संजय गुप्ता, INDORE. नगर निगम में फर्जी काम के लिए 28 करोड़ के फर्जी बिल घोटाले को लेकर द सूत्र ने मौके पर पहुंचकर FIR में शामिल पांचों कंपनियों के पते की जांच की। यह कंपनियां पूरी तरह से फर्जी है और डमी रूप से केवल बिल बनाने के लिए ही बनी हुई थी। कुल मिलाकर फर्जी कंपनियों को नगर निगम ने आखिर 28 करोड़ के ठेके कैसे दिए, यदि मूल ठेका लेने वाले ने पेटी कांट्रेक्ट पर इन कंपनियों को लिया है तो उन्होंने जानबूझकर इन कंपनियों को बिल के लिए चुना। यह खेल नगर निगम के अधिकारियों या बड़े स्तर पर किसी की संलिप्तता के संभव ही नहीं है। सीआईडी सीरियल को जो एसीपी प्रद्युम्न का फेसम डॉयलाग है- कुछ तो गड़बड़ है... दया, इसमें भी यही साफ दिख रहा है। यहां भी कुछ तो गड़बड़ है ....निगमायुक्त शिवम वर्मा ( Municipal Commissioner Shivam Verma ) जी
इस तरह एक ही पते पर है कंपनियां, द सूत्र को मौके पर क्या मिला?
- नींव कंस्ट्रक्शन, मोहम्मद साजिद की, ग्रीन कंस्ट्रक्शन जो मोहम्मद सिद्दकी की है और किंग कंस्ट्रक्शन मोहम्मद जाकिर की यह तीनों ही 147 मदीना नगर इंदौर के पते पर रजिस्टर्ड है। मौके पर इन कंपनियों की किसी को कोई जानकारी नहीं है, एक मकान बना हुआ मिला है। द सूत्र के कैमरामैन गौतम सरदार ने जब मौके पर पहुंचकर जानकारी ली तो यहां कंपनी को लेकर कोई जानकारी नहीं है और ना ही किसी तरह के बोर्ड लगे हुए हैं। इस मकान को लेकर किसी भी आसपास के लोगों को कोई जानकारी नहीं है। ना ही साजिद, सिद्द्की और जाकिर की किसी को जानकारी है।
- क्षितिज इंटरप्राइजेस रेणु बडेरा की और जाहन्वी इंटरप्राइजेस राहुल वडेरा दोनों ही 6 आशीष नगर के पते पर रजिस्टर्ड है। यह दोनों कंपनियां भी फर्जी है। यहां भी द सूत्र की टीम गई तो यहां बड़ा बंगला बना है, जो काफी समय से बंद है और ताला लगा है। यहां भी कंपनी के बोर्ड व अन्य कोई भी जानकारी मैके पर नहीं है।
- इन सभी के अन्य दस्तावेज भी फर्जी होने की आशंका है, जिसकी एमजी रोड पुलिस द्वारा जांच की जा रही है। पुलिस इन सभी कंपनियों की संपत्तियों की तलाश भी कर रही है ताकि कुर्की की कार्रवाई की जा सके।
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जीएसटी छापे में आ चुका ये कंपनियां कमीशन लेकर बिल देती है
वहीं फर्जी, बोगस बिल बनाने वाली कंपनियों को लेकर जीएसटी विभाग मप्र द्वारा की गई जांच में भी यह कंपनियां फर्जी साबित हो चुकी हें। दो साल पहले स्टेट जीएसटी ने इन्हें पकड़ा था और 13 करोड़ से ज्यादा की रिकवरी निकाली थी। यह कंपनियां अंतरराज्यीय बोगस बिल कंपनियों के नेटवर्क से लिंक है। राहुल और रेणु बडेरा की जान्हवी व क्षितिज आपस में लिंक है। इन्हें बालाजी इंटरप्राइजेस नाम की कंपनी से सप्लाई दिखाया जाता है। इसका पता प्रजापत नगर में हैं। वहीं ग्रीन कंस्ट्रक्शन व नींव कंस्ट्रक्शन भी इसी रैकेट में शामिल है। इन कंपनियों के तार गुजरात और दिल्ली तक जुड़े हैं और बिल जारी करने का ही काम करती है और बदले में दो से तीन फीसदी तक कमीशन लेती है।
