INDORE. देवी अहिल्या विश्वविद्यलाय DAVV के कुलगुरू (कुलपति) के लिए राजभवन में तीन सदस्यीय स्क्रूटनी कमेटी ने नाम छांटने के बाद दर्जन भर उम्मीदवारों के लिए इंटरव्यू लिए। इसमें इंदौर से पांच प्रोफेसर को बुलाया गया था, बाकी सात लोग जबलपुर, भोपाल व अन्य शहरों के दावेदार थे। माना जा रहा है कि सप्ताह भर में नाम घोषित होगा।
इन्हें बुलाया इंदौर से
इंदौर से पांच के आवेदन कमेटी ने स्वीकार किए और इंटरव्यू के लिए न्यौता भेजा, इसमें यूनिवर्सिटी के डॉ. आशुतोष मिश्रा, डॉ. राजीव दीक्षित, कन्हैया आहूजा के साथ सचिन शर्मा शामिल थे, वहीं मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. संजय दीक्षित को भी बुलाया गया लेकिन वह इंटरव्यू देने नहीं गए। इन सभी में प्रोफेसर मिश्रा ही सबसे ज्यादा अनुभवी है और प्रभारी कुलपति रह चुके हैं, दीक्षित के राजनीतिक संबंध काफी मजबूत है, वहीं शर्मा एबीवीपी के पूर्व पदाधिकारी हैं।
देश में सबसे ज्यादा डिग्रीधारी को ही छोड़ दिया
इंदौर और मप्र नहीं बल्कि देश में सबसे ज्यादा डिग्रीधारी और अनुभवी प्रोफेसर मंगल मिश्रा है, इनके पास एक-दो नहीं बल्कि छह विषय में पीएचडी है, डीलिट् है और दर्जन भर डिग्रियां हैं। इनके आवेदन को इंटरव्यू लायक भी कमेटी ने नही समझा। जीएसटीआईटीएस के डायरेक्टर रहे राकेश सक्सेना हो या सीनियर प्रोफेसर नितिन सप्रे या फिर इंदौर के प्रोफेसर राजेश वर्मा जो जबलपुर में कुलपति, है इन सभी के आवेदन को इंटरव्यू योग्य भी नहीं समझा गया। इसी तरह मंत्री तुलसी सिलावट के भाई और होलकर कॉलेज को ए डबल प्लस दिलाने वाले सुरेश सिलावट को भी ही कमेटी ने अलग कर दिया।
स्क्रूटनी कमेटी क्यों विवाद में
इस पूरी चयन प्रक्रिया में स्क्रूटनी कमेटी विवादों में हैं, अधिक डिग्रीधारी, अनुभवी प्रोफेसर के आवेदन खारिज कर दिए गए और उन्हें इंटरव्यू तक के लिए नहीं बुलाया गया है। ऐसे में सवाल उठने लगे है कि आखिर स्क्रूटनी कमेटी ने किस आधार पर नामों को छांटा और फिर उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। कमेटी में राज्यपाल की ओर से नियुक्त पणिनी संस्कृत यूनिवर्सिटी के विजय कुमार, शासन से नियुक्ति प्रतिनिधइ चित्रकूट ग्रमोदय के कुलपति भरत मिश्रा और यूजीसी से नियुक्त प्रतिनिधि साउथ विहार सेट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति कामेशवर नाथ सिंह थे।
आगे क्या होगा
कमेटी कुलपति पद के लिए योग्य लगे दावेदारों में से तीन के नाम बंद लिफाफे में अपनी अनुशंसा के साथ राज्यपाल को देगी। इसमें से राज्यपाल जिसे उचित लगेगा उसे कुलपति नियुक्ति करेगी, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, समस्त अधिकार राज्यपाल के पास होते हैं वह चाहे तो इन अनुशंसाओं को परे कर कोई भी नाम घोषित कर सकता है। वैसे भी कमेटी की पूरी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ चुकी है।
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