्रकार ने इस हाल पर क्या कहा है और किसे जिम्मेदार ठहराया है। खैर हम यहां बात करते हैं आनन फानन में हुए अमित शाह के भोपाल दौरे की। उनकी चेतावनी की और अब ये चेतावनी कितनी फायदेमंद है। इसकी भी। आपको याद होगा विधानसभा चुनाव से पहले भी अमित शाह अचानक भोपाल आए थे। एक ही बैठक में अपने नेताओं के बीच जीत का कॉन्फिडेंस फूंक गए थे। कुछ सूत्रों ने अंदर की ये खबर भी बताई थी कि अमित शाह ने सीधे शिवराज सिंह चौहान से सवाल किया था कि आप इतने डरे हुए क्यों हो। उस वक्त वाकई बीजेपी को विधानसभा चुनाव में जीत की उम्मीद नहीं थी। अब अमित शाह का वही सवाल पूरी बीजेपी के सामने पहाड़ बनकर खड़ा हो गया है। पहले दो चरणों में मतदान में दिखाई दे रही मायूसी, विपक्ष का लगातार हावी होना और कार्यकर्ताओं की सुस्ती बीजेपी को परेशान कर रही है।
मंत्री के क्षेत्र में कम मतदान पर पद छीनने की चेतावनी
पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में मिली धुआंधार जीत के बाद बीजेपी ने साफ कर दिया था कि अब चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के फेस पर होगा। स्टार प्रचारकों की लिस्ट तो तैयार हुई लेकिन सभा, रैली, रोड शो सब जगह सिर्फ मोदी ही मोदी छाए हुए हैं। इसका असर ये हुआ कि खुद प्रत्याशी ही अपने हर बयान में ये कह रहे हैं कि वो मोदीजी ने इतना काम किए हैं कि उनकी जीत पक्की है। ये प्रत्याशी तो खुद ट्रोल हो ही रहे हैं, लेकिन ये वो कड़वी हकीकत है जो बीजेपी को दो चरण गुजरने के बाद समझ में आई है। जब चुनाव मोदी के नाम पर, मोदी के फेस पर और मोदी की गारंटी पर ही होना है तो अधिकांश प्रत्याशी ही जीत के लिए ज्यादा ताकत नहीं लगा रहे। उनकी सुस्ती का असर नीचे कार्यकर्ताओं तक नजर आ रहा है। कार्यकर्ताओं की यही उदासीनता बूथ स्तर तक नजर आ रही है। पर सवाल ये है कि किया क्या जाए। मोदी की गारंटी के नाम से ही अपना मेनिफेस्टो छाप चुकी बीजेपी अब कदम पीछे तो नहीं खींच सकती। इसकी जुगाड़ भी अमित शाह ने ही लगाई है। जिन्होंने इस बार मीटिंग में एक एक मंत्री को ताकीद कर दिया है कि जिनके इलाके में मतदान कम हुआ और पार्टी हारी उनका मंत्री पद छिन जाएगा। जहां जीत मिलेगी उस विधायक को मंत्री बना दिया जाएगा, लेकिन जब तक अमित शाह ने ये अल्टीमेटम दिया तब तक दो चरण के चुनाव हो चुके थे। कई बड़ी सीटों पर वोट डल चुके थे, जिसमें छिंदवाड़ा और राजगढ़ जैसी दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की सीट भी शामिल है।
अमित शाह की चेतावनी का पूरी तरह एनालिसिस करें तो कम से कम छह मंत्रियों की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है...
- पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मध्य प्रदेश में 58 फीसदी वोट मिले थे और देश में यह आंकड़ा 50 फीसदी को पार कर गया था। इस बार दो चरणों के चुनाव हुए है और पिछली बार के मुकाबले 8.11 फीसदी कम वोटिंग हुई है। ये पार्टी के लिए चिंता की वजह है। फिक्र इसलिए भी है कि आने वाले चरणों में मालवा निमाड़ की सीटें भी शामिल हैं। जो बीजेपी का गढ़ है। यहां पार्टी किसी हाल में कमजोर नहीं होना चाहती। यही वजह है कि अब हर विधायक का रिपोर्ट कार्ट बनाया जा रहा है।
- अब जरा ये समझ लेते हैं कि जिन 12 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। वहां के विधायक या मंत्री कौन हैं और क्या वो डेंजर जोन में हैं।
- पहले और दूसरे चरण की कुल 12 सीटों पर चुनाव हुआ है। इन लोकसभा क्षेत्रों से प्रदेश सरकार में 12 मंत्री है। इनमें से 6 मंत्री डेंजर जोन में है और 6 मंत्रियों के क्षेत्र में मतदान ज्यादा हुआ है।
- जो मंत्री डेंजर जोन में हैं उनमें से दो होशंगाबाद लोकसभा सीट से, एक खजुराहो, एक जबलपुर, एक सतना और एक शहडोल लोकसभा सीट से आते हैं। रीवा सीट से तो आते हैं खुद राजेंद्र शुक्ला जो प्रदेश सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं।
- रीवा का जिक्र इसलिए जरूरी है कि यहां अब तक का सबसे कम मतदान हुआ है। रीवा लोकसभा सीट का मत प्रतिशत रहा 49.44 प्रतिशत।
- 2019 के चुनाव में इस सीट पर 60.38 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। ये जबरदस्त गिरावट उस क्षेत्र में दर्ज की गई है जहां से मध्यप्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला विधायक हैं।
- होशंगाबाद सीट से दो मंत्री हैं। पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल नरसिंहपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। नरसिंहपुर विधानसभा सीट पर 66.62% वोटिंग हुई है। जो लोकसभा क्षेत्र में हुई वोटिंग से 0.59% कम है। लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल उदयपुरा विधानसभा सीट से विधायक हैं। ये विधानसभा भी होशंगाबाद लोकसभा सीट में आती है। यहां 60.62 % वोटिंग हुई है। जो लोकसभा क्षेत्र में हुई वोटिंग से 6.59% कम है।
- सतना लोकसभा सीट से शहरी विकास एवं आवास राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी आती हैं। लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र रैगांव में 60.63% वोटिंग हुई है, जबकि सतना लोकसभा सीट पर 61.94 फीसदी मतदान हुआ है। यानी प्रतिमा बागरी के क्षेत्र में 1.31 फीसदी कम वोटिंग हुई है।
- खजुराहो से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा उम्मीदवार है. खजुराहो में कुल 56.98 फीसदी वोटिंग हुई है। जो पिछली बार के मुकाबले 11 फीसदी कम है। विधानसभा की बात करें तो चंदला विधानसभा में सबसे कम 50.05 फीसदी वोटिंग हुई है। यहां से वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार विधायक है। हालांकि, खजुराहो में बीजेपी को वैसे भी खतरा कम है। यहां जो थोड़ा बहुत कॉम्पिटीशन नजर आ रहा था वो सपा उम्मीदवार की वजह से था, लेकिन वो चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर हो गईं।