दो MIC सदस्यों पर लगाए कांग्रेस ने आरोप
उधर कांग्रेस ने इस मामले में आरोपों का दौर शुरू कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे इसे लेकर अधिकारियों की संलप्तिता बात खुलकर कह चुके हैं और इसे बड़ा घोटाला बता चुके हैं। वहीं प्रदेश महासचिव राकेश यादव ने इसमें बिना नाम लिए साफ कहा कि घोटाले मे दो एमआईसी सदस्य शामिल है। बताया जा रहा है कि इसमें एक विधानसभा दो से और एक विधानसभा एक से जुड़े हुए हैं। वहीं निगमायुक्त शिवम वर्मा द्वारा बनी जांच कमेटी में भी लेखा शाखा और आडिट शाखा के अधिकारी होने पर भी कांग्रेस ने खासी आपत्ति ली है। इसमें लेखा विभाग के अपर आयुक्त देवधर दरवाई, सहायक लेखा अधिकारी रमेशचंद्र शर्मा, सहायक लेखा पाल आशीष तागड़े, रूपेश काले शामिल है। यादव का कहना है कि इन्हीं विभाग में बिल पास करने का जिम्मा होता है और इनकी भूमिका खुद जांच में होनी चाहिए, वह जांच कमेटी में कैसे हो सकते हैं? इस पूरे घोटाले की राशि 150 करोड़ होने का आरोप लगाया गया है।
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नाला टेपिंग काम की है यह फर्जी बिल राशि
बताया जा रहा है कि जिस काम के लिए इंदौर को वाटर प्लस का दर्जा मिला और जिसके चलते स्वच्छता सर्वे में भी इंदौर को नंबर वन बनने में मदद मिली, उस नाला टेपिंग काम के लिए ही यह फर्जी बिल की राशि है। यह काम 200 करोड़ रुपए का था, जिसमें नालों को कान्ह नदी में मिलने से रोकना था। यह कोविड आने से एक साल पहले प्रोजेक्ट आया था। जानकारी के अनुसार कोविड काल में ही यह फर्जी कंपनियां बनी और इनके जरिए फर्जी बिल का खेल किया गया।
निगम में टेंडर, वर्कआर्डर से लेकर ऐसे होती है राशि पास
- एक लाख से अधिक के काम के लिए टेंडर बुलाते हैं, आयुक्त और अपर आयुक्त के हस्ताक्षर से फाइल बनती है
- संबंधित शाखा से वर्कआर्डर जारी होने के बाद ठेकेदार काम करता है
- जोन का सब इंजीनयिर काम का सत्यापन करता है, बिल बनाता है। इस पर सब इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर के हस्ताक्षर होते हैं। बड़ा प्रोजेक्ट होनमे पर कंसल्टेंट भी हस्ताक्षर करता है
- जोनल अधिकारी हस्ताक्षर कर फाइल हेड आफिस भेजते हैं
- ड्रेनेज विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर और मुख्य इंजीनियर के हस्ताक्षर होते हैं
- सभी के हस्ताक्षर के बाद फाइल अपर आयुक्त के पास जाती है और फिर वहां से मंजूर होकर आडिट शाखा और फिर लेखा शाखा में जाती है।
महापौर, निगमायुक्त और विपक्ष ने यह किया
इस फर्जी बिल घोटाले में बताया जा रहा है कि फाइल सीधे ठेकेदार से लेखा शाखा तक पहुंची। यह कैसे हुआ? इस पर सबकी चुप्पी है। वैसे यह घोटाला तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह की नजर में आ चुका था और उन्होंने फाइल खुलवा दी थी, जिसके बाद अब इसमें केस दर्ज हुआ है और निगमायुक्त वर्मा ने जांच बैठाई है, महापौर पुष्यमित्र भार्गव ( Mayor Pushyamitra Bhargava ) ने पीएस को पत्र लिखा है तो वहीं कांग्रेस ने खुलकर आरोप लगाए हैं।