CM Mohan Yadav को मुस्लिम, दिग्विजय सिंह को आई सनातन की याद

पीएम मोदी बार-बार ये कह रहे हैं कि ओबीसी, एससी, एसटी, दलित और आदिवासियों का हक मुसलमानों को किसी हालत में नहीं लेने दूंगा। जाहिर सी बात है मध्यप्रदेश में वोट पोलराइजेशन की कोशिश पूरी है। 

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. ऐसा लगता है कि वो पहले ही ये भांप गए थे कि सियासत में ऐसा दौर आएगा कि मोहब्बत और सियासत दोनों एक लगने लगेंगी। मध्यप्रदेश के चुनावी माहौल में भी ये दोनों भाव कुछ एक से ही नजर आने लगे हैं। जो कभी धर्म के नाम पर राजनीति नहीं करता था वो अपने सनातन होने की दुहाई दे रहा है और जो अल्पसंख्यकों से दूरी बनाने की कोशिश में हैं वो उनसे मेल मुलाकात बढ़ा रहे हैं। सियासत के ये बदले बदले रंग भी प्रदेश के राजनीति के दो आला नेता ही दिखा रहे हैं।

बीजेपी तीन सौ पार भी मुश्किल से करती नजर आ रही है

इस बार का चुनाव बहुत सी ऐसी बातों के लिए याद किया जाएगा, जो इससे पहले के किसी चुनाव में शायद ही कभी नजर आई हों। जनवरी में जब चुनावी फिजा में रंग भरना शुरू हुआ तो लगा कि पूरा चुनाव राममयी होगा। भगवान श्री राम के नाम पर ही लड़ा जाएगा। बीजेपी ने काफी हद तक ये कोशिश भी की, लेकिन इस बार विपक्ष भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरा हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी जो ये नरेटिव सेट कर चुकी है कि वो अब की बार 400 पार जीत रही है। वो तीन सौ पार भी मुश्किल से लगती नजर आ रही है। सो बीजेपी ने अब एनडीए कहना शुरू कर दिया है। राम लल्ला को घर लाने की खुशी बहुत थी, लेकिन विपक्ष को अंदाजा था कि आचार संहिता लगते ही ज्यादा राम-राम करना बीजेपी को भारी पड़ेगा। इधर आचार संहिता लगी और उधर विपक्ष ने नियम कायदे की दुहाई देना शुरू कर दिया। जो चाहा था सो हुआ भी आखिरकार खुद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को ये कहना पड़ा कि राम मंदिर उनके लिए चुनावी मुद्दा नहीं है। राम मंदिर को छोड़ कर बीजेपी ने मुसलमान, मंगलसूत्र और अब भैंसों को भी पकड़ लिया है।

बीजेपी की वोट पोलराइजेशन की कोशिश पूरी है

कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर इतनी चर्चा खुद कांग्रेस ने नहीं की जितनी खुद पीएम मोदी हर सभा में कर रहे हैं और मजबूरन हर न्यूज चैनल को वो मैनिफेस्टो दिखाना पड़ा और उसके डिटेल भी देने पड़े। खैर राष्ट्रीय राजनीति पर कौन किसके नरेटिव पर घिर रहा है ये फिलहाल समझ से परे है। हम बात करते हैं एमपी की ही राजनीति की। यहां पर बस ये याद दिला दूं कि पीएम मोदी बार-बार ये कह रहे हैं कि ओबीसी, एससी, एसटी, दलित और आदिवासियों का हक मुसलमानों को किसी हालत में नहीं लेने दूंगा। जाहिर सी बात है वोट पोलराइजेशन की कोशिश पूरी है। दूसरी तरफ एमपी में हालात संभालने के लिए अब सीएम मोहन यादव को नई पहल करनी पड़ी है। हाल ही में वो खुद मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता से मुलाकात करते हुए नजर आए हैं। उन्होंने खुद अपने ट्विटर अकाउंट पर ये पोस्ट किया कि जावरा में दाऊदी बोहरा समाज के आदरणीय धर्मगुरु सैयदना आलीकदर मुफद्दल सैफुद्दीन जी से मुलाकात कर समाज के कल्याण और प्रगति के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। प्रदेश के विकास में भी उन्होंने बोहरा समाज को हमेशा भागीदार बताया दाउदी बोहरा समाज ने भी इस मुलाकात के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। एक तरफ बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया है। दूसरी तरफ सीएम मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) इसी समाज से मुलाकात कर रहे हैं। 

बीजेपी का बदला रुख ये बता रहा है कि फिजा बदली हुई है

पहले आपको बता दूं कि दाउदी बोहरा समाज के बारे में आपको नेट पर बहुत सारी जानकारी मिल जाएगी। कुछ वेबसाइट ये भी दावा करती नजर आएंगी कि ये समाज खुद को मुसलमानों से अलग मानता है, लेकिन द दाउदी बोहरा डॉट कॉम नाम की ऑफिशियल वेबसाइट पर खुद इस समाज ने ये जानकारी दी है कि ये मुस्लिम कम्यूनिटी है जो चालीस से ज्यादा देशों में मौजूद है। इस समाज के लोगों से मुलाकात करना और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करना। इसके पीछे आखिर क्या मजबूरी है। क्या घटता हुआ मत प्रतिशत देखकर बीजेपी को ये लगने लगा है कि वो सरेआम चाहे जो भी बयान दे, लेकिन पर्दे के पीछे सबको साथ लेकर चलना जरूरी है। क्योंकि मत प्रतिशत घटा तो जीत भले ही मिल जाए। लॉन्ग टर्म में उसका नुकसान जरूर होगा। बीजेपी का बदला रुख ये बता रहा है कि फिजा की दिशा कुछ बदली हुई जरूर है। क्योंकि जिस तरह केंद्रीय नेतृत्व ने चार सौ पार का नारा गोल कर दिया उसी तरह मध्यप्रदेश में 29 की 29 सीटें जीतने का कॉन्फिडेंस भी नदारद नजर आ रहा है।

