सुरेश शर्मा @ भोपाल
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन मिला। कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो 2003 के बाद से प्रदेश में भाजपा की ही सरकारें रही हैं। जब प्रदेश में अल्पमत वाली कमलनाथ सरकार बनी और वह सरकार समय से पहले ही गिर गई, तब नई सरकार बनाते समय नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान को ही दिया गया। उस समय यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि नरोत्तम मिश्रा या कोई अन्य नेता नई सरकार की कमान संभाल सकता है। जब 2023 के विधानसभा चुनाव हुए, तब प्रदेश में जनता को प्रभावित करने के लिए नया नारा दिया गया था। मोदी के मन में मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश के मन में मोदी। इस नारे के प्रभावशाली क्रियान्वयन के बाद भी लाड़ली बहना और शिवराज सिंह चौहान का फिर से उपयोग किया गया। तब ये माना गया कि नई सरकार का गठन किस ऐंगल से होने वाला है।
गर्भकाल …
मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…
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आम जनता के बीच में इस बात को दमदारी से परोसा गया कि लगातार पांचवीं बार भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहने वाली है। जब चुनाव परिणाम आए तो मोदी के नाम पर भाजपा को 163 और कमलनाथ के नाम पर कांग्रेस को 66 सीटें मिली। संभवतः यह मध्यप्रदेश की विधानसभा में पहला अवसर होगा, जब कांग्रेस भाजपा के अलावा केवल एक सीट किसी अन्य दल को मिली और वह भी उस दल को जिसका कोई बड़ा राजनैतिक इतिहास नहीं है। इतने बड़े समर्थन के बाद भाजपा ने विधायक दल की बैठक बुलाई और अप्रत्याशित रूप से डॉ.मोहन यादव को मुख्यमंत्री के रूप में चयनित किया। यहां सबसे अचरज की बात यह थी कि विधायक दल को मोहन यादव के नाम का पता नहीं था और उससे भी अचरज वाली बात ये थी कि मोहन यादव को भी यह पता नहीं था कि उनके नाम की पर्ची आ सकती है। लेकिन उन्होंने प्रदेश सरकार की कमान संभाली और वे अभी तक निरंतर मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में जिस तरीके से काम प्रारंभ किया, उससे यह बिलकुल भी नहीं लगता कि उनको ये नहीं पता होगा कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना है।
एक बार उस दृश्य को और रेखांकित कर देते हैं, जब मुख्यमंत्री के तौर पर मोहन यादव के नाम की घोषणा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर कर रहे थे। उस समय मंच पर सभी बड़े नेताओं की एक लंबी पांत थी। विधायक दल के नेता निर्वाचित होने वाले मोहन यादव सभी बड़े नेताओं के पांव छूकर आशीर्वाद ले रहे थे, लेकिन जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, तब वे सारे बड़े नेता मोहन यादव के नेतृत्व में मंत्रिमंडल के सदस्य हो गए। यह बात कहने का अभिप्राय यह है कि मुख्यमंत्री के रूप में कोई भी निर्णय लेने के समय डॉ.यादव के सामने अब यह परिदृश्य जरूर रहा होगा कि उनके सीनियर नेता अब उनके सहयोगी के रूप में मंत्रिमंडल में हैं। इस आठ महीने के कार्यकाल में एक दिन भी ऐसा दिखाई नहीं दिया है, जब मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव की भूमिका में इन सीनियर नेताओं की छाया दिखाई दी हो।
राजनीति में एक और महत्वपूर्ण बात होती है और वह ये कि पहले जिस व्यक्ति ने पद को सुशोभित किया है, उसका ओरा कितना बड़ा या छोटा है? मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यकाल को देखा जाए तो शिवराज सिंह चौहान के द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड को आने वाले समय में कोई तोड़ पाएगा, इसकी संभावना न के बराबर है। स्वाभाविक है कि शिवराज का जनता में, प्रशासन में और व्यक्तित्व के रूप में एक बड़ा ओरा रहा है। यह ओरा मोहन यादव के लिए बड़ी चुनौती समीक्षकों को दिखाई दे रहा था, लेकिन इस कार्यकाल में एक दिन भी ऐसा दिखाई नहीं दिया, जब मोहन यादव को शिवराज की छाया का ग्रहण लगा हो?
