कथावाचक राधा यादव का विवाद एमपी पहुंचा, यादव को मना कर ब्राह्मण से कराई कथा

उत्तर प्रदेश के कथावाचक राधा यादव के साथ हुए विवाद का असर अब मध्यप्रदेश में भी देखने को मिल रहा है। यहां यादव को मना कर ब्राह्मण से कथा कराई गई। जानें क्या है पूरा मामला...

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Amresh Kushwaha
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उत्तर प्रदेश के इटावा में कथावाचक के साथ हुई जातिगत घटना का असर अब मध्यप्रदेश के भिंड जिले तक पहुंच चुका है। मौ कस्बे में यादव समाज में इस विवाद को लेकर गुस्सा है। कारण- बड़ैरा गांव में कथावाचन के दौरान यादव समाज की कथावाचक राधा यादव को बुलाने के बाद अंतिम समय में एक ब्राह्मण से कथा कराई गई। यह स्थिति तब बनी, जब पुजारी ने राधा यादव को कथा वाचन से मना कर दिया।

यदि कथा होती है तो अनिष्ट हो जाएगा

कथावाचक राधा यादव के पिता रोशन सिंह का कहना है कि हम कथा करने के लिए गांव पहुंचे थे, लेकिन ऐन वक्त पर पुजारी बाबा हरि गिरिनाथ ने यह कहकर मना कर दिया कि यदि कथा होती है तो अनिष्ट हो जाएगा। इसके बाद हमें वापस लौटना पड़ा।

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उत्तर प्रदेश में कथावाचन पर विवाद की शुरुआत

दरअसल यह विवाद असल में उत्तर प्रदेश के इटावा से शुरू हुआ था। 21 जून को इटावा में एक भागवत कथा के दौरान जब यह पता चला कि कथावाचक ब्राह्मण नहीं, बल्कि यादव हैं, तो वहां हंगामा हो गया था। कथावाचक को बेरहमी से पीटा गया, उनकी चोटी काट दी गई और सिर भी मुंडवा दिया गया। महिला कथावाचक के पैरों में नाक रगड़वाने का वीडियो भी वायरल हुआ। इसके बाद एक ब्राह्मण कथावाचक को बुलाया गया, जिससे विवाद और बढ़ गया।

मध्यप्रदेश में यादव समाज ने इस घटना का विरोध किया। भिंड जिले में समाज के लोगों ने फैसला किया कि अब ब्राह्मणों से कोई धार्मिक कार्य नहीं कराया जाएगा। अगर कोई यादव परिवार ब्राह्मणों से पूजा कराएगा तो उसे समाज से बहिष्कृत किया जाएगा।

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भिंड के बड़ैरा गांव में कथावाचन विवाद

मध्यप्रदेश के भिंड जिले के बड़ैरा गांव में यह विवाद और बढ़ा। जून के अंत में बड़ैरा गांव में कथावाचन की तारीख 4 जुलाई तय हुई थी। शास्त्री राधा यादव को बुलाया गया था, लेकिन ठीक पांच दिन पहले बाबा हरि देव गिरि ने कथावाचन के लिए एक और शास्त्री को बुला लिया। इस पर राधा यादव ने बाबा से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने उन्हें कथा करने से मना कर दिया और दूसरी जगह से कथा कराने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद राधा यादव ने वापस लौटने का फैसला लिया।

4 जुलाई को गांव में भागवत कथा का आयोजन हुआ और 10 जुलाई को पूर्णाहूति के साथ कथा का समापन हुआ। इस बीच, समाज के लोगों ने यह तय किया कि ब्राह्मणों से अब कोई धार्मिक कार्य नहीं कराया जाएगा, और अगर कोई यादव समाज का सदस्य ऐसा करता है तो उसका बहिष्कार किया जाएगा।

समाज के आक्रोश का केंद्र बिंदु

👉13 जुलाई को मौ कस्बे में यादव समाज की पंचायत हुई, जिसमें राधा यादव को कथा करने से मना करने पर नाराजगी जाहिर की गई। पंचायत ने यह निर्णय लिया कि अब समाज के युवा ही कर्मकांड करेंगे और ब्राह्मणों से कोई धार्मिक कार्य नहीं कराएंगे।

👉14 जुलाई को बड़ैरा गांव के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने राधा यादव के पिता से संपर्क किया और राधा से क्षमा मांगते हुए उसे शॉल, श्रीफल और 11 हजार रुपए भेंट दिए।

👉15 जुलाई को यादव समाज के लोग कमल यादव के घर पहुंचे, जहां 16 जुलाई को त्रयोदशी का आयोजन था। यहां समाज के लोगों ने ब्राह्मणों को न बुलाने की बात की। जब कमल यादव ने विरोध किया, तो समाज ने त्रयोदशी का बहिष्कार कर दिया।

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मां ब्राह्मणों को देवताओं की तरह पूजती थीं

कमल यादव ने कहा, मेरी मां 102 साल की थीं और हमेशा ब्राह्मणों को देवताओं की तरह पूजती थीं। उनकी त्रयोदशी के दौरान समाज के लोग दबाव बना रहे थे कि ब्राह्मणों से पूजा न कराई जाए। लेकिन मैंने सबको भोजन कराया, और सभी को सम्मान दिया।

विवाद की गहरी जड़ें

इस पूरे विवाद की जड़ें उत्तर प्रदेश की घटना से जुड़ी हैं, जहां यादव समाज ने कथावाचक राधा यादव को अपमानित किए जाने के बाद यह निर्णय लिया कि ब्राह्मणों से कोई धार्मिक कार्य नहीं कराएंगे। लोहरपुरा में भी समाज के कई लोगों ने इस निर्णय का समर्थन किया और यह ऐलान किया कि अगर कोई ब्राह्मण से पूजा कराएगा तो उसे समाज से बाहर किया जाएगा।

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लोकल ब्राह्मणों का पक्ष

बड़ैरा गांव के ब्राह्मण ब्रजेंद्र सिंह ने कहा कि बाबा हरि गिरिनाथ का निर्णय गलत था। उन्होंने बताया कि राधा यादव की जगह ब्राह्मण हरिकृष्ण शास्त्री को कथा करने के लिए बुलाया गया था, लेकिन गांव में किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया था। केवल मंदिर के पुजारी की मानसिक स्थिति के कारण यह विवाद खड़ा हुआ।

यादव समाज के वकील का बयान

लोहरपुरा में यादव समाज के वकील ने कहा, उत्तर प्रदेश में यादव समाज के कथावाचक के साथ जो हुआ, वह भिंड में भी दिखा। समाज ने यह निर्णय लिया कि अब ब्राह्मणों से कोई धार्मिक कार्य नहीं कराएंगे। कमल यादव ने ब्राह्मण से पूजा कराई, इसलिए उनकी त्रयोदशी भोज में यादव समाज के लोग शामिल नहीं हुए।

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