संजय शर्मा@ भोपाल.
हाईस्कूल शिक्षक परीक्षा पात्रता की दो शिफ्टों में पूछा एक प्रश्न, फिर एक शिफ्ट में कर दिया रद्द
जवाब एक जैसा होने के बाद एक्सपर्ट पैनल के हवाले से दिया गैरजिम्मेदाराना जवाब
कर्मचारी चयन मंडल यानी ESB को लेकर प्रदेश के लाखों युवाओं में अविश्वास लगातार गहरा होता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ESB की कारगुजारियां ही कुछ ऐसी हैं। कर्मचारी चयन मंडल की गलतियां परीक्षाओं में शामिल होने वाले हजारों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं। मंडल अपनी गलतियों को छिपाने के लिए नए नए हथकंडे अपनाने के लिए भी बदनाम हो चुका है। परीक्षा के प्रश्न पत्र में गलतियों के कई बार पकड़े जाने के बाद ESB ने ऑनलाइन पेपर को कस्टमाइज कर दिया है। अब परीक्षा देने वाला अभ्यर्थी ही अपना पेपर देख सकता है। इस पेपर में कौन से प्रश्न आए और उनमें गलती क्या है, इसका पता दूसरे को नहीं लगता, या फिर तब लगता है जब कोई इसे अपने साथी से शेयर करे। हाल ही में ऐसा ही मामला सामने आने के बाद अब ESB की भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र सार्वजनिक न करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं इनमें शामिल होने वाले अभ्यर्थी प्रश्न पत्र पोर्टल पर सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं।
दोनों परीक्षार्थियों द्वारा की गई शिकायत की प्रति
- सुदर्शन सोलंकी
- प्रियंका नागपुरे
बार- बार परीक्षाओं और रिजल्ट जारी करने में गड़बड़ी के आरोपों में घिरे रहने वाले ESB यानी कर्मचारी चयन मंडल से जुड़ा ये नया विवाद क्या है इसे विस्तार से जानिए ...
दरअसल मनावर में रहने वाले सुदर्शन सोलंकी मार्च में उच्च शिक्षक पात्रता परीक्षा में शामिल हुए थे। 4 मार्च को बॉयोलोजी विषय से सुदर्शन ने दूसरी शिफ्ट में ऑनलाइन परीक्षा दी। इसके लिए उन्हें प्रश्न पत्र (ID 2657236) दिया गया था, उसमें मिनामाता रोग से संबंधित सवाल था। इसको लेकर बाद में किसी आपत्ति के चलते प्रश्न को निरस्त कर दिया गया। इस वजह से इस शिफ्ट में परीक्षा में शामिल हजारों परीक्षार्थियों के अंक कम कर दिए गए। जब कुछ दिन बाद सुदर्शन ने परीक्षा की पहली शिफ्ट में शामिल एक अभ्यर्थी का प्रश्न पत्र देखा तो परेशान हो गए। इस प्रश्न पत्र में भी मिनामाता रोग से जुड़ा सवाल था। इसकी शिकायत दोनों परीक्षार्थियों ने प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर जीएडी, ESB चेयरमैन और पीएस स्कूल शिक्षा और लोक शिक्षण आयुक्त को पत्र लिखकर की है।
हाईस्कूल शिक्षक परीक्षा की दो शिफ्टों में पूछा एक प्रश्न
दोनों ही शिफ्ट के पेपरों में यह कॉमन प्रश्न था। बावजूद इसके दूसरी शिफ्ट में इसे निरस्त कर अंक काट दिए गए थे। इसके पीछे जो लॉजिक बताया गया वह भी कम मजाकिया नहीं है।
दोनों शिफ्टों में पूछे गए सवाल
- पहली शिफ्ट में ESB ने जो सवाल दिया वह था- हिंदी में पारा प्रदूषण के कारण .......... होती है।
- इसके चार विकल्प थे मीनामाता रोग, ब्लू बेबी सिंड्रोम, इटाई- इटाई रोग और क्यासानूर फॉरेस्ट रोग।
- अंग्रेजी में भी यही प्रश्न था और मिनामाता या मीनामाता दोनों की स्पेलिंग एक जैसी ही थी।
- अब दूसरी शिफ्ट में जिस प्रश्न को एक्सपर्ट पैनल का हवाला देकर निरस्त किया गया, यह प्रश्न था- मीनामाता रोग किसके विषैले प्रभाव के कारण होता है।
- इसके विकल्प थे- निकल, सीसा, पारा और तांबा।
