BHOPAL. सेक्स रेश्यो में भले ही ग्वालियर की हालत खस्ता है लेकिन अब भी यहां लिंग परीक्षण और गर्भपात के मामले में अफसर बेफिक्र हैं। ऐसा केंद्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक चिट्ठी को देखकर लगता है। ये चिट्ठी तीन माह पहले प्रदेश के हेल्थ कमिश्नर को लिखी गई थी। जिसमें ग्वालियर के मैटरनिटी सेंटरों में अवैध गर्भपात और गर्भस्थ भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने की शिकायतों का हवाला दिया गया है। केंद्रीय आयोग की इसी चिट्ठी में कार्रवाई का भी जिक्र है लेकिन ग्वालियर में जिला प्रशासन और सीएमएचओ को इसकी जांच करने की फुरसत ही नहीं है। वे तो बस नोटिस-नोटिस खेलने में लगे हैं। जिन मैटरनिटी सेंटरों को नोटिस भेजे गए हैं, उनमें FPA के दो सेंटर हैं। ऐसे मामले पहले भी आते रहे हैं। अकसर शिकायतों को दबा दिया जाता है या नोटिस का खेल कार्रवाई का पटाक्षेप कर देता है।
कार्रवाई के नाम पर केवल जांच और नोटिस
पहले आपको बताते हैं कि आखिर मामला क्या है। दरअसल फैमली प्लानिंग के क्षेत्र में काम कर रही संस्था FPA कई जिलों में भी मैटरनिटी से संबंधित जांचों के लिए अपने सेंटर चलाती है। सााल 2023 में ग्वालियर के फूलबाग और गोले का मंदिर क्षेत्र में संचालित दो केंद्रों की शिकायतें सामने आई थीं। तब तत्कालीन सीएमएचओ डॉ.आरके राजौरिया ने अपनी टीम के साथ दोनों केंद्रों की जांच की थी। तब उन्हें जो खामियां मिली थीं इसका उल्लेख जारी किए गए नोटिस में है। मैटरनिटी सेंटर में निरीक्षण के दौरान एक भी डॉक्टर नहीं था। वहां बीपीटी कोर्स की छात्रा व्यवस्था संभालती मिली थी। सेंटर के संचालन की अनुमति और जरूरी दस्तावेज भी नहीं मिले थे। वहां कई ऐसी दवाएं मिली थी जो एक्सपायर हो चुकी थीं। सीएमएचओ ने डॉक्टर की गैर मौजूदगी में गर्भवती महिला की जांच होते भी वहां देखा था। गर्भवती महिलाओं की जांच जिस लैब में कराई जा रही थी वह भी बिना रजिस्ट्रेशन चल रही थी और उसमें लैब टेक्नीशियन तक नहीं थे। जांच रिपोर्ट का रिकॉर्ड भी गड़बड़ था। दूसरे शहरों से जांच कराने के प्रमाण भी मिले थे। इन तमाम खामियों के बाद भी सीएमएचओ राजौरिया 10 महीनों में बार_बार नोटिस ही भेजते रहे, कार्रवाई नहीं की। अब नए सीएमएचओ डॉ.सचिन श्रीवास्तव ने यहां जांच और दूसरी व्यवस्थाओं में खामियां मिलने पर नोटिस जारी किया है।
लिंग परीक्षण पर कितने गंभीर अधिकारी
गर्भस्थ भ्रूण के लिंग परीक्षण की शिकायतों पर अब तक मैटरनिटी सेंटरों को क्लीन चिट नहीं मिली है और न ही कार्रवाई की गई है। दोनों सेंटरों को बीते साल से लेकर सितम्बर माह के बीच यानी एक साल में चार से ज्यादा नोटिस दिए गए हैं। इनमें से कुछ नोटिसों का जवाब भी नहीं दिया गया है। मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी का मैन्युअल कहता है कि ऐसे मामलों में संबंधित संस्था को नोटिस जारी किया जाता है। इसका जवाब तय अवधि में देना जरूरी है। इसके आधार पर ही अस्पताल या जांच केंद्र का पंजीयन निरस्त करने से लेकर अन्य वैधानिक कार्रवाई तय की जाती है। यानी सितंबर 2023 में सेंटर पर छापे के बाद अब तक कार्रवाई हो जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डॉ.राजौरिया नोटिस पर नोटिस ही देते रहे लेकिन खामियां सामने होने पर कार्रवाई नहीं की। अपने पूर्ववर्ती अधिकारी की जगह अब डॉ.सचिन श्रीवास्तव सीएमएचओ हैं। उन्हें भी निरीक्षण में गड़बड़ी मिली थी। उनके दफ्तर में पूर्व अधिकारी की कार्रवाई लंबित है लेकिन उन्होंने इस पर कार्रवाई आगे बढ़ाना जरूरी नहीं समझा। डॉ. श्रीवास्तव भी नियमों का हवाला देकर नोटिस-नोटिस के खेल में उतरते नजर आ रहे हैं।
