News Strike : कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी बहुत जल्द रिलीज होने वाली है। इमरजेंसी की चर्चा देशभर में आज से नहीं कई बरस है। इस बार जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल कर संविधान बचाने का राग छेड़ा तो बीजेपी ने इमरजेंसी के पुराने पन्ने पलटने शुरू कर दिए और ये भी ऐलान कर दिया कि इमरजेंसी की बरसी को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इमरजेंसी की जलती हुई आग में अब कंगना रनौत की फिल्म घी का काम करने वाली है। फिल्म रिलीज होने में कुछ दिन बचे हैं। इससे पहले आपको बताते हैं कि इमरजेंसी के दौरान मध्यप्रदेश का वो कौन सा सीएम था जो रोज पूछता था आज नाश्ते में क्या है और वो कौन सा सीएम था जो जेल की सलाखों के बीच दिन गुजार रहा था।
इमरजेंसी का अध्याय मध्यप्रदेश से भी गहराई से जुड़ा है
इमरजेंसी का अध्याय देश में जितना पुराना है। मध्यप्रदेश से भी उसके तार उतने ही गहरे जुड़े हैं। इमरजेंसी क्या है ये तकरीबन सभी लोग जानते हैं। खासतौर से सत्तर, अस्सी के दशक में थोड़े उम्र दराज या कम उम्र के रहे लोग देश के इस इतिहास से अनजान नहीं है। इमरजेंसी के काले दौर का सिलसिला शुरू हुआ जून 1975 से। जब इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के मद्देनजर आपातकाल का ऐलान कर दिया। वैसे ये कहानी शुरू होती है 1971 के चुनावों से। उत्तरप्रदेश के समाजवादी नेता राज नारायण कई बार इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े और हारे। साल 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की रायबरेली से जीत के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनकी जीत को चुनौती दी और आरोप लगाया कि सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से इंदिरा गांधी ने ये चुनाव जीता है। कुछ दलीलों के आधार पर अदालत ने माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी की मदद से चुनाव जीता है और जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक उनका सांसद चुना जाना अवैध है। इसके बाद अदालत ने उनके छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। ऐसे हालात में इंदिरा गांधी के सामने पद छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
देश की एकता और अखंडता के लिए आपातकाल जरूरी था
इस दौरान तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डीके बरूआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि वो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बन जाएं और पीएम का पद उन्हें सौंप दें। इंदिरा गांधी के सामने बहुत सारे सुझाव थे, लेकिन उनके बेटे संजय गांधी किसी और को पद सौंपने के पक्ष में नहीं थे। सारी मुद्दों के बीच बिहार और गुजरात में छात्रों का विरोध इंदिरा गांधी के खिलाफ मुखर हो रहा था। रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्ति सिंहासन खाली करो कि अब जनता आती है नारे के रूप में सुनाई देने लगी थी। जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली करने का ऐलान कर ही दिया था। इसी रैली ने इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा बहाना दिया। इंदिरा गांधी ने देश के नाम अपने संदेश में कहा कि देश में सेना, पुलिस और अधिकारियों को भड़काने की कोशिश हो रही है। ऐसे में आपातकाल लगाना जरूरी है ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके। 25 जून 1975 को देश में लगा ये आपातकाल पूरे 21 महीने तक जारी रहा। 21 मार्च 1977 को देश से आपातकाल का दौर खत्म हुआ। तत्कालीन कानून मंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इमरजेंसी का प्रस्ताव रखा। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से रात में ही इस पर साइन करवाए गए और 26 जून की सुबह से उसे देश भर में लागू कर दिया गया। आपातकाल लागू होने के बाद कई विपक्षी नेताओं को बंदी बना लिया गया। उस समय चंद्रशेखर, रामधन, कृष्णकांत और मोहन धारिया यंग तुर्क कहलाते थे। ये कांग्रेसी नेता ही थे, लेकिन इन्हें भी बंदी बना लिया गया।
