कटनी : जिस जमीन का पट्टा अमान्य, उसे पास कराने जी तोड़ मेहनत कर रहे भ्रष्ट अफसर

सोशल मीडिया पर वन संपदा को बचाने की दुहाई देने वाले कुछ लोग इसकी बर्बादी में जुटे हुए हैं। उन्हें तो बस माल से मतलब है। चौंका देने वाला यह मामला ही देख लीजिए...

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Jitendra Shrivastava
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BHOAPL. मध्यप्रदेश अजब भी है और गजब भी है। अब इसी मामले को देख लीजिए। प्रदेश के कुछ भ्रष्ट अधिकारी कटनी जिले की संरक्षित जमीन खनन कारोबारी आनंद गोयनका को दिलाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। उन्हें किसी की परवाह नहीं है। 'द सूत्र' ने इस मामले को लेकर पहली खबर प्रकाशित की थी। इसके बाद भोपाल से लेकर कटनी तक हल्ला मचा हुआ है। अब इसी कड़ी में हम आपको दूसरी खबर बता रहे हैं। दरअसल, क्या है कि मध्यप्रदेश की पिछली कमलनाथ सरकार के आदेश को पूरा करने के लिए कुछ अधिकारी बेहद जल्दबाजी में हैं। इसके लिए उन्होंने वर्तमान मंत्री जी की सहमति भी ले ली है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित केन्द्रीय साधिकार कमेटी (सीईसी) के फैसले को भी दरकिनार किया जा रहा है।

कानूनन अमान्य है पट्टा 

कटनी के झिन्ना गांव में वर्षों पहले खनन के लिए जो जमीन का पट्टा दिया गया था, वह केन्द्र सरकार की अनुमति के बिना नल एंड वाईड है, यानी वह जमीन का पट्टा कानूनन अमान्य माना है। इसी प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से दूर रखने के लिए कमलनाथ सरकार ने निर्णय लिया था। अब उसी को पालन कराने का प्रयास कुछ भ्रष्ट अधिकारी कर रहे हैं। 

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पट्टा स्वीकृत कराने की मजबूरी क्या है साहब 

प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि कटनी जिले के ग्राम झिन्ना की अरबों रुपए कीमत की वनभूमि में खनन पट्टा स्वीकृत कराने की क्या मजबूरी है? अब देखिए जो जमीन 1958 से वन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज है, उस जमीन को न्यायालय प्रक्रिया से सुलझाने के बजाए अधिकारियों की अनुशंसा पर आकर रुक गई है। 

1998 में जारी हुआ था खनन पट्टा 

आपको बता दें कि झिन्ना में करीब 120 एकड़ जमीन का 1998 में खनन पट्टा जारी हुआ था। इसे लेकर वन विभाग ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। वन विभाग का दावा है कि यह जमीन संरक्षित है। इसे लेकर 1998 से आज तक मामला कोर्ट में विचाराधीन है। प्रदेश के राजस्व विभाग और हाईकोर्ट के आदेश होने के बाद वन विभाग लगातार अपील करता रहा है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका वर्ष 2017 में दायर की गई थी, जिसे वापस लेने के लिए सांठगांठ की जा रही है।

कैसे बनी सीईसी

पूरे देश में वनभूमि पर गैर वानिकी कामों को लेकर अलग-अलग याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं। इन सभी को टीएम गोदावर्धन वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के केस के साथ सुना जा रहा है। इन याचिकाकर्ताओं का मकसद है कि देश में जिस तरह से वन भूमि घट रही है और खनन तथा विकास कार्यों के नाम पर जंगलों की कटाई हो रही है, उस पर संवैधानिक तरीके से फैसला हो। 

सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी से मांगी रिपोर्ट

मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में विशेष अनुमति याचिका 5353-5354 में फाइल की थी, जिसमें मप्र हाईकोर्ट में दायर विभिन्न याचिकाओं के आदेश को चैलेंज किया था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी को निर्देश दिए कि दो सप्ताह में ग्राम झिन्ना और ग्राम हरिया की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इस सीईसी ने सितम्बर 2017 में बैठक कर दोनों पक्षों को सुना और दस्तावेजों की पड़ताल की। इसकी रिपोर्ट सीईसी ने सुप्रीम कोर्ट में 2 फरवरी 2018 को पेश की थी। 

ग्राम झिन्ना का मामला 

सीईसी ने अपने आखिरी निष्कर्ष में माना कि जुलाई 1958 के नोटिफिकेशन में झिन्ना गांव की 32.38 हेक्टेयर जमीन संरक्षित वन के लिए बढ़ाई गई थी। इसके बाद सितम्बर 2007 में खनन करने के लिए जिस जमीन की लीज दी गई है, उसका 48.56 हेक्टेयर इलाका वन भूमि माना गया है। 1993 में दी गई लीज वन अधिनियम 1980 के तहत केन्द्र सरकार की विशेष अनुमति के बिना नहीं दी जा सकती है। 

इस तरह से शुरू हुआ पूरा खेल 

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बाद में सीईसी ने कहा है कि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ सेंट्रल कैबिनेट की मंजूरी के बिना पूरी प्रक्रिया नल एण्ड वाइड यानी कानूनन अमान्य है। इस रिपोर्ट के बाद ग्राम झिन्ना की स्वीकृति के लिए कमलनाथ सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जो कमेटी गठित की, उसमें अपर मुख्य सचिव आरएस जुलानिया, केके सिंह, अरूण पांडे, मनोहर लाल दुबे, जेके मोहंती, सुधीर कुमार, कैप्टन अनिल कुमार खरे और एम कालीदुरई शामिल रहे। जिन्होंने खनन पट्टा की स्वीकृति दिलाने के लिए 26 अप्रैल 2018 को बैठक की थी। इसी बैठक में कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका और महेन्द्र गोयनका को लाभ पहुंचाने का प्लान तैयार किया गया।  

ग्राम हरिया की स्थिति 

सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में ग्राम हरिया का उल्लेख करते हुए बताया कि 12 अक्टूबर 1983 के दस्तावेजों के आधार पर 231 एकड़ भूमि में से 9.35 एकड़ जमीन को वनभूमि के दायरे से बाहर माना है।

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