कांग्रेस के मोती सिंह ने डबल बैंच में लगाई याचिका, 3 मई को हाईकोर्ट करेगा सुनवाई

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग के नियमों तहत मोती सिंह को अपने फार्म पर दस प्रस्तावकों के हस्ताक्षर कराने चाहिए थे, जो नहीं होने के चलते रिटर्निंग अधिकारी ने रिजेक्ट किया था। 

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Pratibha ranaa
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संजय गुप्ता, INDORE. कांग्रेस की इंदौर लोकसभा सीट में अक्षय बम के नाम वापस लेन के बाद मोती सिंह (  Moti Singh ) को फिर से उम्मीदवार बनाने के लिए याचिका इंदौर हाईकोर्ट में लगाई थी जो खारिज हो चुकी है। अब इस मामले में वह फिर से अपील में चले गए हैं और हाईकोर्ट की डबल बैंच ने याचिका स्वीकार कर ली है। इसमें शुक्रवार 3 मई को सुनवाई संभावित है।  

हाईकोर्ट के लिखित आर्डर में यह है

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग के नियमों तहत मोती सिंह को अपने फार्म पर दस प्रस्तावकों के हस्ताक्षर कराने चाहिए थे, जो नहीं होने के चलते रिटर्निंग अधिकारी ने रिजेक्ट किया था। या फिर उन्हें निर्दलीय के तौर पर भी अलग से नामांकन फार्म जमा कराना चाहिए था। उनका फार्म रिजेक्ट हो चुका है इसलिए अधिकृत प्रत्याशी (अक्षय बम) के नाम वापस लेने के बाद उन्हें राजनीतिक दल का प्रत्याशी नहीं माना जा सकता है क्योंकि उनका फार्म 26 अप्रैल को ही दस प्रस्तावक नहीं होने के चलते खारिज हो चुका है। 

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मोतीसिंह की ओर से यह रखा गया था पक्ष

अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने मोती सिंह की ओर से पक्ष रखा था कि सिंह ने बम के साथ सब्सीट्यूट कैंडीडेट के रूप में फार्म भरा था। क्योंकि राजनीतिक दल की ओर से नाम था इसलिए प्रस्तावक दस की जगह केवल एक के हस्ताक्षर थे। लेकिन मेरा फार्म 26 अप्रैल को स्क्रूटनी कमेटी ने रिजेक्ट कर दिया क्योंकि इसमें दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं थे। लेकिन जब 29 अप्रैल को बम ने फार्म वापस ले लिया तो तो मेरा नाम जिंदा होता है और मुझे जो दस नाम नहीं होने के चलते रिजेक्ट किया गया था वह आधार खत्म हो गया और मैं फिर 29 को सब्सीट्यूट प्रत्याशी के तौर पर आ जाता हूं, मेरा नाम मान्य किया जाए और कांग्रेस का चिन्ह दिया जाए। 

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा था

हाईकोर्ट जस्टिस विवेक रूसिया ने इस आधार पर मामला खारिज कर दिया उन्होंने कहा कि यदि आप दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर रखते हुए फार्म को 29 अप्रैल तक नाम वापसी तक जिंदा रखते तो फिर मूल प्रत्याशी के नाम वापस लेने पर आपका अधिकार पैदा होता। लेकिन चुनाव में कोई भी आर्डर बैक नहीं होता है, इसलिए स्क्रूटनी कमेटी ने जब आपका फार्म ही 26 को रिजेक्ट कर दिया तो फिर 29 अप्रैल को आपका अधिकार ही जिंदा नहीं होता है। आपको 29 अप्रैल तक अपने आपकी स्थिति को बनाए रखना था, दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर होते और फार्म रिजेक्ट नहीं होता तो फिर मूल प्रत्याशी के फार्म के विड्राल होने के बाद आप राजनीतिक दल के प्रत्याशी बनने और चुनाव चिन्ह पाने का दावा कर सकते थे। याचिका में चुनाव आयोग, जिला चुनाव अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी और अक्षय बम को पार्टी बनाया था। 

ट्रेन के टिकट से समझाया था हाईकोर्ट ने

जस्टिस विवेक रूसिया ने इस मामले में अधिवक्ता को ट्रेन के टिकट को लेकर समझाया। जब वेटिंग क्लीयर नहीं होती तो आप ट्रेन में चढ जाते है लेकिन आपको जनरल का टिकट लेना होता है। यदि वेटिंग क्लीयर नहीं हुई और कोई टिकट आपके पास नहीं हुआ तो आप विदाउट टिकट में आ जाओगे। आपने 26 अप्रैल को ही फार्म रिजेक्ट करा लिया, जबकि आपत्ति लेने थी और दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर रख फार्म को 29 अप्रैल तक जिंदा रखना था।

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