JABALPUR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले में कोर्ट ने मुख्य सचिव को फटकार लगाई है। इस मामले में कड़ी नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट ने वीरा राणा से वर्चुअली उपस्थित होने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा की मुख्य सचिव खुद वर्चुअली अदालत आकर इस मामले में स्पष्टीकरण दें। पिछले 6 साल बाद भी आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया।
सरकार की मंशा स्पष्ट करने के लिए निर्देश
इस मामले में एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की बेंच ने सुनवाई की है। बेंच ने प्रदेश की मुख्य सचिव वीरा राणा को इस मामले में सरकार की मंशा स्पष्ट करने के लिए निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव वीरा राणा को गुरूवार को दोपहर ढाई बजे वर्चुअली उपस्थित होकर जवाब देने के लिए निर्देश किया है।
कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दो साल पहले अंतिम रिपोर्ट पेश होने के बाद भी सरकार नींद से नहीं जागी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले के लिए बनी विशेष कमेटी की रिपोर्ट 21 मई 2022 को सरकार ने सीलबंद लिफाफे में पेश की थी, इसके पहले कोर्ट के आदेशों के परिपालन का रास्ता निकालने एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, विधि एवं विधायी कार्यविभाग के प्रमुख सचिव, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव और एडीशनल चीफ सेक्रेटरी शामिल थे।
मामले में बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने पाया कि पहले के आदेश और अवमानना के बाद भी सरकार ने मामले में कोई निर्णय नहीं लिया, कोर्ट ने एडीशनल एडवोकेट जनरल को कहा कि दोपहर ढाई बजे मुख्य सचिव को वर्चुअली हाजिर कराईए और उनसे पूछा जाए कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। चीफ सेक्रेटरी वीरा राणा वर्चुअली हाजिर हुईं।
ये है पूरा मामला
गौरतलब है कि हाईकोर्ट कर्मी किशन पिल्लई सहित 109 कर्मचारियों ने याचिका दायर कर उच्च वेतनमान और भत्ते देने के लिए 2016 में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट ने 2017 में राज्य सरकार को आदेश जारी किए थे। पालन नहीं होने पर 2018 में अवमानना याचिका प्रस्तुत की गई।
हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए की थी उच्च वेतनमान की सिफारिश
पूर्व में चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए उच्च वेतनमान की सिफारिश की थी। सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कंपलायंस रिपोर्ट पेश कर बताया कि यदि उक्त अनुशंसा को मान लिया जाएगा तो सचिवालय एवं अन्य विभागों में कार्यरत कर्मियों से भेदभाव होगा और वे भी उच्च वेतनमान की मांग करेंगे। इसलिए कैबिनेट ने अनुशंसा को अस्वीकर कर दिया है।
कोर्ट को वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने बताया कि सरकार ने पहले भी यही ग्राउंड लिया था, जिसे अस्वीकार किया जा चुका है। तत्कालीन जस्टिस जेके माहेश्वरी ने इस मामले में 5 सितंबर 2019 को सरकार की इस दलील को नकारते हुए चीफ जस्टिस की अनुशंसा पर विचार करने के आदेश दिए थे।
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