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद मोहन यादव ने दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए। पहला विचारधारा को ले करके और दूसरा कार्यकर्ताओं व जनता को लेकर। उन्होने तेज आवाज में बोले जाने वाले उन लाउड स्पीकर्स को धार्मिक स्थलों से उतारने के आदेश जारी कर दिए, जिनको लेकर आस पास के लोगों को परेशानी रहती है। इस निर्णय के क्रियान्वयन में जिस प्रकार की सख्ती बरती गई, उसने ही प्रशासनिक हलकों में यह संदेश दे दिया भी कि प्रदेश में मुख्यमंत्री बदल गया है। आम जनता के साथ अधिकारियों के बर्ताव पर जिस कठोरता और तत्परता से मुख्यमंत्री यादव ने निर्णय लिए, उसका भी यही संदेश गया कि प्रदेश में निजाम बदल गया है।
कहते हैं पहले मारे सौ जीते। इसलिए मोहन यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी की सवारी करते ही ये बता दिया कि वे मानसिक रूप से मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। यहां एक बार फिर इस बात का वर्णन करना जरूरी लगता है कि विचारधारा के प्रति शिवराज सिंह चौहान का संदेश साधारण, लेकिन गंभीर होता था। लेकिन डॉ.मोहन यादव का संदेश बिना किसी लाग लपेट के है। यह भी कहा जा सकता है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने के तौर तरीके से प्रभावित हैं। जब मुख्यमंत्री जन्माष्टमी के अवसर पर अपने संबोधन में यह कहते हैं कि भारत की माटी के साथ मिलकर चलने वाले रहीम और रसखान को इस माटी ने स्वीकार किया है। तब भारत की खाने वालों को भारत की ही गाना होगी। राम और कृष्णा की जय बोलना ही है। यह संदेश भारत के प्रति समर्पण के भाव का प्रदर्शन है। किसी के प्रति कटुता का संदेश नहीं है। यह मुख्यमंत्री मोहन यादव की वैचारिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन है। उनकी संवेदनशीलता और प्रत्येक नागरिक के प्रति सहानुभूति एक महत्वपूर्ण पक्ष है। लेकिन प्रदेश की सरकार का इकबाल बुलंद हो, इसमें किसी भी प्रकार का समझौता उन्होंने नहीं दिखाया।
जहां तक प्रदेश के विकास की गति और लय का प्रश्न है? इस मामले में मुख्यमंत्री के नवाचार साफ संदेश दे रहे हैं। औद्योगिक निवेश के लिए इन्वेस्टर समिट से लगातार अनेकों प्रकार के आयोजनों का उदाहरण हमारे समक्ष हैं, क्योंकि मध्यप्रदेश देश के बीच में है और नियोजित तथा लक्ष्य आधारित निवेश की योजना पर अधिक जोर अधिकारियों द्वारा नहीं दिया गया। इसलिए एमओयू धरातल पर उस अनुपात में नहीं उतर पाए, जिसकी अपेक्षा थी। यहां राजनीतिक रूप से एक बात कही जा सकती है कि जब सत्ता संचालक लंबे समय तक जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा होता है, तब उसके सकारात्मक पहलुओं के अलावा एक नकारात्मक पहलू ये हो जाता है कि अधिकारियों के साथ उतनी कठोरता से पेश नहीं आया जा सकता, जितने की काम कराने के लिए आवश्यकता होती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस संबंध में कोई मुरब्बत नहीं बरती। यह आज औद्योगिक निवेश के बढ़ते प्रतिशत के कारण दिखाई दे रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के सम्मेलन को जिस प्रकार भारत के लगभग राज्यों में पहुंचाने का काम किया, उसका लाभ यह हुआ कि देश की विविधता, पर्यटन और सांस्कृतिक स्थितियों को जी-20 देशों के लोगों को देखने का अवसर मिला। इसको यदि मध्यप्रदेश के इस निवेश संबंधी कॉन्क्लेव में देखा जाए तो ठीक उसी तरह का नवाचार दिखाई दे रहा है। प्रदेश के विभिन्न अंचलों में उद्योगपतियों को आमंत्रित करके क्षेत्र का वातावरण, श्रमिक, भूखंड और अन्य तकनीकी जानकारियां स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध कराई जा रही हैं। उज्जैन, जबलपुर के बाद जब ग्वालियर पहुंचते हैं, तब भूमि पूजन और लोकार्पण जैसी स्थितियां निवेश आकर्षित करने के प्रमाण प्रस्तुत करने का आधार दे देने की स्थिति में आ जाती हैं। मध्य प्रदेश इस समय विकास की गति पकड़ रहा है।
प्रशासनिक रूप से किसी भी प्रकार के विवाद की स्थितियां दिखाई नहीं दे रही हैं। राजनीतिक रूप से स्थायित्व का वातावरण दिखाई दे रहा है। यह दूसरी बात है कि सीनियर नेताओं को खुद को एडजस्ट करने में अभी भी परेशानी आ रही है, लेकिन ताकतवर हाईकमान के कारण वे सब लोग मौन हैं। इस बात को प्रमाणित करने के लिए नर्सिंग घोटाले के मामले पर विधानसभा में लाए गए ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जिक्र किया जा सकता है। मुख्यमंत्री से सीनियर नेता संसदीय कार्यमंत्री हैं और विधान सभा के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने साढ़े 4 घंटे एक ध्यानाकर्षण पर चर्चा कराकर एक संदेश दिया है। संभवतया ये मध्य प्रदेश विधानसभा के इतिहास का सबसे लंबा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव होगा, जिसमें सरकार की खिंचाई करने का कदम कदम पर अवसर मिल रहा था। इसके उपरांत भी मध्यप्रदेश में किसी भी प्रकार की राजनीतिक अस्थिरता दिखाई नहीं देती है। ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि डॉ.मोहन यादव ने बहुत जल्दी ही सरकार संचालन की लय को पकड़ लिया। ऐसे वातावरण में एक भी ऐसी टिप्पणी देने का अवसर नहीं दिया, जिससे डॉक्टर यादव को मुख्यमंत्री का नया चेहरा बताया जा सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनितिक विश्लेषक हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)
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