BHOPAL. कांग्रेस ( Congress ) के एक फैसल ने मध्यप्रदेश लोकसभा चुनाव में सीटों का गणित उलझा दिया है। मैं ये दावा तो नहीं करता कि कांग्रेस अब कुछ सीटों पर श्योरशॉट जीत हासिल कर रही है, लेकिन ये जरूर कह सकता हूं कि मध्यप्रदेश में अब बीजेपी ( BJP) के लिए चुनावी जंग बहुत आसान नहीं रह गई है। अब तक सिर्फ छिंदवाड़ा की सीट ने ही बीजेपी की नाक में दम कर रखा था, लेकिन अब चंद और सीटों पर बीजेपी को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। कांग्रेस के इस फैसले का प्रेशर किस कदर है। ये तो आप इसी से समझ सकते हैं कि खुद अमित शाह ने एमपी और खासतौर से छिंदवाड़ा की कमान खुद थाम ली है, लेकिन माथा पच्ची यहीं खत्म होने वाली नहीं है। क्योंकि कांग्रेस ने नए, पुराने चेहरे और कुछ पढ़े लिखे चेहरों की ऐसी खिचड़ी पकाकर मैदान में प्रत्याशी उतारे हैं जो बीजेपी का चुनावी जायका जरूर खराब कर सकते हैं।
छिंदवाड़ा दौरे के लिए मोदी, शाह और उमा की डिमांड
कांग्रेस ने अब तक जितने उम्मीदवार डिक्लेयर किए हैं। उसे जरा गौर से देखिएगा। आपको कांग्रेस के फैसले में थोड़ी सी बीजेपी की रणनीति की झलक दिखेगी। थोड़ा सा कांग्रेसीपन भी टपकेगा और थोड़ी सी आम आदमी पार्टी की सोच भी नजर आएगी। शुरूआत हम छिंदवाड़ा सीट से ही करते हैं। जो बीजेपी के लिए इस बार नाक का सवाल बन गई है। कमलनाथ के गढ़ में ही नाथ परिवार की जड़े हिलाने की बीजेपी ने हर मुमकिन कोशिश कर ली है, लेकिन अब भी इत्मीनान नहीं है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की झोली में बची एकमात्र छिंदवाड़ा सीट जीतने के लिए बीजेपी ने हर पैंतरा आजमाया है। विधानसभा चुनाव से पहले यहां पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैली, सभाएं और बैठकें सब हो चुकी हैं। इसके बाद कोशिश ये भी हुई कि सीट हाथ नहीं आती तो कमलनाथ को ही मिला लिया जाए, लेकिन वहीं भी दाल नहीं गल सकी। अब काम जड़ों को खोखला करने से शुरू हुआ है। बीजेपी के कद्दावर नेता छिंदवाड़ा में बहुत से कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं को बीजेपी में शामिल कर चुके हैं। जमीनी स्तर पर इस बदलाव का असर कमलनाथ की नेटवर्किंग पर जरूर पड़ेगा। उस पर दोहरा वार करने के लिए खुद अमित शाह भी छिंदवाड़ा में दौरा करने पहुंच रहे हैं। इस सीट को लेकर जो मंथन हुआ है। उसमें भी पूरी ताकत झौंकने की प्लानिंग है। छिंदवाड़ा के लिए पीएम मोदी, अमित शाह और साथ में उमा भारती के दौरे की भी जबरदस्त डिमांड है। एक बात याद दिला देता हूं बीजेपी ने यहां से बंटी साहू को टिकट दिया है। ये वही नेता हैं जो विधानसभा चुनाव में कमलनाथ से शिकस्त खा चुके हैं।
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र बीजेपी का अजेय गढ़ बना
कांग्रेस ने अब तक जो नाम जारी किए हैं उसमें इस बार अपने बड़े चेहरों के साथ नए चेहरों को मौका दिया है। साथ ही दो विधायकों को भी चुनावी मैदान में उतारा है। एक दशक से राजगढ़ लोकसभा सीट बीजेपी का अजेय गढ़ बना हुआ है, वहां से कांग्रेस पार्टी ने पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को मौका दिया है। बीजेपी की तर्ज पर कांग्रेस ने भी यहां बड़े चेहरे पर ही बड़ा दांव लगाया है। राजगढ़ लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह सांसद रह चुके हैं। बाद में उनके भाई भी यहां से लड़े हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। उसके बाद से बीजेपी के रोडमल नागर यहां से सांसद हैं। वहीं, राजगढ़ को दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा सीट के अंदर आने वाली विधानसभा सीटों पर उनकी स्थिति कमजोर दिखी है। उनके भाई चाचौड़ा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। बेटे को भी 5 हजार के करीब वोटों से जीत मिली है। कांग्रेस पार्टी ने राजगढ़ से दिग्विजय सिंह को कड़ी टक्कर देने के लिए मैदान में उतारा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वह भोपाल से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। 2024 के चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। वह पहले ही चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे थे। पार्टी से टिकट मिलने के बाद दिग्विजय सिंह राजगढ़ में एक्टिव हो गए हैं।
झाबुआ-रतलाम से बीजेपी ने दिया नए चेहरे को मौका