आपातकाल के दौर में बंदियों को कहा जाता है मीसाबंदी
मीडिया पर जितनी संभव थी उतनी रोक लगा दी गई। इस दौरान करीब डेढ़ लाख लोग गिरफ्तार हुए। अधिकांश लोग संघ से जुड़े हुए थे। आपातकाल का थोड़ा समय बीता तो इंदिरा गांधी को लगा कि अब हालात काबू में हैं और चुनाव करवाए जा सकते हैं। आंदोलन को दबा जानकर इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा करवाई। इस समय तक आरएसएस एक्टिव ही था। संघ ने जनता पार्टी के बैनर तले जेल में बंद नेताओं से चुनाव लड़ने की पेशकश की। बहुत से नेता मान गए। चुनाव हुए और इंदिरा गांधी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, एक हार के बाद अगले चुनाव में इंदिरा गांधी फिर सत्ता पर काबिज हुईं। आपातकाल के दौर में जिन लोगों को बंदी बनाकर जेल में रखा गया। जो लोग उस वक्त जेल में बंद थे उन्हें मीसाबंदी कहा जाता है। कुछ राज्यों में मीसाबंदियों को इस बात की पेंशन भी मिलती है। लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी का नाम मीसा भारती। उसी दौर की याद में रखा है।
प्रशासनिक गलियारों में ये किस्सा भी मशहूर है
आपातकाल के उन दिनों से मध्यप्रदेश की कुछ खास यादें जुड़ी हैं। कुछ ऐसे किस्से हैं जो आपातकाल के जिक्र के साथ हमेशा सुने और सुनाए जाते रहेंगे। जिस तरह देश में अलग-अलग जगह से लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था उस तरह मध्यप्रदेश में भी गिरफ्तारियां जारी थी। उस दौर में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रोज एक सवाल किया करते थे कि आज नाश्ते में क्या है। प्रदेश के सियासी और प्रशासनिक गलियारों में ये किस्सा बड़ा मशहूर है। उस समय प्रदेश के मुखिया यानी कि सीएम थे प्रकाश चंद्र सेठी। कहा जाता है कि केंद्र के इशारे पर उन्होंने मध्यप्रदेश में भी बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी करने के आदेश दिए हुए थे। इस आदेश के तहत हर रोज कई गिरफ्तारियां होती थीं। उस दौर के लिए कहा जाता है कि जब सीएम अपने दफ्तर पहुंचते थे तब सबसे पहले अपने मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा से सवाल करते थे आज नाश्ते में क्या है। तब उनका आशय ऐसे लोगों से होता था जिन्हें गिरफ्तार किया गया जाता था। आपको बता दें कि सेठी वही सीएम थे जिन्होंने कहा था कि इंदिरा जी को यदि मेरी खाल से जूते बनाने होंगे तो मैं अपनी खाल भी खुशी-खुशी दे दूंगा।
ये किस्सा जुड़ा है शिवराज सिंह चौहान से
एक सीएम ने इमरजेंसी के दौरान लोगों की गिरफ्तारियां करवाई तो एक सीएम ने जेल की सलाखों के पीछे कई दिन गुजारे। हालांकि, तब वो सीएम नहीं थे। ये किस्सा जुड़ा है शिवराज सिंह चौहान से। जो आपातकाल के दौर में सत्रह या अठ्ठारह साल के नौजवान थे। आपातकाल के दौरान संघ के नेता सूर्यकांत केलकर को गिरफ्तार किया गया था। वो एबीवीपी से भी जुड़े हुए थे। उनकी जेबें तलाशी गईं तो एक पर्ची निकली जिस पर शिवराज सिंह चौहान का नाम लिखा था। इस पर्ची के आधार पर पुलिस शिवराज सिंह चौहान की तलाश में जुट गई। तब शिवराज सिंह चौहान भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे। पर्ची पर निकले नाम के आधार पर शिवराज सिंह चौहान भी गिरफ्तार हुए करीब 19 महीने उन्होंने भी जेल में ही गुजारे। इसी दौरान उनकी मुलाकात संघ के कई नेताओं से हुई और वो उनके करीबी बन गए।
कंगना रनौत की इमरजेंसी फिल्म कई विवादों में घिरी है। कुछ जानकार उनकी फिल्म में दिखाए फेक्ट्स पर भी सवाल उठा रहे हैं। फिल्म में क्या है क्या नहीं ये रिलीज के साथ खुलासा हो ही जाएगा, लेकिन उसमें इमरजेंसी और मध्यप्रदेश से जुड़े ये किस्से आपको शायद ही सुनने को मिलें। जो आपातकाल की से जुड़ा प्रदेश का एक खास इतिहास है।
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