केंद्रीय आयोग तक पहुंची शिकायत
ग्वालियर के मैटरनिटी सेंटरों में लिंग परीक्षण और गर्भपात की शिकायतों को अफसरों द्वारा दबाने का मामला केंद्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग पहुंच चुका है। आयोग की ओर से प्रदेश के स्वास्थ्य आयुक्त को इस मामले में जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। आयोग के इस पत्र में प्रदेश में लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं का स्पष्ट तौर पर हवाला दिया गया है। जिसके बाद संचालनालय की ओर से जिलों को निर्देशित भी किया गया लेकिन ये निर्देश जिलों में सीएमएचओ दफ्तरों की फाइलों में दबकर रह गए हैं। वहीं विभागीय स्तर पर भी एफपीएआई द्वारा प्रदेश में अन्य जिलों में चलाए जा रहे सेंटरों की जांच के आदेश भी अब तक नहीं दिए गए हैं। बाल संरक्षण आयोग संवैधानिक संस्था है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने उसके आयोग को जिस तरह से अनदेखा किया है वह चिंता का विषय है।
इतनी बार भेजे नोटिस
शिकायत 12 अप्रेल 2023 को हुई
औचक निरीक्षण 15 सितम्बर को किया
नोटिस 21 सितम्बर को हुआ जारी
महीने भर बाद फिर रिमाइंडर भेजा गया
नए CMHO को 12 अप्रेल को फिर शिकायत मिली
उन्होंने 26 अप्रेल को अपनी टीम के साथ छापा मारा
28 मई को नवागत सीएमएचओ ने नोटिस जारी किया
21 सितम्बर को फिर दूसरा नोटिस जारी किया है।
गर्भवती महिलाओं को हो सकता है खतरा
बीते माह 19 सितंबर को कलेक्टर रुचिका चौहान तक मैटरनिटी सेंटरों में यह मामला दूसरी बार पहुंचा था। उनके निर्देश पर सीएमएचओ की टीम ने जांच की और वहां मिली खामियों का प्रतिवेदन भी तैयार किया था। इसी प्रतिवेदन से इन दोनों सेंटरों में गर्भवती महिलाओं की जांच, गर्भस्थ शिशु के परीक्षण जैसी जांच संदेह के दायरे में आ जाती है। क्योंकि इन जांचों के लिए जो रेडियोलॉजिस्ट, टेक्नीकल एक्सपर्ट होना जरूरी है वे सेंटर पर हैं ही नहीं। गर्भवती महिलाओं की जांच, गर्भपात और उपचार डॉक्टर की गैर मौजूदगी में हो रहा है और स्टाफ के लोग जांच टीम को देखते ही दौड़ लगा देते हैं। इन स्थितियों के बाद भी जिला प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारी बेखबर हैं और महिलाओं और गर्भस्थ शिशुओं की सुरक्षा भगवानभरोसे है।
लिंगानुपात में ग्वालियर की हालत खराब
हेल्थ बुलेटिन की मानें तो प्रदेश में लिंगानुपात की स्थिति में बीते कुछ वर्षों में सुधार आया है। साल 2019-21 के एनएफएच सर्वे के आधार पर एमपी का औसत लिंगानुपात प्रति हजार बच्चों पर 956 बच्चियां था। जबकि साल 2015-16 के एनएफएच सर्वे में यही औसत 927 था। यानी इस अवधि में प्रदेश के सेक्स रेशो में सुधार हुआ है। लेकिन ग्वालियर जिले की स्थिति इसमें खराब है। सर्वे में यहां प्रति हजार बच्चों पर 753 बेटियां होना बताया गया है। यानी यहां लिंगानुपात का औसत गड़बड़ाया हुआ है। यहां प्रति हजार बच्चों पर 247 बेटियां कम हैं। इसके बावजूद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा लिंग परीक्षण और गर्भपात की सूचनाओं तो ठीक शिकायतों पर भी गंभीर नहीं दिख रहा।
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