जमीनी स्तर पर विकास की जिम्मेदारी नगर सरकारों की होती है। प्रदेश की इन नगर सरकारों में अधिकारियों का टोटा सा पड़ा है। प्रदेश भर के नगरीय निकायों में केवल 30 फीसदी निकायों में स्थायी मुख्य नगर पालिका अधिकारी की तैनाती है। इस कमी के कारण विकास कार्य प्रभावित हो रहे है।
मध्यप्रदेश में छोटी बडी मिलाकर कुल 413 नगरीय निकाय है, लेकिन इनमें से 70 फीसदी निकायों में इस समय या तो प्रभारी सीएमओ तैनात किए गए हैं या फिर पद खाली पड़े हैं। इधर नेताओं और राजनैतिक संगठनों के करीबी कर्मचारी भी अपनी पहुंच के चलते कई जगह प्रभारी सीएमओ बन मलाई खा रहे है।
9 साल से प्रदेश में नहीं हुई सीएमओ पदोन्नति
अधिकारियों की मांग और तैनाती के गणित में इतने अंतर का बड़ा कारण प्रदेश में बीते नौ सालों से नगरीय निकायों में पदोन्नति का न होना भी है। बताया जा रहा है कि प्रदेश में सीएमओ के कुल 413 पदों में से 187 पद जहां सीधी भर्ती के है। 271 पद पदोन्नति से भरे जाने है, लेकिन प्रदेश में 9 सालों से पदोन्नति पर रोक लगी हुई है जिसके कारण इन पदों पर प्रभारी जमे हुए हैं।
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अफसरों-नेताओं की मेहरबानी से अयोग्य बने प्रभारी
नगरीय निकायों में कई ऐसे उदाहरण है, जहां सक्षम योग्यता नहीं होने के बाद भी निचले कर्मचारियों को प्रभारी सीएमओ बना दिया गया है। इन कर्मचारियों में कुछ नेताओं के करीबी होते है तो वरिष्ठ अधिकारियों के खास होते है। कई मामलों में तो विवादित और आर्थिक अनियमितताओं में शामिल रहे कर्मचारियों को प्रभारी बनाया गया है।
ग्वालियर संभाग में सबसे अधिक प्रभारी
इस संभाग में कुल 15 नगर पालिका व 42 नगर परिषद है। इनमें से केवल दस नगर पालिकाओं में ही स्थायी सीएमओ की तैनाती है, 6 निकायों में दूसरे जिले के अधिकारी प्रभार में है तो 36 निकायों को प्रभारी सीएमओ संभाल रहे है। दो जगह प्रशासनिक अधिकारी व दो जगह पद रिक्त है।
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मलाईदार पदों पर करोडों गबन के आरोपी
स्थायी सीएमओ की कमी का फायदा ऐसे कर्मचारियों को भी मिल रहा है, जो पूर्व में गबन या वित्तीय अनियमितताओं के आरोपी रहे है। इनमें भिंड जिले की गोहद नगर पालिका के प्रभारी सीएमओ सुरेंद्र शर्मा पर 3 करोड के घोटाले को लेकर अक्टूबर 24 मे वित्तीय अनियमितता की एपफआईआर दर्ज है। इसी प्रकार राजस्व उपनिरीक्षक व प्रभारी सीएमओ फूप और रौन नगर परिषद संतोष सिहारे सहित आठ लोगों पर ईओडब्ल्यू द्वारा फर्जी बिल भुगतान को लेकर एफआईआर करवाई जा चुकी है। ऐसे कई उदाहरण प्रदेश में है;
वित्तीय अनियमितता के आरोप तो हटांएगे पदों से
यह कहना है आयुक्त नगरीय विकास एवं आवास विभाग संकेत भौंडवे का। उन्होंने बताया कि प्रदेश में सीएमओ की कापफी कमी है, इसलिए कई जगह प्रभारियों की नियुक्तियां की गई है। जहां भी वित्तीय अनियमितता या अन्य मामलों के आरोपी कर्मचारियों को चार्ज दिया गया है, उन्हें हटाया जाएगा।
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