- शहडोल लोकसभा सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हुआ था। इस लोकसभा सीट से कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग राज्यमंत्री दिलीप जायसवाल आते हैं। वे कोतमा से विधायक हैं। कोतमा में 64.13% वोटिंग हुई है, जबकि शहडोल लोकसभा सीट पर 64.68% वोटिंग हुई है। यानी कोतमा में लोकसभा के मुकाबले 0.55 फीसदी कम वोट पड़े।
- सीनियर मंत्री राकेश सिंह की विधानसभा सीट जबलपुर में भी कम वोटिंग हुई है। राकेश सिंह पिछली बार जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद थे। इस बार पार्टी ने उन्हें जबलपुर पश्चिम विधानसभा सीट से टिकट दिया और वो यहां चुनाव जीतकर प्रदेश सरकार में पीडब्लूडी मंत्री हैं। जबलपुर पश्चिम में 59.54% वोटिंग हुई है, जबकि जबलपुर लोकसभा सीट पर 61 फीसदी मतदान हुआ है। यानी राकेश सिंह की सीट पर लोकसभा में हुई वोटिंग के मुकाबले 1.61 % कम मतदान हुआ है।
कांग्रेस को कमजोर समझने की गलती न करें
अमित शाह की चेतावनी को देखते हुए ये माना जा सकता है कि चुनावी नतीजों में उलटफेर हुआ तो प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह जैसे नेताओं को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ेगी। हालांकि, सीएम मोहन यादव ये दावा कर चुके हैं कि 12 की 12 सीटें बीजेपी की झोली में जाने वाली हैं। लेकिन इससे चिंता कम नहीं होती। इस चिंता की गहराई को समझना है तो आप कार्तिकेय सिंह चौहान का एक वायरल वीडियो देख सकते हैं। वो अपने पिता शिवराज सिंह चौहान का चुनावी कैंपेन संभाल रहे हैं। शिवराज सिंह चुनाव हारेंगे इसकी कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। उसके बावजूद उनकी सीट पर चुनाव काम जोर शोर से जारी है। हाल ही में कार्यकर्ताओं की एक बैठक में कार्तिकेय सिंह चौरान ये कहते नजर आए कि कांग्रेस को कमजोर समझने की गलती न करें। कांग्रेस की रीढ़ अब भी मजबूत है। इसलिए अपने बूथ पर डटे रहें। जो बात सियासी मैदान में ऑफिश्यली कदम रखे बगैर कार्तिकेय सिंह चौहान समझ गए। उसे बीजेपी के दिग्गज कैसे नजरअंदाज कर गए ये हैरान करने वाली बात है। शिवराज सिंधिया जैसे स्टार प्रचारकों को भी पार्टी ने सिर्फ मोदी की गारंटी के चक्कर में अपनी सीटों तक सीमित कर दिया। जिसका असर ये है कि प्रचार का पूरा जिम्मा पीएम मोदी पर आ पड़ा। उनका चेहरा और भाषण बार-बार हर जगह हर बार नजर आ रहा है। क्या पार्टी ने ये आकलन किया कि इसका क्या इंपेक्ट पड़ रहा है।
दलबदलू कांग्रेस के लिए नुकसानदायी या बीजेपी पर भारी
बार-बार दल बदलकर आने वाले नेता कांग्रेस के लिए नुकसानदायी बने या बीजेपी पर भी भारी पड़ रहे हैं। ये वो बिंदू हैं जिन पर अब गहराई से गौर करने की जरूरत है। मसलन ताजा उदाहरण अक्षय कांति बम का ही लेते हैं। इंदौर की सीट भी वो सीट थी जहां बीजेपी को कोई नुकसान नहीं दिख रहा था। फिर बम बीजेपी में रहे या कांग्रेस में क्या फर्क पड़ता, लेकिन उन्हें बीजेपी में शामिल कर कांग्रेस की बड़ी हार दिखाने की कोशिश की जा रही है। पर बीजेपी ये सवाल क्यों नहीं करती कि क्या बम अकेले आए हैं। उनके समर्थक उनके साथ पिछलग्गू नहीं बने। जो अब बीजेपी का हिस्सा होंगे और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं पर ही भारी पड़ेंगे। अब जनता को भी ये देखने की आदत पड़ चुकी है कि कांग्रेस से आए दिन नेता बीजेपी में जा रहे हैं। ये बीजेपी के लिए ही बड़ा सवाल है कि ऐसी राजनीतिक घटनाएं जिन्हें बीजेपी इवेंट बनाकर प्रचारित करती है वो अंदरखानों में खुद पार्टी के वोटबैंक पर ही असर डाल रही हैं।