ईसाई पुलिस इंस्पेक्टर अमिताभ प्रताप सिंह निकला आदिवासी, 25 साल की नौकरी, अब हुआ खुलासा

जबलपुर निवासी अमिताभ प्रताप सिंह ने फर्जी "गोंड" जाति प्रमाण पत्र के आधार पर 25 साल पुलिस विभाग में नौकरी की, अब एसडीएम की जांच रिपोर्ट से हुआ खुलासा, गृह विभाग कार्यवाही की तैयारी में।

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Rohit Sahu
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MP News: मध्य प्रदेश के जबलपुर में पुलिस इंस्पेक्टर अमिताभ प्रताप सिंह, जिन्हें अमिताभ थियोफिलस के नाम से भी जाना जाता है। इसका खुलासा एसडीएम की जांच में हुआ। इंस्पेक्टर ने गोंड जनजाति का फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर पुलिस में नौकरी हासिल की थी। एसडीएम रघुवीर सिंह मरावी की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि अमिताभ ईसाई धर्म से हैं, लेकिन उन्होंने जनजातीय आरक्षण का गलत फायदा उठाकर वर्ष 2000 में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती ली थी।

1998-99 में बना फर्जी सर्टिफिकेट, 2000 में मिली नौकरी

जांच में सामने आया कि अमिताभ ने 1998-99 में फर्जी गोंड जाति प्रमाण पत्र बनवाया था। इसके आधार पर वर्ष 2000 में उन्हें मध्यप्रदेश पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर पद पर नियुक्ति मिली। वर्तमान में वह बुरहानपुर जिले की पुलिस लाइन में पदस्थ हैं। जांच के बाद कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना ने शासन को विभागीय व दंडात्मक कार्यवाही के लिए पत्र लिखा है।

पहली शिकायत 2019 में, दूसरी 2024 में हुई

अमिताभ सिंह की पहचान आमतौर पर राजपूत के रूप में होती रही, जबकि वह मूलतः ईसाई समुदाय के अनुयायी हैं। वर्ष 2019 में भोपाल की सोनाली दात्रे ने तत्कालीन जनजातीय आयुक्त दीपाली रस्तोगी से शिकायत की थी, परन्तु कोई ठोस जांच नहीं हुई।

इसके बाद 9 अक्टूबर 2024 को भोपाल की प्रमिला तिवारी ने ट्राइबल कमिश्नर ई-रमेश को शिकायत भेजी। इस बार मामला गंभीरता से लिया गया और जबलपुर कलेक्टर को जांच सौंपी गई।

एसडीएम की जांच में खुला कच्चा-चिट्ठा

कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना के निर्देश पर एसडीएम रघुवीर सिंह मरावी ने गहन जांच की। रिपोर्ट में बताया गया कि अमिताभ ने 1 जुलाई 1980 को सेंट पॉल हायर सेकेंडरी स्कूल, नेपियर टाउन जबलपुर में पहली कक्षा में दाखिला लिया था। दाखिले में धर्म "क्रिश्चियन" और जाति "एसटी गोंड" दर्ज कराई गई थी।

जांच में यह भी सामने आया कि वर्ष 1950 की स्थिति में न तो अमिताभ और न ही उनके पूर्वज तहसील रांझी, जिला जबलपुर में गोंड जनजाति के रूप में निवासरत थे। न ही उनके पास कोई प्रमाण या दस्तावेज हैं जो गोंड जनजाति का संबंध सिद्ध कर सकें।

jabalpur inspectore

पिता और पूर्वजों ने सुनियोजित साजिश रची

एसडीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमिताभ के पिता धीरेंद्र प्रताप सिंह ने सुनियोजित साजिश के तहत स्कूल के दाखिले में जाति "गोंड" लिखवाया ताकि आगे चलकर आरक्षण का लाभ मिल सके।

जांच में यह भी पाया गया कि अमिताभ के रीति-रिवाज, रहन-सहन व सांस्कृतिक व्यवहार गोंड जनजाति से मेल नहीं खाते। अमिताभ के किसी रिश्तेदार, नातेदार या परिजन का भी गोंड जनजाति से कोई संबंध नहीं मिला।

फर्जी पते पर कराया गया प्रवेश

अमिताभ ने अपने निवास का पता "206 अंकुर अपार्टमेंट, जबलपुर" बताया था। लेकिन वर्ष 1950 की स्थिति में वहां या आसपास उनके निवास की पुष्टि नहीं हुई। जांच में साफ हुआ कि गोंड जनजाति का जाति प्रमाण पत्र पूरी तरह फर्जी था और उसे झूठी जानकारी देकर बनवाया गया।

अब प्रमाण पत्र हो सकता है निरस्त

जांच के निष्कर्ष के आधार पर एसडीएम ने सिफारिश की है कि अमिताभ प्रताप सिंह द्वारा प्राप्त गोंड जाति का प्रमाण पत्र तत्काल निरस्त किया जाए और उसके विरुद्ध विभागीय व आपराधिक कार्यवाही की जाए। गृह विभाग अब इस पूरे मामले में त्वरित निर्णय की तैयारी में है।

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