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मध्यप्रदेश में दो साल बीत जाने के बाद भी हिंदी माध्यम के इंजीनियरिंग छात्रों के लिए सेकंड ईयर की किताबें तैयार नहीं हो सकी है। 2023 में शुरू हुआ यह काम आज भी अधूरा पड़ा है। वहीं थर्ड सेमेस्टर की किताबों का कोई अता-पता नहीं है।
तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में सुलभ कराने की मंशा से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।
समय पर स्टडी मेटेरियल न मिलने से छात्र न तो परीक्षा की सही तैयारी कर पा रहे हैं और न ही विषयों की गहराई को समझ पा रहे हैं। इस काम को समय पर पूरा न कर पाने के कारण मध्यप्रदेश के हिंदी माध्यम के छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
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छात्रों को हो रही कठिनाई
छात्रों का कहना है कि हिंदी में किताबों का अभाव उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में एक्सेसिबल बनाने का उद्देश्य तो था, लेकिन समय पर स्टडी मेटेरियल न मिलने से छात्र परेशान हैं। वो न तो अपनी परीक्षा की सही तैयारी कर पा रहे हैं और न ही विषयों की गहराई को समझ पा रहे हैं।
ट्रांसलेशन की जिम्मेदारी
बता दें कि, एआईसीटीई (All India Council for Technical Education) ने 2023 में आरजीपीवी को इंजीनियरिंग और डिप्लोमा द्वितीय वर्ष के लिए 88 किताबों का ट्रांसलेशन करने का कार्य सौंपा था।
इनमें से 42 इंजीनियरिंग की किताबें और 46 डिप्लोमा की किताबें शामिल थीं। हालांकि, इनमें से सिर्फ 60 किताबों का ही हिंदी में ट्रांसलेशन किया जा सका है।
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ट्रांसलेशन में देरी का कारण
आरजीपीवी के अधिकारियों ने बताया कि, देशभर के करीब 176 शिक्षक और ट्रांसलेटर इन किताबों के हिंदी ट्रांसलेशन में लगे हुए हैं। आईआईटी दिल्ली, आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुम्बई और आईआईटी मद्रास जैसे मेजर इंस्टीटूशन्स के प्रोफेसर और शिक्षक भी इस काम में शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि, किताबें एक साथ न मिलने के कारण ट्रांसलेशन में देरी हो रही है।
छात्रों को क्या मदद मिलेगी
हिंदी में इंजीनियरिंग किताबों का ट्रांसलेशन छात्रों के लिए न केवल एजुकेशनल बेनिफिट्स देगा, बल्कि समान अवसरों के क्रिएशन में भी मदद करेगा। इससे हिंदी माध्यम में पढ़ने वाले छात्र समान स्तर पर अपने सिलेबस को समझने और पढ़ने में सक्षम होंगे।
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