राजधानी के आसपास ही अमृत सरोवरों के नाम पर हुआ खुलकर भ्रष्टाचार

मध्‍य प्रदेश में सरकार जलसंरक्षण के लिए योजनाएं लाती है नए-नए अभियान चलाए  जाते हैं। लेकिन अफसर-नेताओं का गठजोड़ इनका बजट डकार जाते हैं। यही गठजोड़ केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना के तहत भोपाल जिले में बने तालाबों का करोड़ों रुपए हजम कर गया।

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Sanjay Sharma
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भोपाल के गुनगा में अधूरा पड़ा अमृत सरोवर Photograph: (the sootr)

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BHOPAL.  हर बार सरकार जलसंरक्षण के लिए योजनाएं लाती है। गर्मी का सीजन शुरू होते ही तामझाम के साथ प्रदेश भर में नए_नए अभियान चलाए  जाते हैं। लेकिन सरकार की अपनी ही मशीनरी इन योजनाओं और अभियानों को कैसे बट्टा लगाती है इसे समझना आसान है। सिस्टम की भर्राशाही और योजनाओं के नाम पर होने वाली करोड़ों की फंड़िंग कैसे अफसर, क्षेत्रीय कर्मचारियों और नेताओं से साठगांठ कर डकार जाते हैं ये भी किसी से छिपा ही नहीं है। इनदिनों प्रदेश सरकार जल गंगा संवर्धन अभियान चला रही है। अभियान का उद्देश्य लोगों को पानी सहेजने के लिए जागरुक करने के साथ ही तालाब, बाबड़ी और बर्बाद हो रहे कुओं का संरक्षण भी है। सरकार के इस अभियान के बीच द सूत्र ने बीते दो साल में जल संवर्धन के नाम पर करोड़ों की लागत से बने जल सरोवरों की सुध ली तो उनकी हालत खस्ता नजर आई। ज्यादातर जगहों पर बनाए गए अमृत सरोवर सिर्फ दिखावा ही साबित हुए हैं। राजधानी से केवल 20 किलोमीटर दूर ग्राम गुनगा में 20 लाख की लागत से बना अमृत सरोवर भ्रष्टाचार की कहानी सुना रहा है। भोपाल जिले में 75 अमृत सरोवरों पर दो साल में 12 करोड़ से ज्यादा फूंक दिए गए लेकिन मौके पर तालाब नहीं केवल खंतियां ही नजर आ रही हैं। 

केंद्र की योजना की फजीहत

केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना के तहत जिले में अमृत सरोवर बनाए गए थे। इस योजना पर केंद्र सरकार ने बेहिसाब बजट प्रदेश को उपलब्ध कराया गया था लेकिन प्रशासन और नेताओं के गठजोड़ ने इसे भी डकार लिया। जबकि सरकार जल गंगा संवर्धन अभियान से लोगों को जल संरक्षण का संदेश दे रही है तब अमृत सरोवरों की बदहाली और करोड़ों की हेराफेरी की चर्चा जोरों पर है। अमृत सरोवर योजना के तहत जो तालाब बने थे उनमें कहीं क्रिकेट हो रही है तो कहीं उनके बीच से ग्रामीणों ने आने-जाने का रास्ता बना लिया है।   

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दिया तले ही घनघोर अंधेरा 

तालाबों के नाम पर नेता-अफसरों के गठजोड़ ने कैसे सरकारी योजना को बर्बाद किया है इसके लिए द सूत्र ने मौके पर जाकर पड़ताल की। बैरसिया जनपद के ग्राम गुनगा में अमृत सरोवर के नाम पर जो तालाब खोदा गया है उसे खंती कहना ज्यादा बेहतर है। इस अमृत सरोवर के कुछ हिस्से में 5 से 10 फीट खुदाई हुई है जबकि बाकी का हिस्सा सपाट मैदान नजर आ रहा है। सबसे अधिक 65 अमृत सरोवर बैरसिया जनपद की 65 पंचायतों में बनाए गए हैं। जिन पर 10 करोड़ खर्च हुआ है। वहीं फंदा जनपद में 10 पंचायतों में इन पर 2 करोड़ की लागत बताई गई है। ये राशि तो सरकार से मिले बजट की है।  

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अमृत सरोवर ही रह गए प्यासे 

बैरसिया जनपद के मनीखेड़ी, आंकिया, सुनगा, दौलतपुरा, सूरजपुरा, सिधोंड़ा, कोलूखेड़ी खुर्द, जमूसर, कलां, गढ़ाकलां, बागसी, खंडारिया, कोटरा, परसौरा, दमीला, डुंगरिया, दोहाया, बर्राई, ललरिया, कदैयाशाह, गुनगा, कलारा, हिनोतिया पीरान, उनीदा, गढ़ाकलां, गढ़ाखुर्द, खेरखेड़ा, सुनगा, कदैयाचंवर, बबचिया, कोल्हूखेड़ी कलां, खजूरिया रामदास, बर्रीछीरखेड़ा, इमलियानरेंद्र, रमाहा, खितवास, बोरपुरा, कल्याणपुरा, जूनापानी, लंगरपुर, खजूरियाकलां, बहोरी, भोजापुरा, रानीखजूरी, धर्मरा, रामटेक, भमोरा और फंदा जनपद की सुरैयानगर, बोरदा, खौरी, झिरनिया, चंदेरी, निपानिया सूखा पंचायतों के अमृत सरोवरों की है। इनमें से किसी भी तालाब में एक से दो साल में इंच भर भी पानी नहीं भरा। 

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कौन डकार गया 12 करोड़ 

बीते दिनों भोपाल जिला पंचायत की बैठक में जल संकट को लेकर खूब हायतौबा मची थी। सदस्यों ने पेयजल के लिए परेशान ग्रामीणों का मामला उठाया तो अफसरों ने नए वित्त वर्ष की कार्ययोजना में उलझा दिया। यानी पंचायतों को राशि के प्रलोभन देकर चुप कराया दिया। इस बैठक में साल 2023 और 2024 में अमृत सरोवरों पर खर्च 12 करोड़ की उपयोगिता पर चर्चा ही हुई। न किसी से इस पर हिसाब मांगा गया। जिला पंचायत, जनपद पंचायतों में तैनात अधिकारी भी चुप्पी साधे रहे। जिला पंचायत सदस्य रश्मि भार्गव का सवाल है कि पंचायतों में अमृत सरोवरों पर खर्च की गई राशि कौन डकार गया। 

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निगरानी-सत्यापन पर सवाल 

प्रदेश भर में अमृत सरोवरों के नाम पर हुई भ्रष्टाचार पर जिलों में सवाल उठाए जा रहे हैं। हांलाकि अधिकारी इनकी जांच की मांग को टालकर जल गंगा संवर्धन अभियान में जुटे दिख रहे हैं। कांग्रेस के महासचिव अवनीश भार्गव, युवा किसान नेता पृथ्वी सिंह रघुवंशी का कहना है सरकार के नेता और अधिकारियों का गठजोड़ तगड़ी राशि डकार गया। मौके पर जिन अधिकारियों के हाथ में अमृत सरोवरों की निगरानी और भुगतान से पहले सत्यापन की जिम्मेदारी थी वे भी चुप बैठे रहे।

 

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