BHOPAL. लोकसभा की दौड़ में कांग्रेस रफ्तार बढ़ाने को बेताब है। एक तरफ बीजेपी इस बार प्रदेश में 29 की 29 सीटें जीतने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि विधानसभा चुनाव से पहले हुई गलती को न दोहराए। और जल्द से जल्द प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर सके।
6 सीटों पर सिंगल नाम कांग्रेस में तय
वैसे अब तक कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की 29 में से 26 सीटों पर नामों के पैनल तैयार कर लिए हैं। 6 सीटों पर सिंगल नाम तय किए गए हैं, जबकि 14 लोकसभा सीटों पर 2-2 नाम तय किए हैं। 4 सीटों पर 3-3 नाम का पैनल सामने आया है। ग्वालियर-चंबल की 2 सीटें ऐसी भी हैं जहां पांच-पांच दावेदार हैं। इंडिया गठबंधन में अब तक कांग्रेस का साथ निभा रही समाजवादी पार्टी को कांग्रेस खजुराहो सीट तो दे दी, लेकिन खुद तीन सीटों पर बुरी तरह उलझ गई है। राहुल गांधी की न्याय यात्रा के प्रदेश में गुजरने के बाद यहां टिकट की लिस्ट फाइनल करने की पूरी तैयारी है। हालांकि, तीन सीटों पर मगजमारी बुरी तरह जारी है। ये तीन सीटें हैं भोपाल, इंदौर और सतना। भोपाल की सीट पर पिछली बार बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को टिकट दिया था और कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को। इसके बाद जबरदस्त तरीके से वोट पोलराइजेशन हुआ और दिग्विजय सिंह की हार हुई। इंदौर और सतना का मामला ऐसा है कि ये दोनों ही हाईप्रोफाइल सीटें हैं और दोनों ही जगह बीजेपी भी बहुत स्ट्रॉन्ग है। इसलिए कांग्रेस पूरे इत्मीनान के साथ देख परख कर प्रत्याशी को मैदान में उतारना चाहती है। इन तीनों सीटों को छोड़कर फिलहाल बात करते हैं उन सीटों की जहां कांग्रेस के पास सिर्फ एक ही दावेदार है और उसे भी तकरीबन तय ही मान जा रहा है। 29 लोकसभा सीटों में 13 सीटें ऐसी हैं जहां सिंगल पैनल तैयार किया गया है। जिसमें कुछ विधायकों के अलावा एक महापौर का नाम भी शामिल है। ये सीटे हैं रीवा, सीधी, शहडोल, छिंदवाड़ा, बैतूल और धार।
कुछ सीटों पर कांग्रेस के पास लिस्ट में सिर्फ एक ही नाम
रीवा सीट के लिए पार्टी ने अजय मिश्रा बाबा का नाम रखा है। बाबा रीवा नगर निगम में कांग्रेस पार्टी के महापौर हैं। सीधी सीट से कमलेश्वर पटेल का नाम पैनल में शामिल बताया जा रहा है। पटेल को 2023 के विधानसभा चुनाव में सिंहावल सीट पर हार मिली है। शहडोल सीट से फुंदे लाल मार्को का नाम पैनल में है. मार्को लंबे समय से विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं और लोगों के बीच काफी धमक भी रखते हैं। छिंदवाड़ा सीट से पूर्व सीएम कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ का नाम तय है ही। नकुलनाथ ने पहला लोकसभा चुनाव 2019 में जीता था। उन्होंने भाजपा के नत्थन शाह कवरेती को हराया था। यह प्रदेश की एकमात्र ऐसी सीट जहां कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। बैतूल सीट से रामू टेकाम का नाम है। रामू टेकाम 2019 का चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें भाजपा के दुर्गादास उइके से हार मिली थी। धार सीट से पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह बघेल हनी का नाम तय किया है। बघेल कुक्षी विधानसभा सीट से विधायक हैं। इसके अलावा भी कुछ सीटें हैं जहां कांग्रेस के पास लिस्ट में सिर्फ एक ही नाम है।
कुछ सीटों पर दो में से एक चेहरा चुनना पड़ सकता है
अब आपको बताता हूं वो सीटें जहां कांग्रेस को दो चेहरों में से एक चेहरा चुनना पड़ सकता है। अंदरखानों की खबर है कि कांग्रेस ने भिंड, गुना, सागर, दमोह, टीकमगढ़, देवास, खजुराहो, जबलपुर, मंडला, राजगढ़, विदिशा, देवास, उज्जैन, खरगोन और खंडवा सीट के लिए दो नाम का पैनल बनाया है। भिंड सीट से फूल सिंह बरैया और देवाशीष जरारिया के नाम शामिल हो सकते हैं। दलित नेता बरैया एमपी की भांडेर विधानसभा सीट से विधायक भी हैं, जबकि देवाशीष जरारिया 2019 का लोकसभा चुनाव इसी सीट से हार चुके हैं। गुना-शिवपुरी सीट से वीरेंद्र रघुवंशी और यादवेंद्र सिंह का नाम है। रघुवंशी कोलारस विस सीट से भाजपा के विधायक रह चुके हैं। 