ठेकेदार को GST से करोड़ों का भुगतान, मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड को घाटा पहुंचाने में जुटे अफसर

मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड यानी एमपीएचआईडीबी इस बार भी नियमों के परे जाकर करने वाला है। दरअसल हाउसिंग बोर्ड ने तुलसी टॉवर के बाद खाली पड़े भूखंड पर काफी पहले ही हाईराइज बिल्डिंग बनाने की प्लानिंग कर ली थी...

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. राजधानी की सबसे ऊंची बिल्डिंग तुलसी ग्रीन टॉवर का निर्माण बार-बार अटक रहा है। मप्र हाउसिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड की कोशिशों के बाद भी कंस्ट्रक्शन कंपनी प्रोजेक्ट से हाथ खींच रही है। साइट पर कई दिन तक काम बंद रहने से प्रोजेक्ट पिछड़ चुका है। वहीं एमपीएचआईडीबी नियमों की अनदेखी कर कंपनी को जीएसटी की मद से करोड़ों का भुगतान कराने में लगा है। अफसरों का ध्यान निर्माण कार्य पर न होने से में हाईराइज बिल्डिंग को पूरा होने में कई साल लग सकते हैं। यानी बिल्डिंग में फ्लेट में रहने के लिए लोगों को तुलसी टॉवर की तरह 6 से 8 साल लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। 

राजधानी की सबसे ऊंची बिल्डिंग में 25 फ्लोर होंगे

एमपी हाउसिंग बोर्ड यानी एमपीएचआईडीबी इस बार भी नियमों के परे जाकर करने वाला है। दरअसल हाउसिंग बोर्ड ने तुलसी टॉवर के बाद खाली पड़े भूखंड पर काफी पहले ही हाईराइज बिल्डिंग बनाने की प्लानिंग कर ली थी। साल 2023 में नगर निगम, रेरा और टीएंडसीपी से अनुमति, पंजीयन के बाद हाउिसंग बोर्ड द्वारा निर्माण कार्य के टेंडर भी जारी कर दिए गए थे। राजधानी की सबसे ऊंची बिल्डिंग तुलसी ग्रीन में 25 फ्लोर होंगे। 246 फीट ऊंची हाईराइज बिल्डिंग तीन टॉवर के आकार में होगी जिसमें 120 फ्लैट होंगे। इसके निर्माण पर करीब 125 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। तुलसी ग्रीन के निर्माण का काम मधुर कंस्ट्रक्शन पुणे द्वारा किया जा रहा है। लेकिन निर्माण कंपनी काम में लेटलतीफी कर रही है। इसके पीछे निर्माण काम में कंपनी की रुचि न होने की भी चर्चा हाउसिंग बोर्ड में है। 

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एजेंसी के चयन में हुई चूक बनी अब सिरदर्द

एमपीएचआईडीबी ने टेंडर के दौरान निर्माण एजेंसी के चयन में सावधानी नहीं रखी। जल्दबाजी और नियमों की अनदेखी करने के आदी हाउसिंग बोर्ड की लापरवाही से अब निर्माण एजेंसी टालमटोल कर रही है। काम रोकने के पीछे कई बार कंपनी प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए आवश्यक लागत उपलब्ध नहीं होने की दलील भी दे चुकी है। लेकिन काम छोड़ने या टेंडर निरस्त करने की स्थिति में बोर्ड पर सवाल खड़े हो सकते हैं। इससे बचने एमपीएचआईडीबी के अधिकारी जैसे-तैसे कंपनी से काम कराने की जुगत लगा रहे हैं। लागत राशि की कमी के बहाने को दूर करने हाउसिंग बोर्ड ने नियमों के खिलाफ जाकर कंपनी को टेंडर राशि की 18 फीसदी GST राशि का भुगतान भी करा दिया है। जीएसटी का भुगतान नियम विरुद्ध इसलिए है क्योंकि टेंडर के दौरान इसे अलग से शामिल नहीं किया गया था। यानी जिस मद में ठेकेदार से राशि नहीं ली गई उसकी वापसी कैसे कर दी गई। 125 करोड़ रुपए की निर्माण लागत वाले इस हाईवैल्यू प्रोजेक्ट से  GST भुगतान के रूप में ठेकेदार कंपनी को 21 करोड़ का फायदा हुआ है। इसका सीधा मतलब है कि एमपीएचआईडीबी के अफसरों की इस कृपा से इतना ही नुकसान यानी 21 करोड़ का घाटा बोर्ड को हुआ है। 

'द सूत्र' के खुलासे पर पीएस ने रोका था भुगतान

हाउसिंग बोर्ड द्वारा चहेती निर्माण कंपनियों को फायदा पहुंचाने का यह एक अकेला मामला नहीं है। इससे पहले भी अफसर अपने संस्थान को नुकसान में डालकर कंपनियों की झोली भरते रहे हैं। हांलाकि इस इनायत के बदले कंपनियां उनकी जेबें भी भरती आई हैं। यानी गिव एंड टेक का रिश्ता बोर्ड के अफसर पूरी गर्मजोशी से निभाते आ रहे हैं। जैसे हाईराइज बिल्डिंग तुलसी ग्रीन बना रही कंपनी को जीएसटी के रूप में 21 करोड़ का भुगतान हुआ है, वैसा कारनामा ग्वालियर के थाटीपुर हाउसिंग प्रोजेक्ट में भी कर चुका है। तब 'द सूत्र' ने नियम विरुद्ध जीएसटी का भुगतान करने का खुलासा किया था। जिस पर तत्कालीन पीएस के दखल के चलते भुगतान रोकना पड़ा था,लेकिन तुलसी ग्रीन के मामले में पिछली चूक को छिपाकर फिर निर्माण एजेंसी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। जबकि इससे हाउसिंग बोर्ड को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।  

भोपाल की सबसे ऊंची-आधुनिक बिल्डिंग

तुलसी ग्रीन भोपाल की सबसे ऊंची बिल्डिंग होगी। 75 मीटर यानी 246 फीट ऊंचाई वाली इस बिल्डिंग में 25 मंजिलों पर 120 फ्लैट होंगे। यह सबसे ऊंची, एडवांस और शियर वॉल से बनने वाली इकलौती बिल्डिंग होगी। इस इमारत के फ्लैट में दीवार ईंट या फ्लाय एश बिस्क की नहीं होंगी, बल्कि कांक्रीट से तैयार होंगी। इसके अलावा भी इस प्रोजेक्ट को लेकर हाउसिंग बोर्ड कई दावे कर रहा है। इस प्रोजेक्ट को 2026 तक पूरा कर आवंटित करने का दावा भी किया जा रहा है लेकिन प्रोजेक्ट शुरूआत से ही जैसे पिछड़ता जा रहा है उसे देखकर इसका हश्र भी तुलसी टॉवर जैसा होने का अंदेशा है। यानी लोग कहने लगे है कि जैसे तुलसी टॉवर में लोगों को छह से आठ साल बाद फ्लैट का पजेशन मिल पाया है, वैसा ही यहां होने वाला है।

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