रोजगार के वादे पर जमीन ली पर उद्योग नहीं खोले, निराश युवा पलायन को मजबूर

मध्यप्रदेश में उद्योगों के विकास के जरिए रोजगार के अवसर तैयार करने पर सरकार जोर दे रही है। तीन महीने पहले उज्जैन में इन्वेस्टर्स समिट में देश-विदेश के उद्योगपति शामिल हुए थे। इससे पहले भी सरकार ऐसे आयोजन करती आ रही है...

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL.  बेरोजगारी के दाग से उबरने की कोशिश कर रही प्रदेश सरकार की साख पर उद्योगपतियों की वादाखिलाफी बट्टा लगा रही है। वहीं अपने गांव के नजदीक रोजगार की आस लगाए बैठे युवा पलायन को मजबूर हैं। निजी क्षेत्र में रोजगार के मौके बढ़ाने के लिए सरकार प्रदेश में उद्योग लगाने अपने दरवाजे खोले बैठी है। उद्योगों के लिए न केवल कौड़ियों के दाम पर जमीन देने के साथ ही मूलभूत सुविधाएं भी विकसित कर रही है। 

उद्योगपति करोड़ों की जमीन अपने नाम कराने में ही रुचि ले रहे हैं

प्रदेश सरकार रॉ मटेरियल की उपलब्धता में सहूलियत के लिहाज से औद्योगिक क्षेत्रों को क्लस्टर में भी बांट दिया गया है। इसके बावजूद उद्योगपति करोड़ों की जमीन अपने नाम कराने में ही रुचि ले रहे हैं। वहीं कई औद्योगिक क्षेत्र में अरुचि के चलते वहां भूखंड ही खाली पड़े हैं। प्रदेश में उद्योगों के विकास के जरिए रोजगार के अवसर तैयार करने पर सरकार जोर दे रही है। तीन महीने पहले उज्जैन में इन्वेस्टर्स समिट में देश-विदेश के उद्योगपति शामिल हुए थे। इससे पहले भी सरकार ऐसे आयोजन करती आ रही है, लेकिन जिस स्तर पर सरकार उद्योगों का विकास चाहती है वह लक्ष्य अब भी दूर है। 

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इंडस्ट्रियल क्लस्टर विकसित पर नहीं आ रहे उद्योग

प्रदेश में उद्योगों के विकास के लिए इंदौर में दवा, प्लास्टिक पैकेजिंग और प्रोसेसिंग, कपड़ा, नमकीन, रिचार्जेबल टॉर्च, गारमेंट, फाउंड्री क्लस्टर, ग्वालियर में ट्रांसफार्मर, पत्थर, रेडिमेड गारमेंट, कंफेक्शनरी क्लस्टर, भोपाल में इंजीनियरिंग, क्लस्टर, उज्जैन में पोहा क्लस्टर, पीथमपुर में ऑटो क्लस्टर, छतरपुर में फर्नीचर क्लस्टर, कटनी में चूना पत्थर, बालाघाट, सतना, गुना और शाजापुर में ब्रिस्क क्लस्टर, सागर में कृषि यंत्र क्लस्टर, बुरहानपुर और जबलपुर में हथकरघा क्लस्टर तैयार किए गए हैं। इन औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाएं विकसित करने करोड़ों रुपए विभाग ने खर्च भी किए हैं। जमीनों लेने के लिए भी कारोबारियों ने यहां रूचि दिखाई लेकिन आधे से ज्यादा भूखंड अब भी खाली ही पड़े हैं। 

आवंटन के बाद खाली पड़े बेशकीमती भूखंड  

आदिवासी अंचल के जिले में उद्योग लगने से लोगों में गांव के नजदीक रोजगार मिलने की उम्मीद थी। अब ये ग्रामीण फिर शहरों की ओर पलायन करने मजबूर हैं। एक दशक में सरकार ने आदिवासी अंचल से होने वाले पलायन को रोकने इन अंचलों में कई औद्योगिक क्षेत्र तैयार किए हैं। सिवनी, छिंदवाड़ा, झाबुआ, बालाघाट, बडवानी, रतलाम, मंदसौर, नीमच जिलों में विकसित औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्रियां लगाने पर सरकार का विशेष फोकस भी है। रीवा जिले में तीन औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए गए हैं। इनमें से एक गुढ़ भी है। यहां उद्योग विभाग ने 158 भूखंड विकसित किए हैं लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी इस औद्योगिक क्षेत्र में अब भी 96 भूखंड किसी ने बुक तक नहीं कराए हैं। वहीं जिन आवंटित 22 भूखंडों में से आधे पर भी उद्योग खड़े नहीं हो पाए हैं। यही स्थिति रतलाम के करंडी के पास तैयार औद्योगिक क्षेत्र की है। यहां भी कारोबारियों ने उद्योगों के नाम पर करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव पर ले ली लेकिन न तो फैक्ट्री लगाई न ही उससे किसी को रोजगार मिला। सिवनी औद्योगिक क्षेत्र में सवा सौ विकसित भूखंडों में से आधे से ज्यादा आवंटित हो चुके हैं, लेकिन कारखाने लगाने उद्योगपति आगे नहीं आ रहे हैं। 

जमीनी हकीकत है कुछ और, साफ बताते हैं मैप

औद्योगिक क्षेत्रो में आवंटित भूखंडों पर अब तक कितनी फैक्ट्री-कारखाने लग गए हैं इसकी हकीकत गूगल मैप से समझी जा सकती है। हमने भूखंड आवंटन के विभाग के प्लान और गूगल मैप की पड़ताल की तो जमीनी असलीयत सामने आ गई। छिंदवाड़ा, नीमच, सिवनी, गुढ़, रतलाम और सतना के भरहुत औद्योगिक क्षेत्रों में जितने भूखंड आवंटित किए गए हैं उनमें से अधिकांश खाली हैं। केवल उद्योग विभाग के मैप में ही कारखानों दिख रहे हैं जमीन पर नहीं। मैप के चित्र कुछ माह पुराने हो सकते हैं लेकिन इतने समय में किसी उद्योग का खड़ा हो पाना मुश्किल है। 

भूखंड आवंटन प्लान और गूगल मैप...

1.छिंदवाड़ा

2.सिवनी

3.गुढ़

4.सतना

5.नीमच

6.रतलाम

आवंटित भूखंडों पर नहीं लगाए उद्योग

युवा पलायन को मजबूर उद्योगपतियों की वादाखिलाफी