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MP News :मध्यप्रदेश, जो कभी इंजीनियरिंग शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में गिना जाता था, अब उस स्थिति से बहुत दूर हो चुका है। भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में स्थित कई प्रतिष्ठित कॉलेजों का हाल इस वक्त बेहद खराब है। पिछले नौ सालों में प्रदेश में 155 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं। अगर हम राजधानी भोपाल की बात करें, तो यहां अकेले 60 से ज्यादा कॉलेजों की चुपचाप 'समाधि' हो चुकी है। यह एक गंभीर संकेत है कि इंजीनियरिंग शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता है।
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कॉलेजों के बंद होने के कारण
इंजीनियरिंग कॉलेजों के बंद होने के कई कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण है इन कॉलेजों की घटती गुणवत्ता और छात्रों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी। पहले मध्यप्रदेश के कॉलेजों में छात्रों का रुझान काफी अधिक था क्योंकि यहां पढ़ाई सस्ती थी, रहना आसान था और सपने बड़े थे। लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है। इन कॉलेजों में न तो गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी है और न ही उद्योगों के साथ अच्छे संबंध, जिसके कारण प्लेसमेंट की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है।
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प्रमुख कॉलेजों की स्थिति
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गार्गी इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी:
भोपाल के रातीबड़ क्षेत्र में स्थित गार्गी इंस्टिट्यूट की शानदार इमारत अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। कुछ समय पहले तक यहां बी.टेक, मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स की क्लासें लगती थीं, लेकिन अब यह रिजॉर्ट बनाने की तैयारी हो रही है। कॉलेज अब बंद हो चुका है और डिग्री की जगह अब यहां 'डीलक्स रूम' मिलेगा। -
आलिया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग:
भोपाल का आलिया कॉलेज एक दशक तक तकनीकी प्रतिभाओं का उत्पादन करता था, लेकिन अब यह बंद हो चुका है। वर्ष 2020 में इसे बैंक ने नीलाम कर दिया और अब इस परिसर में अरविंदो कॉलेज ऑफ नर्सिंग चल रहा है। यहां एक तकनीकी संस्थान से नर्सिंग कॉलेज तक का सफर बेहद छोटे समय में तय हो गया। -
एक्रोपोलिस इंस्टिट्यूट, इंदौर:
इंदौर के एक्रोपोलिस इंस्टिट्यूट का ताला लग चुका है। यह कॉलेज भी अपनी आलीशान इमारतों के बावजूद केवल कुछ वर्षों में बंद हो गया। यहां सौंदर्यशास्त्र (ब्यूटीशियन ट्रेनिंग) की योजना भी शुरू की गई थी, लेकिन वह भी बंद हो गई।
गिरती साख के प्रमुख कारण
जानकारों का कहना है कि मध्यप्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेज समय के साथ अपने पाठ्यक्रमों और शिक्षा पद्धतियों में बदलाव नहीं कर पाए। कॉलेजों में एक तरफ जहां बिल्डिंग और लैब्स का निर्माण हुआ, वहीं दूसरी तरफ अकादमिक गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि इन कॉलेजों की साख खराब हो गई और रोजगार के अवसर घट गए।
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प्लेसमेंट की कमी:
अधिकतर कॉलेजों में प्लेसमेंट की कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी। जहां कुछ कॉलेजों में नाम के लिए टॉप कंपनियों का विजिट होता था, वहीं छात्रों को अच्छे करियर विकल्प नहीं मिल पाते थे। -
बदलती मांग और पुराना सिलेबस:
कॉलेजों का सिलेबस कई वर्षों से अद्यतन नहीं हुआ था, जिससे छात्रों को उद्योगों की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा नहीं मिल रही थी -
शिक्षकों की कमी
कई कॉलेजों में योग्य और अनुभवी शिक्षक भी नहीं थे, जिससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही थी।
उठाए जाएंगे ठोस कदम
मध्यप्रदेश सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए समिति का गठन किया है। यह समिति इस स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव देगी और कॉलेजों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के उपायों पर विचार करेगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये समितियां भी केवल रिपोर्ट ही तैयार करती रहेंगी और कुछ ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे?
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सरकार को कदम उठाने होंगे
मध्यप्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति सुधारने के लिए अब सरकार को कदम उठाने होंगे। एक मजबूत नीति और उद्योग के साथ सहयोग बढ़ाना होगा ताकि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी मिल सकें। केवल भवनों से कोई भविष्य नहीं बनता, अगर अकादमिक गुणवत्ता और प्लेसमेंट के अवसर मजबूत नहीं होंगे।
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