दिग्विजय सिंह ने अपने क्षेत्र में खेला इमोशनल कार्ड

वैसे रुख सिर्फ बीजेपी ने नहीं बदला है कांग्रेस के एक नेता का मिजाज भी कुछ बदला हुआ है। ये वो नेता हैं जिन्होंने सबसे पहले हिंदु आतंकवाद का टर्म कॉइन किया था। अब वही सनातन की बातें कर रहे हैं और खुद के सनातन होने का सबूत दे रहे हैं। ये नेता कोई और नहीं दिग्विजय सिंह  है। जो 33 साल बाद अपने ही गढ़ में फिर से चुनाव लड़ रहे हैं और जमकर मेहनत भी कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने अपने चुनाव प्रचार में हर वो दांव खेला है जिसकी जरूरत है। सोशल मीडिया पर चुनावी हवाबाजी करने की जगह वो देसी अंदाज में प्रचार में जुटे रहे। अपने क्षेत्र को पूरा पैदल लांघा और अपने मेनिफेस्टो को पोस्टर लेकर गांव वालों को एक एक बात समझाई है। चुनावी मौसम में ये करना जरूरी है, सो किया भी। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने अपने क्षेत्र की जनता पर इमोशनल कार्ड भी खूब खेला है। उन्होंने अपनी प्रजा को ये पूरी तरह अहसास दिलाया है कि उनके प्रिय राजा साहब का ये आखिरी चुनाव हो सकता है। वो 77 के हो चुके हैं। हो सकता है अगले चुनाव में इतना संघर्ष करने की स्थिति में न रहें। ये इमोशन कार्ड भी वो मतदाता की तरफ उछाल चुके हैं। इसके बाद उनका आखिरी मास्टर स्ट्रोक है, उनका धर्म से जुड़ा हुआ पत्र और उससे भी चौंकाने वाली बात है, उनके जरिए आरएसएस की तारीफ होना। दिग्विजय सिंह वो कांग्रेस नेता हैं जिन्होंने कभी आरएसएस की तारीफ नहीं की, लेकिन इस चुनाव में वो आरएसएस की खूबियां भी गिनाते नजर आए। अपनी एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा कि आरएसएस जनसंघ में कुछ न होने के बावजूद लोग टिके रहे। कभी विचारधारा को नहीं छोड़ा। वो लोग बिन पेंदी के लोटे नहीं थे। कम से कम उनमें हिम्मत तो थी। एक जगह खड़े रहने की। हालांकि, आखिर में वो ये कहने से नहीं चूके कि वो आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित नहीं है। असल में अपने इस बयान के जरिए वो उन नेताओं को आइना दिखा रहे थे जो कांग्रेस के मुश्किल वक्त में उसका साथ छोड़कर चले गए। जिसमें उनके धुर विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं।

दिग्विजय सिंह ने शायद पहली बार हिंदुत्व का कार्ड भी खेला

इमोशनल कार्ड और आरएसएस का नाम लेने के बाद दिग्विजय सिंह ने शायद पहली बार ही हिंदुत्व का कार्ड भी खेला और अपने सनातन होने पर भी बात की। इसके लिए उन्होंने बकायदा राजगढ़ लोकसभा सीट के मतदाताओं को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि मैंने सदैव सत्य की रक्षा के लिये, सदैव निडर होकर आवाज उठाई है। हमेशा सनातन धर्म के सिद्धान्तों पर चलता रहा हूं, लेकिन राजनीतिक जीवन में वोटरों के लिये मैंने अपने आराध्य का कभी इस्तेमाल नहीं किया। हमारे घर यानी राघोगढ़ के किले में राघौजी महाराज जी 300 साल से चली आ रही पूजा हो या नर्मदा जी की 3300 किलोमीटर ज्यादा लंबी परिक्रमा हो, पूरी निष्ठा से दोनों संकल्पों को जिया है। दिग्विजय आगे लिखते हैं कि 30 साल से एकादशी को पारपुर में विद्वोवा के दर्शन करने भी जाता हूं। यह सब लिखकर मुझे आपके सामने भक्ति का सबूत प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं है, लेकिन प्रतिद्वंद्वी भाजपा धर्म के नाम पर मेरे खिलाफ मनगढ़त मुद्दे बनाकर बहकाने का कुत्सित प्रयास करती रहती है। इसलिए आपको सचेत कर रहा हूं कि बहकावे में न आएं। अपने हित को ध्यान में रखकर वोट कीजिएगा।

मतदाताओं की चुप्पी नतीजों के साथ ही खत्म होगी

नाम राम का हो या राघौजी महाराज का। धर्म तो धर्म ही होता है। ये भी चुनाव जीतने की लालसा ही तो है, जिसने दिग्विजय सिंह जैसे नेता को मजबूर कर दिया कि वो धर्म के मुद्दे पर अपना पक्ष रखे। इस चुनाव में प्रचार के रंगों के अलावा नतीजे भी बहुत दिलचस्प ही होंगे। चार सौ पार के नारे और बीजेपी डेढ़ सौ सीटों पर सिमट जाएगी के दावे कितने सही होते हैं ये इवीएम के खुलने पर ही सामने आएगा, लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि नेताओं के जबरदस्त बयानों के बीच मतदाताओं की घनघोर चुप्पी कुछ हैरान करने वाले नतीजों के साथ ही खत्म होगी।

CM Mohan Yadav दिग्विजय सिंह