BHOPAL. नेता अपने अफसरों के बचाने के चक्कर में मासूम जिंदगियों की परवाह करना भी भूल जाते हैं। दतिया में तीन माह पहले दीवार के मलबे में दबने से 5 लोगों की मौत के मामले में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भी विधानसभा में अफसरों के पक्ष में नजर आए। वहीं दतिया विधायक राजेंद्र भारती ने मामला विधानसभा में उठाते हुए 400 साल पुराने परकोटा को खोदने के लिए दतिया नगर पालिका के अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने की मांग ही करते रह गए।
रिंग रोड बनाने के लिए तोड़ी गई थी दीवार
दतिया विधायक राजेंद्र भारती का कहना है शहर के चारों ओर 400 साल पुराना परकोटा स्थित है। नगर पालिका परिषद द्वारा रिंग रोड स्वीकृत किया गया था। इसे बनाने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर मजबूत और ऐतिहासिक दीवार का एक बड़ा हिस्सा तोड़ दिया गया था। इसके अलावा कुछ अन्य परिवारों के घर भी इस काम के कारण प्रभावित हुए हैं। इन परिवारों को शहर से बाहर चितुवा गांव में विस्थापित किया गया है। वहां बिजली, पेयजल, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। इसी वजह विस्थापित परिवार दीवार के नजदीक झोंपड़ी बनाकर रह रहा था।
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ऐतिहासिक परकोटा तोड़कर बनाया रिंग रोड
नगर पालिका ने नजूल से उपयोग परिवर्तन की स्वीकृति के बिना ही ऐतिहासिक परकोटा को रिंग रोड के लिए खोदा था। यही नहीं इस हिस्से को जर्जर हालत में छोड़ दिया गया था। इसी के कारण बारिश के बाद सितंबर माह में क्षतिग्रस्त परकोटा का यह हिस्सा ढह गया और मलबे में दबने से इस परिवार के पांच लोग काल के गाल में समां गए।
जिम्मेदार अफसरों का बचाव कर रहे हैं मंत्री
विधायक राजेंद्र भारती ने बताया इस मामले में लापरवाही साफ तौर पर नगर पालिका परिषद के अधिकारियों की है। पांच लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है, पीड़ित परिवार जांच की मांग कर रहा है। प्रशासन की अनदेखी के चलते इस मामले को विधानसभा में लेकर आया था। विभाग के मंत्री जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जगह इसे दुर्घटना बताकर उनका बचाव कर रहे हैं।
दुर्घटना ही सही पर जांच बिना क्लीन चिट क्यों?
कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती ने कहा सरकार इसे सामान्य हादसा बता रही है। विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इसे कब्जा करने वाले परिवार के मलबे में दबने का मामला मान लिया है। जबकि इस घटना की जांच कराएंगे तो नगर पालिका परिषद के अधिकारियों की लापरवाही सामने आ जाएगी। बारिश के समय शासन ने पत्र जारी कर निर्देशित किया था कि जर्जर भवन और दीवारों को ध्वस्त कराया जाए। दीवार के किनारे स्थित 318 घर तोड़कर उन्हें विस्थापित किया गया था। यदि यह परिवार कब्जा करके झोंपड़ी बनाकर रह रहा था, तब प्रशासन ने सख्ती क्यों नहीं दिखाई। यदि नगर पालिका ने दीवार का जर्जर हिस्सा पूरी तरह गिराया होता तो पांच लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
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