छतरपुर जिले के अतरार गांव में जातिगत भेदभाव का मामला सामने आया है। गांव के 20 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार सिर्फ इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने एक दलित के हाथ से प्रसाद खा लिया। यह घटना छुआछूत और जातिवाद की गहरी जड़ों को उजागर करती है।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
अतरार गांव के हनुमान मंदिर में 20 अगस्त 2024 को दलित व्यक्ति जगत अहिरवार ने मनोकामना पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाया। प्रसाद मंदिर के पुजारी रामकिशोर अग्निहोत्री ने चढ़ाया और वहां मौजूद लोगों को बांटा। प्रसाद खाने वालों में ब्राह्मण और अन्य जातियों के लोग शामिल थे। इस पर गांव के सरपंच संतोष तिवारी ने फरमान जारी कर दिया कि जिन्होंने दलित के हाथ से प्रसाद खाया है, उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाएगा।
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बहिष्कार के बाद के हालात
पुजारी और अन्य परिवारों की परेशानी:
पुजारी रामकिशोर अग्निहोत्री ने बताया कि भगवान के प्रसाद में जात-पात का भेद नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद उन्हें और अन्य परिवारों को बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।
सामाजिक अलगाव:
बहिष्कृत परिवारों को न शादी में बुलाया जा रहा है, न श्राद्ध जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में। कई लोग उन्हें "लड्डू वाले" कहकर चिढ़ाते हैं।
पुलिस में शिकायत और कार्रवाई
जगत अहिरवार और बहिष्कृत परिवारों ने एसपी से शिकायत की, जिसके बाद मामला दर्ज किया गया। पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने की कोशिश की, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।
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गांव में जातिगत परंपराएं
गांव में फर्द बनाने की परंपरा है, जिसमें शादी या अन्य कार्यक्रमों में किसे बुलाना है, यह सूची बनाई जाती है। इसमें उन लोगों का नाम शामिल नहीं किया जाता जो सामाजिक परंपराओं के खिलाफ जाते हैं।
धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा का कोई असर नहीं
अतरार वही गांव है, जहां से धीरेंद्र शास्त्री ने "जात-पात मिटाओ" का संदेश दिया था, लेकिन इस घटना से साफ है कि जातिगत भेदभाव अभी भी गांव में गहराई से मौजूद है। यह घटना सामाजिक ताने-बाने में जातिवाद के गहरे प्रभाव को दर्शाती है। गांव के लोग अब भी छुआछूत और भेदभाव से मुक्त नहीं हो पाए हैं। पुलिस और प्रशासन को इस मामले में सख्त कदम उठाने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
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