BJP ने अपने कुनबे में 7 लाख नेता जोड़े, इनमें डॉक्टर और वकील भी, पढ़ें पूरा एनालिसिस

MP BJP का दावा है कि हर दिन औसत रूप से 200 लोग पार्टी में आ रहे हैं। इनमें कांग्रेस के साथ दीगर पार्टियों के नेता भी हैं। इसी के साथ एक दावा यह भी है कि 23 अप्रैल तक की स्थिति में 20 हजार 442 कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़कर BJP का 'हाथ' पकड़ा है। 

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Pratibha ranaa
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रविकांत दीक्षित, BHOPAL. मध्यप्रदेश कांग्रेस में भगदड़ मची है। ताजा मामला अक्षय कांति बम का है। उन्हें कांग्रेस ने इंदौर से लोकसभा प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्होंने अपना नामांकन वापस लेकर बीजेपी ( BJP ) का दामन थाम दिया है। इस फेहरिस्त में दूसरा नाम है रामनिवास रावत ( Ramnivas Rawat ) का। श्योपुर जिले की विजयपुर सीट से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत भी अब बीजेपी के हो लिए हैं। इन्हीं के साथ मुरैना की मेयर शारदा सोलंकी भी कांग्रेस छोड़ चुकी हैं ( Lok Sabha elections 2024 )। 

चुनाव के बीच मची इस सियासी भगदड़ पर 'द सूत्र' ने पूरी पड़ताल की है। 

पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

क्या हर दिन 200 नेता ज्वाइन कर रहे बीजेपी?

मध्यप्रदेश बीजेपी का दावा है कि हर दिन औसत रूप से 200 लोग पार्टी में आ रहे हैं। इनमें कांग्रेस के साथ दीगर पार्टियों के नेता भी हैं। इसी के साथ एक दावा यह भी है कि 23 अप्रैल तक की स्थिति में 20 हजार 442 कांग्रेसियों ने अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का 'हाथ' पकड़ा है। कुल मिलाकर आंकड़ा 2 लाख 84 हजार 738 नेताओं के बीजेपी ज्वाइन करने का बताया जा रहा है। इनके अलावा 4 लाख 50 हजार कार्यकर्ता सदस्यता अभियान से जोड़े गए हैं। यानी कुल मिलाकर बीजेपी ने अपने कुनबे में 7 लाख 34 हजार 738 नेता-कार्यकर्ताओं को किया है।

बीजेपी में जाने वालों में डॉक्टर, जज और वकील भी

बीजेपी का दावा है कि पिछले ढाई महीने में 20 हजार 442 कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ी है। इनमें 1 पूर्व केंद्रीय मंत्री, 3 पूर्व सांसद, 1 विधायक, 17 पूर्व विधायक, 2 महापौर, 3 पूर्व महापौर, 300 पार्षद एवं सरपंच, 2500 नेता, 700 पूर्व जनप्रतिनिधि, 16 हजार 910 कार्यकर्ता, 1 न्यायाधीश, 18 वकील, 30 डॉक्टर, 1 पूर्व डीजीपी, 1 पूर्व आईजी ने बीजेपी ज्वाइन की है। 

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अब गुणा गणित समझिए 

जैसे जबलपुर महापौर जगत बहादुर सिंह 'अन्नू' और मुरैना महापौर शारदा सोलंकी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और अब बीजेपी ज्वाइन कर ली। ऐसे में विजयपुर के कांग्रेस विधायक राम निवास रावत भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। ये नेता कांग्रेस तो छोड़ चुके हैं, लेकिन यह अपने सियासी कद से बीजेपी को कितना फायदा पहुंचा सकेंगे, यह सोचने वाली है। 

18 हजार वोटों से जीते थे रावत 

रामनिवास रावत: विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। रावत को 69 हजार 646 वोट मिले थे। उन्होंने अपने ​निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के बाबूलाल मेवरा को 18 हजार 59 वोटों से हराया था। अब सवाल ये है कि जब रावत बीजेपी में आ गए हैं, तो क्या उन्हें मिले वोट भी बीजेपी में शिफ्ट होंगे। ज्यादा संभावना तो यही है कि अमूमन ऐसा नहीं होता है। 

जबलपुर: तो क्या बीजेपी की बल्ले-बल्ले हो जाएगी?

जबलपुर से कांग्रेस के टिकट पर महापौर बने जगत बहादुर सिंह 'अन्नू' ने बीजेपी के जितेंद्र जामदार को 44 हजार 339 मतों से हराया था। अन्नू को 2 लाख 93 हजार 192 और डॉ. जामदार को 2 लाख 48 हजार 853 वोट मिले थे। अब यदि इस लिहाज से देखें तो फिर बीजेपी की तो बल्ले बल्ले है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष ऐसे तो सीधे तौर पर 5 लाख 42 हजार से ज्यादा वोट हो जाएं, पर ऐसा होता कहां है जनाब! 

मुरैना: 100 फीसदी वोट शिफ्ट नहीं होते 

अब इसी तरह मुरैना की मेयर शारदा सोलंकी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। अब वे बीजेपी का दामन थाम चुकी हैं। शारदा सोलंकी को कुल 63 हजार 275 वोट मिले थे। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी मीना जाटव को 14 हजार 684 वोटों से हराया था। यहां भी वह फॉर्मूला लागू नहीं होता। क्या है कि छोटे चुनावों में कई फैक्टर काम करते हैं। इस तरह नेता के पार्टी बदल लेने से उनके 100 फीसदी वोट शिफ्ट नहीं होते। 

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जब एमपी में रचा गया दलबदल का इतिहास 

हालांकि दलबदल के मामले में एमपी में इतिहास भी रचा गया है। अब यदि नेताओं के पार्टी बदल लेने से वोट शिफ्टिंग का मामला देखें तो यह भी बड़ा रोचक हो जाता है। मार्च 2020 में जब एमपी में सबसे बड़ा दलबदल हुआ था। तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायक उपचुनाव के मैदान में थे। इनमें से 7 हार गए थे, लेकिन यह घटनाक्रम यह भी हुआ था कि बीजेपी के टिकट पर कई नेता रिकॉर्ड वोटों से जीत थे, जबकि वही जब कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे तो जीत का अंतर कम था। 

प्रभुराम का उदाहरण भी देख लीजिए 

इसका उदाहरण सांची सीट रही थी। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े प्रभुराम चौधरी को पहले 10 हजार 813 वोट मिले थे। फिर दलबदल के बाद जब वे बीजेपी में आए और उपचुनाव लड़े तो उन्हें 63 हजार 809 वोट मिले थे। 

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कई फैक्टर काम करते हैं 

इस मामले पर राजनीतिक विश्लेषकों के दो मत हैं। ऐसा हमेशा नहीं होता कि दलबदल के बाद संबंधित नेता के सभी वोट शिफ्ट हो जाएं, क्योंकि वोटर किसी एक मुद्दे पर नेता को वोट नहीं देते हैं। इसमें जातीय समीकरण, स्थानीय छवि, पार्टी, विचारधारा कई फैक्टर्स काम करते हैं।

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