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The Sootr
मोबाइल की लत बच्चों में बढ़ती जा रही है। बच्चे खुद को कार्टून कैरेक्टर समझकर बर्ताव करते हैं। इंदौर के एमवाय अस्पताल में रोजाना 50 से अधिक ऐसे बच्चे आते हैं। अधिकतर बच्चे 3 से 10 साल के हैं। ये बच्चे बातचीत करना भूल जाते हैं। वे अकेले में बड़बड़ाते हैं। आभासी दुनिया में रहने से वे परिवार और समाज से दूर हो रहे हैं। कई बच्चे माता-पिता से नजरें भी नहीं मिलाते। डॉक्टर इन्हें ऑटिज्म या वर्चुअल ऑटिज्म बताते हैं। माइंड गेम और थेरेपी से इनका इलाज किया जाता है।
मोबाइल से दूर करने के लिए परिवार के बीच रखा, खिलौने दिए
मां प्रिया प्रजापत ने बताया कि उनके 7 साल के बच्चे को ओटिज्म है। उसकी थैरेपी के लिए वे यहां पर आई हैं। हमने देखा कि उसकी मोबाइल की लत लग रही है तो हमने मोबाइल का डेटा पैक बंद कर दिया था। मोबाइल दिखाने के बजाए हम उसे गार्डन व सड़क पर घुमाने के लिए लेकर जाने लगे। इसके कारण उसका ध्यान मोबाइल से हटने लगा और परिवार के बीच में रखने लगे। शुरूआत में जब उसकी मोबाइल की लत छुड़वाने की कोशिश की तो वह रोने लगता था। इस पर हमने उसका ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए दूसरे खिलौने आदि देने लगे। हमने देखा कि उन बच्चों की मोबाइल की लत जल्दी छूट जाती है जो कि ज्वाइंट फैमेली में रहते हैं। पालकों द्वारा बच्चों को टीवी व मोबाइल देने के बजाए उन्हें इनडोर गेम साथ में बैठकर खेलना चाहिए।
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अपने आसपास के लोगों से बात तक नहीं कर पाता
मां पूजा गुडेरिया ने बताया कि उनके बच्चे ने बहुत ज्यादा मोबाइल देखा तो इस कारण वह ठीक से बोल नहीं पाता है। वह अपने आसपास के लोगों से ठीक से बात तक नहीं कर पाता है। वह मोबाइल को देखकर ही हाथ–पैर हिलाता रहता है। अकेले में कुछ बड़बड़ाता रहता है। चिड़चिड़ापन भी काफी ज्यादा हो गया है। अब यहां पर थैरेपी के लिए लेकर आए हैं तब से बच्चे में काफी परिवर्तन देखने को मिला है।
फिजिकल एक्टिविटी नहीं होने से आ रही कमजोरी
मां रितु मौर्य ने बताया कि जब हम इस थैरेपी सेंटर में आए तो हमने देखा कि यहां पर ऑटिज्म के शिकार बड़ी संख्या में बच्चे आ रहे हैं। इसके कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि जो बच्चा मोबाइल चलाता है तो उसकी फिजिकल एक्टिविटी नहीं हो पाती थी। इसके कारण उसमें कमजोर आ रही थी। ऐसे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण दिखाई देने लगे थे। इसमें बच्चा अपने आप में रहने लगा था और खुद से ही बातें करने लगा था। किसी की भी बात नहीं सुन रहा था।
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टीवी और मोबाइल की दुनिया को ही मान रहा सच
एमवाय अस्पताल के फिजियोथैरेपी के विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष गोयल ने बताया कि बच्चे खाना नहीं खा रहा या रो रहा है तो उसे मोबाइल पकड़ा दिया जाता है। इसके कारण बच्चे मोबाइल के आदि हो चुके है। इसके कारण वह सोशल एक्टिविटी से स्वयं को दूर कर लेता है। वह टीवी और मोबाइल की दुनिया को ही अपनी दुनिया मानने लगता है। एमवाय अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीज कुछ समय पहले तक 10 से 15 थे। अब इसके 60 से 70 मरीज के करीब आ रहे हैं।
बच्चों में बड़ रहा चिड़चिड़ापन, लोगों से दूर भाग रहे
डॉ. गोयल ने बताया कि बच्चों की सोशल निगलेक्टिविटी हो रही है, वे समाज से कटते जा रहे हैं, बाहर खेलने नहीं जा पा रहे हैं। इस दौरान बच्चा 6 से 8 घंटे तक लगातार मोबाइल पर कार्टून देख रहा है। इसमें उसका बौद्धिक विकास सही तरीके से नहीं हो पा रहा है। इन बच्चों में चिड़चिड़ापन, लोगों से दूर भागना, कोई बात करता है डर महसूस होता है। बच्चों में समझदारी की कमी भी देखने को मिलती है। जिसमें कि अगर कोई कुछ पूछता है तो वे उसका जवाब ठीक तरह से दे नहीं पाते हैं।
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डॉक्टर के मुताबिक ऐसे पहचानें लक्षण
बच्चे का बोलने में हिचकिचाना या हकलाना।
घर के अलावा अन्य लोगों से बात ना करना।
किसी भी बात को समझने, सोचने या करने में समय लगाना।
मोबाइल में देख कार्टून या अन्य कैरेक्टर को ही सही समझना।
कोई चीज नहीं देने पर काफी समय तक आक्रामक व्यवहार करना।