अब बात करते हैं झाबुआ-रतलाम सीट की। इस आदिवासी बाहुल सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया पर भरोसा जताया है। 2009 में कांतिलाल भूरिया रतलाम लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं। 2014 और 2019 में भी पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था। दोनों बार कांतिलाल भूरिया को हार का सामना करना पड़ा है। वह, एमपी कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। रतलाम लोकसभा सीट से कांग्रेस ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी ने इस बार रतलाम से नए चेहरे को मौका दिया है। बीजेपी ने गुमान सिंह डामोर की जगह अनिता नागर सिंह चौहान को टिकट दिया है। ऐसे में मुकाबला यहां भी दिलचस्प होगा। बीजेपी ने आदिवासी वोटरों के साथ-साथ महिला वोटरों को लुभाने की भी पूरी कोशिश की है। 1100 गाड़ियों के साथ बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए गुड्डू राजा बुंदेला तो आपको याद ही होंगे। एमपी विधानसभा चुनाव से पहले गुड्डू राजा बुंदेला कांग्रेस में शामिल हुए थे। सितंबर 2023 में वह 1100 गाड़ियों के काफिले के साथ कांग्रेस में शामिल होने आए थे। उस वक्त उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थी। बुंदेला को लेकर चर्चा थी कि वह खुरई विधानसभा सीट से बीजेपी के कद्दावर उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। तब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में खुरई से रक्षा सिंह राजपूत को टिकट दिया था। अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सागर से गुड्डू राजा बुंदेला को टिकट दिया है। उनका बीजेपी उम्मीदवार लता वानखेड़े से मुकाबला है। लता वानखेड़े तीन बार सरपंच रही हैं और महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही हैं।
भोपाल, इंदौर और उज्जैन कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी
अब बात करते हैं भोपाल, इंदौर और उज्जैन सीट की। ये सीटें तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी ही नजर आ रही हैं। इन सीटों पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की तर्ज पर कुछ नए और सामाजिक रूप से सक्रिय चेहरों पर दांव लगाया है।
1. भोपालः
सबसे पहले बात भोपाल की करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सबसे हाईप्रोफाइल सीट थी। यहां से मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को बीजेपी ने टिकट दिया था। कांग्रेस से उनके खिलाफ दिग्विजय सिंह मैदान में थे। ऐसे में इस सीट की चर्चा खूब हुई थी, लेकिन दिग्विजय सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। इस बार बीजेपी ने यहां से आलोक शर्मा को टिकट दिया है। उनके खिलाफ कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को टिकट दिया है। अरुण श्रीवास्तव भोपाल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं। साथ ही दिग्विजय सिंह के करीबियों में उनकी गिनती होती है। संगठन के स्तर पर श्रीवास्तव काफी एक्टिव बताए जाते हैं। कायस्थ समाज का वोटबैंक भी भोपाल में अच्छाखासा है। अरुण श्रीवास्तव खुद उसी समाज से आते हैं। हालांकि, भोपाल बीजेपी का अजेय किला माना जाता रहा है। सिर्फ एक समीकरण साधकर अरुण श्रीवास्तव क्या कामयाब हो सकेंगे ये भी देखना दिलचस्प ही होगा।
2. इंदौरः
इंदौर में तो उम्मीदवार ढूंढने के लिए ही कांग्रेस को खासी मशक्कत करनी पड़ी है। पार्टी शुरुआत में चाहती थी कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी वहां से चुनाव लड़े, लेकिन वो तैयार नहीं हुए, साथ ही कई बड़े नेताओं ने पहले ही पाला बदल लिया है। ऐसे में पार्टी ने नए चेहरे अक्षय कांति बम पर दांव लगाया है। वह इंदौर में एक संस्थान के संचालक हैं। इंदौर लोकसभा सीट पर बीजेपी 35 साल से लगातार जीत रही है। कांग्रेस में मची भगदड़ के बीच इस किले को भेदना आसान नजर नहीं आता है। वो भी तब जब विधानसभा चुनाव में पूरे इंदौर जिले से कांग्रेस का सफाया हो चुका है और दिग्गज साथ छोड़ चुके हैं।
3. उज्जैनः
इसके बाद उज्जैन लोकसभा सीट की बात करें तो बीजेपी ने अपने सांसद अनिल फिरोजिया को ही फिर से मौका दिया है। वहीं, कांग्रेस ने शिक्षाविद महेश परेमार को उम्मीदवार बनाया है। उज्जैन में बीजेपी उम्मीदवार को टक्कर देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। बीजेपी ने यहां कई प्रयोग किए हैं। अब तो प्रदेश के मुखिया मोहन यादव भी यहीं से आते हैं। इन चेहरों के अलावा कांग्रेस ने अभी तक अपने पांच सीटिंग विधायकों को टिकट दिए हैं। उज्जैन से महेश परमार के अलावा शहडोल से फुंदेलाल मार्को को टिकट दिया है।
कुल मिलाकर कांग्रेस को सुकून की जीत नहीं पाएगी
अब तक जो लिस्ट जारी की गई हैं उसमें कांग्रेस ने कुछ सीटों को हाथ भी नहीं लगाया है। जिसमें से एक सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही है। जो कांग्रेसी से बीजेपी बने है। पहले कांग्रेस ने यहां केपी यादव पर ही डोरे डाले जो सिंधिया को पिछली बार हराने में कामयाब हुए थे, लेकिन वो फिलहाल बीजेपी में ही बने रहेंगे। इसके अलावा शिवराज सिंह की सीट विदिशा पर भी कांग्रेस सोच में पड़ी हुई है। ग्वालियर, मुरैना, खंडवा और दमोह हैं, जहां टिकट नहीं फाइनल हुए हैं। एक गुना सीट को छोड़ दें तो बाकी सीटें बीजेपी की झोली में ही आती रही हैं। यहां भी कांग्रेस को प्रत्याशी चुनने के बाद जीत के आसपास भी पहुंचने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी, लेकिन अब तक कांग्रेस के फैसले से ये साफ है कि बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किलें तो बढ़ ही गई हैं। अब सुकून से जीत हासिल करना बहुत आसान नहीं होगा।