मध्यप्रदेश कांग्रेस इन दिनों अजीबो-गरीब मंचीय राजनीति का गवाह बन रही है। मंच पर भीड़ और व्यवस्था की कमी से तंग आकर अब पार्टी के वरिष्ठ नेता खुद को मंच से दूर करने लगे हैं। मंच का आकर्षण अब नेताओं के लिए उलझन का कारण बन गया है। इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत ग्वालियर से हुई जहां संविधान बचाओ रैली के दौरान मंच पर हुए हंगामे ने सियासत की दिशा ही बदल दी।
दिग्विजय ने जताई तीखी नाराजगी
फूलबाग मैदान, ग्वालियर में आयोजित संविधान बचाओ रैली कांग्रेस के भीतर एक नया संकेत छोड़ गई। कार्यक्रम में मंच पर इतनी भीड़ जमा हो गई कि वहां अफरा-तफरी मच गई। इस दृश्य से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बेहद नाराज हुए। मंच की अव्यवस्था से असंतुष्ट दिग्विजय ने मंच से ऐलान किया कि वे अब कभी भी मंच पर नहीं बैठेंगे। वे केवल भाषण देने के लिए मंच पर जाएंगे, जब बुलाया जाएगा।
पूर्व कानून मंत्री ने भी जताई असहमति
दिग्विजय सिंह के इस ऐलान के बाद अब पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी शर्मा ने भी वही रुख अपनाया है। उन्होंने साफ कहा कि वे अब किसी भी कार्यक्रम में मंच पर नहीं बैठेंगे। केवल तब मंच पर जाएंगे जब भाषण देना होगा। उन्होंने कहा कि दिग्विजय सिंह बड़े नेता हैं, वे जब दिल्ली से नेता आते थे तब भी मंच पर नहीं बैठते थे। अब मैं भी उन्हीं की राह पर चलूंगा।
बीजेपी ने कसा तंज, कहा- कांग्रेस के मंच कभी नहीं सुधरेंगे
इस मंचीय नाराजगी को लेकर भाजपा विधायक भगवानदास सबनानी ने कांग्रेस पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि दिग्विजय सिंह कुछ भी कर लें, लेकिन कांग्रेस की मंचीय संस्कृति नहीं बदलेगी। उन्होंने कहा कि “मंच पर चढ़ना कांग्रेस की परंपरा है, भले ही मंच टूट जाए, कांग्रेसी फिर भी मंच पर ही नजर आएंगे। दिग्विजय सिंह अपने स्तर पर नियम बना लें, लेकिन पार्टी को सुधार नहीं पाएंगे।
बड़े नेताओं का मंच से किनारा कांग्रेस के लिए संकेत
लगातार दूसरे वरिष्ठ नेता का मंच पर न बैठने का ऐलान कांग्रेस के भीतर चल रही असंतोष की लहर को उजागर करता है। यह महज एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर संवाद और व्यवस्था की खामियों पर गंभीर संकेत भी देता है। मंच का मोहभंग पार्टी की आंतरिक कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
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क्या अब मंच कांग्रेस में महज औपचारिकता बनकर रह जाएगा?
जहां एक तरफ मंच सत्ता और संगठन का प्रतीक माना जाता रहा है, वहीं अब कांग्रेस के बड़े नेता मंच से खुद को अलग कर रहे हैं। यह सवाल उठता है कि क्या मंच अब कांग्रेस के लिए सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगा? या फिर यह किसी नई राजनीति की भूमिका है, जहां सादगी और नियंत्रण का संदेश दिया जा रहा है?
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