फलों के राजा 'आम' का बस नाम आम है, ये है तो बड़ा खास। आम का इतिहास 5 हजार वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। यह इंडो वर्मा रीजन में पैदा हुआ। पूर्वी भारत और दक्षिण चीन तक पूरे साउथ एशिया में आम पाया जाता है। वर्ष 1498 में जब पुर्तगाली कोलकाता में उतरे तो उन्होंने आम का कारोबार शुरू किया था। भारत के साथ ब्राजील, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, हैती, मेक्सिको और पेरू में भी आम की अच्छी खासी पैदावार होती है।
भारत में आम की डेढ़ हजार से ज्यादा किस्में हैं। अल्फांसो, बॉम्बे ग्रीन, चौसा, दशहरा, लंगड़ा, केसर, नीलम, तोतापरी मालदा, सिंदूरी, बादामी, हापुस, नूरजहां, कोह-ए-तूर के नाम अक्सर लोग लेते हैं। इनमें मध्यप्रदेश के आमों का जिक्र खास है। इस रिपोर्ट में हम आपको मध्यप्रदेश के आमों की कहानी बताने जा रहे हैं...।
प्रदेश में दोगुना हुआ उत्पादन
मध्यप्रदेश में पिछले 8 वर्षों के आम उत्पादन, क्षेत्र और उत्पादकता के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह सुकून देते हैं। वर्ष 2016-17 में आम की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 13.03 मीट्रिक टन थी, जो 2023-24 में बढ़कर 14.66 मीट्रिक टन हो गई है। ऐसे ही 2016-17 में आम का क्षेत्र 43 हजार 609 हेक्टेयर था, जो अब बढ़कर 64 हजार 216 हेक्टेयर हो गया है। इसी दौरान उत्पादन 5 लाख 4 हजार 895 टन से बढ़कर अब 9 लाख 41 हजार 352 मीट्रिक टन हो गया है।
पढ़िए ये खास रिपोर्ट...
अफगानिस्तान से एमपी आया नूरजहां
आदिवासी बहुल आलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा का नूरजहां आम बेहद खास है। इसे देखने तक लोग दूर-दूर से आते हैं। आम आने से पहले ही एक-एक फल की बुकिंग हो जाती है। एक आम का वजन 500 ग्राम से लेकर 2 किलो तक होता है। इसका स्वाद लाजवाब है। जनवरी में इसमें फूल आना शुरू होते हैं और फरवरी के आखिर तक पेड़ फूलों से लद जाता है। जून के आखिर तक फलों से भर जाता है। दरअसल, इसका पौधा अफगानिस्तान से गुजरात होते हुए मध्यप्रदेश लाया गया था।
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सुंदरजा पर जारी हो चुका डाक टिकट
सुंदरजा आम मूलत: के रीवा जिले में होता है। यहां के गोविंदगढ़ में होने वाले सुंदरजा आम को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग मिल चुका है। वर्ष 1968 में सुंदरजा आम पर डाक टिकट जारी हो चुका है। यह आम देखने में जितना सुंदर है, स्वाद भी उतना ही बेमिसाल है। इसकी सुगंध मदहोश करने वाली होती है। यह आम गोविंदगढ़ के वातावरण में ही पनपता है, क्योंकि यहां मिट्टी और तापमान दोनों का मेल खास है। रीवा के फल अनुसंधान केंद्र कठुलिया में आम पर आगे रिसर्च जारी है। यहां विभिन्न किस्मों के आम के 2345 पेड़ हैं। इनमें बॉम्बे ग्रीन, इंदिरा, दशहरा, लंगड़ा, गधुवा, आम्रपाली, मलिका खास है।
मियाजाकी ने दुनिया में मचाई धूम
जबलपुर में सबसे महंगे आम मियाजाकी ने आम की दुनिया में धूम मचा दी है। एक आम की कीमत 20 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। दावा किया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस इस आम की कीमत तीन लाख रुपए किलो तक पहुंच जाती है। आम लाल रंग का होता है। एक फल का वजन 900 ग्राम से डेढ़ किलो तक का होता है। मियाजाकी दरअसल, यह जापान की किस्म है, जो थाईलैंड, फिलिपींस में भी होती है। जबलपुर में 1984 से इसका उत्पादन हो रहा है। यहां के डगडगा हिनौता गांव में इन आमों को दूर से देखा जा सकता है। यहां आम के पेड़ कड़ी सुरक्षा में रहते हैं। मध्यप्रदेश से अब बांग्लादेश, अरब, यूके, कुवैत, ओमान और बहरीन तक इस आम का निर्यात हो रहा है।
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अब इतिहास भी जान लीजिए
आम के अंग्रेजी का मेंगो शब्द मलयालम के 'मंगा' और तमिल के 'मंगाई' से बना है। आम की टहनियों को जोड़कर तरह-तरह की नई किस्में पैदा करने की कला पुर्तगालियों की देन है। जैसे अल्फांसो का नाम एक सैन्य विशेषज्ञ अल्बुकर्क के नाम पर रखा गया। भारत आए चीनी यात्री व्हेन सांग ने दुनिया को बताया कि भारत में आम का फल होता है। मौर्य काल में आम के पेड़ रोड के किनारे लगाए जाते थे, जिन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता था।
प्रकृति की विशेषताओं से भरपूर
विशेषताओं पर नजर दौड़ाएं तो आम का एक पेड़ औसत 60 फीट तक ऊंचा हो सकता है। आम का पेड़ अमूमन 4 से 6 साल में फल देने लगता है। आम का पेड़ पत्तियों से कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और इसका उपयोग अपने तने, शाखों के लिए करता है। इसलिए आम की पत्तियों को शादियों के मंडप, घरों में तोरण के रूप में किया जाता है। हमारे देश में अनेक शुभ कार्यों में भी इसके फल, पत्तियां, शाखा और लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।
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