- अब आप समझ सकते हैं कि दोनों प्रश्नों में क्या अंतर है और इस सामान्य से प्रश्न को समझने में एक्सपर्ट पैनल को क्या दिक्कत आई और उन्हें हिंदी- अंग्रेजी अनुवाद में कौन सा विरोधाभास दिखा की प्रश्न को ही रद्द करने की अनुशंसा कर डाली।
ESB ने जबाव में ये कहा
आपत्ति पर ESB कंट्रोलर की ओर से जवाब दिया गया कि एक्सपर्ट पैनल की जांच में प्रश्न में हिंदी- अंग्रेजी अनुवाद की त्रुटि पाई गई है। इस वजह से इसे निरस्त किया गया है, जबकि मिनामाता या मीनामाता का हिंदी- अंग्रेजी अनुवाद और अर्थ अलग- अलग नहीं है। जब सुदर्शन ने पहली शिफ्ट में इसी प्रश्न को निरस्त न करने पर सवाल उठाया तो ESB का जवाब आपको सिर पीटने के लिए मजबूर कर देता है। ESB कंट्रोलर द्वारा पत्र के जरिए सुदर्शन को बताया गया है कि पहली शिफ्ट में किसी ने प्रश्न पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई, इस कारण इसे एक्सपर्ट पैनल के सामने नहीं रखा गया। इस शिफ्ट में परीक्षार्थियों को इसी प्रश्न पर पूरे अंक दिए गए हैं। उच्च शिक्षक बनने पात्रता परीक्षा की दूसरी शिफ्ट में पेपर देने वाले हजारों युवा ESB के जवाब से खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। जब कोई प्रश्न एक जगह गलत है तो वहीं दूसरे पेपर में कैसे सही ठहराया जा सकता है। वहीं ESB का यह लॉजिक की आपत्ति नहीं आई इसलिए इसे सही मान लिया गया यह भी गैरजिम्मेदारी वाला जवाब है।
मिनामाता या मीनामाता रोग पर आए प्रश्न पर ESB घिरा है आखिर वह है क्या...
इस रोग को सबसे पहले जापान के शहर मिनामाटा में देखा गया था। यह औद्योगिक यूनिट से निकले उस दूषित पानी से फैला था, जिसमें मर्करी यानी पारा मिला था। दूषित पानी की मछली खाने से यह बीमारी बड़े स्तर पर फैली थी और मिनामाटा शहर पर इसका नाम रखा गया था।
पेपर छिपाकर कहीं गोलमाल तो नहीं कर रहा ESB
ESB की परीक्षाओं में गोलमाल का यह एक उदाहरण भर है। ऐसे ढेरों मामले हैं, जिनमें मंडल जो जवाब देता है उन्हें पचाना आसान नहीं होता। ESB केवल युवाओं को भटकाने और अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करता है। जब परीक्षार्थी तथ्यों के साथ त्रुटि बताते हैं तो अधिकारियों को ईगो हर्ट हो जाता है। सुदर्शन सोलंकी का कहना है ESB के अधिकारी ऐसी ही गड़बड़ियों के सहारे कारगुजारियों को अंजाम देते हैं। वैसे तो प्रश्न पत्र सार्वजनिक नहीं करने की व्यवस्था ने उनकी प्लानिंग को फूलप्रूफ कर ही दिया है। जब कभी कुछ लीक होता है तो वे कोर्ट से आदेश लाने का कहकर टालते हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है बेरोजगार हाईकोर्ट में उसके खिलाफ लड़ नहीं सकते। उनके पास हजारों- लाखों रुपया नहीं है, जबकि अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए अधिकारी ESB का रुपया बेरोकटोक उड़ा सकते हैं।
ESB की इस कारगुजारी के सामने आने के बाद अब हर परीक्षा और उसकी शिफ्टों में होने वाले पेपर को लेकर परीक्षार्थी सतर्क हो गए हैं। हालांकि ESB हर बार की तरह फिर गड़बड़ी का नया तरीका खोज निकालेगा। लेकिन अब परीक्षार्थी इस गोरखधंधे को देखते हुए प्रदेश सरकार और ESB से हर परीक्षा और उसकी शिफ्टों में दिए जाने वाले ऑनलाइन प्रश्न पत्र पोर्टल पर सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं। देखते हैं अपनी कारस्तानियों को छिपाने वाला ESB युवाओं की इस मांग पर क्या रिएक्शन देता है।
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