4 सीटों पर Congress को प्रत्याशी मिलना मुश्किल, कैसे बनेगी बात ?

मध्यप्रदेश की जिन सीटों पर कांग्रेस ने अब तक प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया उनमें चार सीटें शामिल हैं जिन पर कांग्रेस बड़ी ताकत लगाना चाहती हैं। ये चार लोकसभा सीटें हैं इंदौर, भोपाल, राजगढ़ और गुना। आइए आपको बताते हैं इन चार सीटों पर कांग्रेस की रणनीति...

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Jitendra Shrivastava
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न्यूज स्ट्राइक।

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BHOPAL. मोदी की गारंटी और राम मंदिर की आंधी के बीच कांग्रेस ( Congress ) को मध्यप्रदेश में चार सीटें जीतने की उम्मीद है। ये कौन सी चार सीटे हैं जिन पर कांग्रेस पूरी ताकत झोंक देना चाहती है और नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। इन सीटों पर तफ्सील से बात तो होगी ही। साथ ही ये भी बताएंगे कि ये चार लोकसभा सीटों की रेस कांग्रेस के लिए कितनी मुश्किल होने वाली है। रेस तो क्या है इसे हर्डल रेस यानी कि बाधा दौड़ कहा जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि हर सीट पर कांग्रेस को एक नहीं कई बाधाओं का सामना करना है। तो चलिए एक-एक सीट के साथ बात करते हैं एक-एक चुनौती की।

छिंदवाड़ा सीट की पूरी जिम्मेदारी बंटी साहू की

कांग्रेस किन सीटों पर बड़ा दांव खेलने के मूड में है उस पर बात करने से पहले एक बार फिर ये याद दिलाना जरूरी है कि बीजेपी प्रदेश की 28 लोकसभा सीटों पर काबिज है। कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक ही सीट है वो है छिंदवाड़ा और इस पर नकुलनाथ सांसद है। कांग्रेस ने एक बार फिर नकुलनाथ को ही इस सीट से टिकट दिया है और बीजेपी ने इस सीट से मैदान में बंटी साहू को उतारा है। बंटी साहू वही प्रत्याशी हैं जो कमलनाथ से बीता विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। इस सीट पर हार जीत की पूरी जिम्मेदारी बंटी साहू की ही है। बीजेपी ने मध्यप्रदेश में पूरे पत्ते खोलते हुए हर सीट पर प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है, जबकि कांग्रेस ने 10 ही सीटों पर टिकट क्लीयर किए हैं। 8 सीटों पर चेहरे चुनने का काम जारी है। रही बात एक सीट की तो वो सीट है खजुराहो। जिस पर गठबंधन के तहत सपा को प्रत्याशी खड़ा करना है।

कांग्रेस की ताकत वाली इंदौर, भोपाल, राजगढ़ और गुना सीटें

जिन सीटों पर कांग्रेस ने अब तक प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया उन्हीं सीटों में वो चार सीटें भी शामिल हैं जिन पर कांग्रेस बड़ी ताकत लगाना चाहती हैं। ये चार लोकसभा सीटें हैं इंदौर, भोपाल, राजगढ़ और गुना। जहां बीजेपी ने अपने पत्ते खोले और उसके बाद ही कांग्रेस की पुरानी रणनीति या पुरानी तैयारी बेकार चली गई। बात इंदौर से ही पहले शुरू करते हैं...

इंदौर में कांग्रेस के लिए स्पीडब्रेकर बनी बीजेपी 

इंदौर सहित पूरे मालवा में कांग्रेस को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं में ऊर्जा फूंकने के लिए पार्टी ने जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान सौंप दी, लेकिन ये नया ओहदा पटवारी के लिए बड़ी चुनौती बनकर आया है जबकि समय बहुत कम है। रोड पर चलते हुए कभी आपने देखा है ऐसे स्पीडब्रेकर भी होते हैं जो एक के बाद एक लगातार आते ही चले जाते हैं और हर गाड़ी सवार संभलने से पहले ही झटके पर झटके महसूस करता है। इंदौर में कांग्रेस के लिए वही स्पीडब्रेकर बन चुकी है बीजेपी जो कांग्रेस को संभलने से पहले ही एक नया झटका दे देती है। कांग्रेस को इंदौर से जितने चेहरों से आस थी वो अब केसरिया रंग में रंग चुके हैं। विधानसभा चुनाव हारने के बाद इंदौर से संजय शुक्ला को लोकसभा का टिकट मिल सकता था। लेकिन वो उससे पहले ही भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस के पास दूसरा विकल्प थे पंकज संघवी। संघवी को ही कांग्रेस ने पिछली बार भी लोकसभा का टिकट दिया था। वो 5 लाख से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब भी रहे थे, लेकिन पंकज सिंघवी को बीजेपी रास आई। इस सीट से खुद जीतू पटवारी के चुनाव लड़ने की भी संभावना जताई जा रही है, लेकिन ये भी आसान नहीं है। जीतू पटवारी खुद विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में अपनी साख बचाना उनके लिए मुश्किल भी हो सकता है। अब कांग्रेस की निगाह अक्षय बम और विशाल पटेल पर टिकी है। इसके अलावा कांग्रेस महिला उम्मीदवार को उतारने पर भी विचार कर सकती है।