हाईपर एक्टिव होना व ध्यान लगाने में परेशानी आना।
मूड में बार-बार बदलाव देखने को मिलना।
बच्चा समाज से नजरें नहीं मिला पा रहा
उन्होंने बताया कि गर्मी की छुटि्टयाें में बच्चे घर पर ज्यादा रहने लगे हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों के केस काफी बड़ रहे हैं। अब माता–पिता को देखने में आ रहा है कि बच्चा उन्हें ठीक तरह से रिस्पॉन्स नहीं दे रहा है। ऐसे में परिजनों को दिखाई दे रहा है कि बच्चा मानसिक व शारीरिक रूप से काफी कमजोर होता जा रहा है। वह समाज व अपने आसपास के लोगों के फेस नहीं कर पा रहा है।
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यह सुझाव दे रहे हैं बच्चों को लेकर
डॉ. गोयल ने बताया कि ऐसे बच्चों को सबसे पहले समाज व लोगों के बीच में लेकर जाने का कहते हैं। उसके हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का कहें। उन्हें सोसायटी व पार्क में लेकर जाएं। जितना ज्यादा मोबाइल और टीवी के साथ वर्चुअल दुनिया से दूर रखें, उतना ज्यादा बच्चे के लिए अच्छा है। वर्तमान में बच्चा डिजिटल दुनिया में खो चुका है और घर से बाहर खेलने ही नहीं जा रहा है। इससे उसकी शारीरिक व बौद्धिक क्षमता कम होती जा रही है। इससे वह निर्णय नहीं ले पा रहा है।
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यह ट्रीटमेंट दे रहे एमवाय अस्पताल में
एमवाय अस्पताल के ऑक्यूपेशनल थैरेपी के विभागाध्यक्ष डॉ. गौतम बताते हैं कि एमवाय अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले बच्चों को अलग–अलग तरह की कसरतें करवाते हैं। उन्हें टीवी और मोबाइल से दूर रखकर अलग–अलग तरह के खेल में शामिल करते हैं। दिमाग चलाने वाले खेल को बच्चों को खिलाया जाता है। ब्रेन डेवलपिंग गेम्स खिलाए जाते हैं। बच्चों में इन खेलों के प्रति रूचि जगाते हैं, ताकि वे टीवी और मोबाइल से दूर रहें। हमारा मुख्य लक्ष्य यह है कि बच्चों को किस तरह से सोशल बना सकते हैं।
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बच्चों में आ रही मानसिक विकलांगता
फिजियोथैरेपिस्ट डॉ. अरुण पाटीदार बताते हैं कि बच्चों में मोबाइल की लत का सबसे बड़ा कारण माता–पिता का व्यस्त होना है। सिंगल पैरेंट फैमेली के कारण बच्चा अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताता है। इस दौरान वह डिजिटल व वर्जुअल दुनिया की तरफ आकर्षित हो रहा है, जो कि काफी खतरनाक है। इससे पीड़ित जो बच्चे हमारे पास आ रहे हैं तो हम सबसे पहले उन्हें यही सुझाव देते हैं कि माता–पिता अपने बच्चों को साथ में बाहर लेकर जाएं और फिजिकल एक्टिविटी में इन्वॉल्व रखें। ये जो बदलाव पिछले कुछ वर्ष में बच्चों की दिनचर्या में आया है। इसके कारण उन्हें ऑक्यूपेशनल थैरेपी की डिमांड बढ़ने लगी है। बच्चों में मानसिक विकलांगता व बुद्धिमत्ता में कमी देखने को मिल रही है। बच्चों पर हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग नहीं होनी चाहिए, जैसे कि उन पर हर समय नजर रखें। उन्हें हर समय टोंकते ना रहें। उन्हें थोड़ी आजादी देनी चाहिए और अच्छे व बुरे का सबक देते रहना चाहिए।
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यह होता है ऑटिज्म या वर्जुअल ऑटिज्म
ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलेपमेंटल विकार है। इसके लक्षण मुख्य रूप से एक से दो वर्ष की उम्र में या इससे भी पहले दिखाई देना शुरू हो जाते हैं। जैसे बच्चे का एक जगह नहीं बैठना, अत्यधिक जिद करना, नजरों का ना मिलाना, बात न कर पाना, समझ नहीं पाना, बच्चों के साथ नहीं खेलना, खुद में मगन रहना, चीजों को फेंकना, बार-बार हाथों को हिलाना, खुद को मारना, सिर पर मारना आदि हैं। मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स का अधिक उपयोग शिशुओं में ऑटिज्म जैसे लक्षणों की संभावना को बढ़ा रहा है, जिसे 'वर्चुअल ऑटिज्म' भी कहा जाता है। यह बच्चों के सामाजिक और भाषा विकास को प्रभावित कर सकता है। जिसके कारण उन्हें दूसरों से बात करने, आंख से आंख मिलाकर बात करने या सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने में कठिनाई हो सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब शिशुओं को बहुत अधिक समय तक स्क्रीन के सामने रखा जाता है, जिससे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार (ASD) के समान लक्षण दिखाई देते हैं।