2023 से विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही रघुवंशी भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। सागर सीट से अरुणोदय चौबे और चंद्रभूषण सिंह बुंदेला गुड्डू राजा के नाम पैनल पर हैं। चौबे पूर्व विधायक हैं। चंद्रभूषण सिंह बुंदेला यूपी के बाहुबली नेता हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए हैं। दमोह लोकसभा सीट से जया ठाकुर और तिलक सिंह का नाम पैनल में है। टीकमगढ़ सीट से किरण अहिरवार और पंकज अहिरवार का नाम पैनल में है। खजुराहो से आलोक चतुर्वेदी, वीरेंद्र द्विवेदी का नाम पैनल में है। जबलपुर सीट से दिनेश यादव और अंजू सिंह बघेल के नाम पैनल में है। राजगढ़ सीट से प्रियव्रत सिंह और चंदर सिंह सोंधिया के नाम हैं। इस सीट पर फैसला पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह करेंगे। विदिशा सीट से देवेंद्र पटेल व प्रशांत भार्गव के नाम हैं। मंडला सीट विधायक ओंकार सिंह मरकाम और नारायण पट्टा के नाम पैनल में हैं। देवास लोकसभा सीट से सज्जन सिंह वर्मा और विपिन वानखेड़े के नाम पैनल में हैं। उज्जैन लोकसभा सीट से महेश परमार, रामलाल मालवीय में से किसी एक नाम पर मोहर लग सकती है। खरगोन सीट पर दो में से एक नाम विधायक बाला बच्चन का और दूसरा केदार डाबर का हो सकता है। खंडवा लोकसभा सीट से झूमा सोलंकी और राजनारायण सिंह में से कोई एक फाइनल हो सकता है।
इन सीटों में कुछ पर दो तो कुछ पर तीन चेहरे
कुछ सीटों पर तीन-तीन नामों का पैनल भी सामने आ रहा है। इन सीटों में बालाघाट भी शामिल है जहां से हिना कांवरे, अनुभा मुंजारे और सम्राट सरस्वार का नाम दावेदारों में शुमार है। रतलाम-झाबुआ सीट से कांग्रेस एक बार फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया पर दांव लगा सकती है। इसी सीट से पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा और हर्ष विजय गहलोत भी टिकट के लिए दावा कर सकते हैं। मंदसौर संसदीय सीट से विपिन जैन, स्वनिल नाहटा और राकेश पाटीदार रेस में शामिल हैं। इन सीटों पर तो कांग्रेस को दो और तीन चेहरों में से एक चेहरा चुनना है। कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां से कांग्रेस को पांच पांच दावेदारों में से किसी एक को चुनना है। ये सीटें कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकती हैं। किसी मनाए किसे नाराज करें के अलावा ये भी सोचना है कि पांच में से सबसे सही विकल्प कौन हो सकता है। इन पांच सीटों में एक सीट है मुरैना सीट। यहां से कांग्रेस डॉ. गोविंद सिंह, सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू, लाखन सिंह यादव, पंकज उपाध्याय और बैजनाथ कुशवाहा में से किसी एक को चुन सकती है। हालांकि, गोविंद सिंह सबसे तगड़े दावेदार माने जा रहे हैं। ग्वालियर सीट पर ग्वालियर ग्रामीण से विधायक साहब सिंह गुर्जर टिकट की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। उनके अलावा रामसेवक सिंह, लाखन सिंह यादव, प्रवीण पाठक और कैलाश कुशवाहा के नाम भी रेस में शामिल हैं। इस सीट पर टिकट देने से पहले कांग्रेस को जातीय समीकरणों पर भी ध्यान देना जरूरी होगा।
छिंदवाड़ा सीट को बचाकर रखना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर
विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त झेल चुकी कांग्रेस के लिए लोकसभा की डगर बेहद मुश्किल है। वैसे देखा जाए तो प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का परफोर्मेंस काफी समय से बुरा ही चल रहा है। और बीजेपी एक-एक कर सीटें अपनी नाम करती चली जा रही है। अब तो कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर ही काबिज है। वो है छिंदवाड़ा। इस सीट को बचाकर रख पाना भी कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर है। अब एक सीट बचाने या सीट बढ़ाने का एक ही तरीका है, ऐसे किसी प्रत्याशी को चुनना जो मतदाताओं के बीच गहरी पैठ रखता हो और मोदी की गारंटी सहित राम मंदिर का जवाब भी बन सके। ऐसे प्रत्याशी ढूंढना फिलहाल कांग्रेस के लिए बहुत आसान नहीं है। हालांकि, मंथन तेजी से जारी है। अब ये मंथन हार का विष लेकर आएगा या कुछ सीटों पर जीत के रूप में अमृत बरसाएगा। ये जानने के लिए थोड़ा और इंतजार करना ही होगा।