राजगढ़ में भी कांग्रेस को मुफीद प्रत्याशी की तलाश

अब बात करते हैं राजगढ़ सीट की। ये सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का गढ़ है। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह खुद इस सीट से लंबे समय तक सांसद रहे हैं। बीच का उनका कार्यकाल बीजेपी में भी गुजरा और वो बीजेपी सांसद भी रहे। उनके बाद इस सीट से दिग्विजय सिंह के ही करीबी नारायण सिंह आमलाबे चुनाव जीते। 2014 से ये सीट बीजेपी के कब्जे में है। लिहाजा इसे बीजेपी का गढ़ नहीं कहा जा सकता। इस चुनाव में कांग्रेस की कोशिश है कि वो अपना गढ़ वापस हासिल कर सके। इसलिए मुफीद प्रत्याशी की तलाश है। बीजेपी ने एक बार फिर इस सीट से रोडमल नागर का टिकट दोहराया है। अब कांग्रेस की नजर दिग्विजय सिंह पर टिकी है। उनके अलावा प्रियव्रत सिंह खींची भी टिकट हासिल कर सकते हैं। खबर है कि आलाकमान के सामने उन्होंने कुछ शर्ते रखी हैं अगर वो मान ली जाती हैं तो वो चुनावी समर में उतर सकते हैं। गाहे बगाहे यहां से जयवर्धन सिंह को टिकट मिलने की भी अटकलें लगती रहती हैं, लेकिन इसकी संभावना न के बराबर है।

 भोपाल के लिए कांग्रेस से कोई बड़ा चेहरा राजी नहीं 

अब बात करते हैं भोपाल सीट की। भोपाल के किले में सेंध लगाना कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रहा है। पिछले चुनाव में ये एक हाई प्रोफाइल सीट बन गई थी। एक तरफ कांग्रेस के कद्दावर दिग्विजय सिंह थे तो दूसरी तरफ हिंदुत्व की फायरब्रांड नेत्री प्रज्ञा ठाकुर थीं। मुकाबला इतना दिलचस्प था कि इस सीट पर विदेशी मीडिया भी नजर गढ़ाए बैठा था। बीजेपी से उसका गढ़ छीनने के लिए दिग्विजय सिंह ने दिन रात एक किए। वो खुद अपना वोट कास्ट करने तक नहीं जा सके। इसके बावजूद भोपाल उनके हाथ से निकल गया। इस बार बीजेपी ने यहां से आलोक शर्मा को टिकट दिया है। आलोक शर्मा भोपाल के महापौर भी रहे हैं। कांग्रेस की मजबूरी ये है कि इस सीट से अब तक कोई बड़ा चेहरा कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ने के लिए राजी नहीं है। फिलहाल इस सीट से पूर्व अधिकारी जीपी माली, अरुण श्रीवास्तव, मेजर जनरल श्याम श्रीवास्तव का नाम टिकट की रेस में आगे चल रहा है, लेकिन कांग्रेस इसके आगे भी प्रत्याशी चयन के लिए नाम खंगाल रही है। कांग्रेस की कोशिश है कि इस सीट पर सामाजिक, जातिगत समीकरण साधते हुए कोई ऐसा प्रत्याशी मिले जो ऊर्जावान हो और भोपाल के लिए जाना माना भी हो। 

गुना से कांग्रेस की यादव प्रत्याशी पर नजर 

बात गुना सीट की करते हैं। इस सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही टिकट मिलने से बड़ा ट्विस्ट आ चुका है। इस सीट को लेकर और सिंधिया को लेकर चुनावी बाजार में बहुत से अटकलें घूमती रही हैं। बीच में खबर थी कि सिंधिया ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। फिर ये भी अटकलें लगती रहीं कि राज्यसभा का कार्यकाल बचा होने की वजह से सिंधिया को शायद ही चुनावी मैदान में उतारा जाए। हालांकि, उनके नाम पर मुहर लगने के बाद सारी अटकलें सिरे से खारिज हो गई हैं। सिंधिया को टिकट मिला तो कांग्रेस को उम्मीद की किरण केपी यादव में नजर आई। जिन्होंने पिछले चुनाव में सिंधिया को पटखनी दी थी। टिकट कटने के बाद भी केपी यादव कांग्रेस के साथ जाने को तैयार नहीं हुए। फिलहाल उनका फैसला बीजेपी में टिके रहना ही है। अब इस क्षेत्र के यादव मतदाताओं को देखते हुए कांग्रेस अरूण यादव के भाई सचिन यादव को भी टिकट दे सकती है। बीच-बीच में खुद अरुण यादव का नाम सुनाई देता है, लेकिन पार्टी उनका किसी और सीट पर ज्यादा बेहतर इस्तेमाल कर सकती है।

कांग्रेस की अगली लिस्ट से पता लगेगा 

इन सीटों पर थोड़ दमदार चेहरे तलाशने के अलावा कांग्रेस के सामने महिला प्रत्याशियों को साधने की भी चुनौती है। बीजेपी की पहली लिस्ट में चार महिलाओं के नाम थे, लेकिन कांग्रेस की पहली लिस्ट में किसी महिला को जगह नहीं मिली। जबकि बीजेपी की पहली लिस्ट के बाद ही कांग्रेस ने महिला आरक्षण की दुहाई देना शुरू कर दिया था। अब खुद कांग्रेस को महिलाओं नेतृत्व को आगे लाने की चुनौती भी पार करनी है। बहुत जल्द कांग्रेस की अगली लिस्ट जारी होने की संभावना है। हो सकता है कांग्रेस मध्यप्रदेश में अपने पूरे पत्ते खोल दे। उसके बाद ये तय हो सकेगा कि अपनी प्लानिंग और स्ट्रैटजी पर कितनी मजबूती से टिकी है।

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