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स्वास्थ्य सेवाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्र में फर्जीवाड़ा कर सरकारी नौकरी हथियाने वाले एक आरोपी शुभम अवस्थी की मुसीबतें और बढ़ गई हैं। जबलपुर की जिला अदालत ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। शुभम अवस्थी पर आरोप है कि उसने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की फर्जी बीएएमएस डिग्री के आधार पर शासकीय अस्पताल में डॉक्टर के रूप में नौकरी हासिल की।
सिविल लाइंस में धोखाधड़ी का केस हुआ था दर्ज
जब यह मामला हाई कोर्ट के संज्ञान में आया, तो कोर्ट ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद थाना सिविल लाइंस में धोखाधड़ी, जालसाजी और शासकीय पद पर अवैध नियुक्ति से संबंधित गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ। अब जब आरोपी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की, तो अदालत ने उसे ठुकरा दिया। मामले की सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि खुद को भाजपा नेता बताने वाले शुभम अवस्थी को भाजपा से 2 साल पहले निष्कासित किया जा चुका है
कोर्ट ने जमानत देने से किया इनकार
अदालत ने अपने आदेश में साफ शब्दों में कहा कि आरोपी शुभम अवस्थी के मामले में कोई ऐसी "विशेष परिस्थिति" नहीं है, जिसके आधार पर उसे अग्रिम जमानत दी जा सके। कोर्ट ने केस डायरी, आरटीआई दस्तावेज़ों और अन्य प्रमाणों का अध्ययन करने के बाद माना कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया पर्याप्त सबूत हैं कि उसने फर्जी दस्तावेज़ों के बल पर शासकीय पद प्राप्त किया है।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि अभियोजन और शिकायतकर्ता की आपत्तियाँ इस मामले में मजबूत हैं और आरोपी की गिरफ्तारी से बचाव का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। कोर्ट ने साफ किया कि यदि ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दी गई, तो इससे कानून व्यवस्था और शासकीय नियुक्तियों की शुचिता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
बीएएमएस की फर्जी डिग्री से की नौकरी
शुभम अवस्थी पर आरोप है कि उसने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के नाम से एक बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री तैयार की और उसे स्वास्थ्य विभाग में नियुक्ति हेतु प्रस्तुत किया। दस्तावेजों की जाँच में स्पष्ट हुआ कि न तो वह छात्र के रूप में कभी विश्वविद्यालय में पंजीकृत था और न ही उसे ऐसी कोई उपाधि दी गई थी। इसके बावजूद उसने फर्जी डिग्री के सहारे विक्टोरिया जिला अस्पताल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में डॉक्टर के रूप में काम किया। यह तथ्य सामने आने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता शैलेन्द्र बारी ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहाँ से मामले की गंभीरता को देखते हुए एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए गए।
राजनीतिक साजिश का दावा, पर कोर्ट ने नहीं मानी दलीलें
शुभम अवस्थी की ओर से अदालत में यह दलील दी गई कि उसके खिलाफ दर्ज मामला एक सुनियोजित राजनीतिक साजिश का परिणाम है। आरोपी ने यूनिवर्सिटी पर ही आरोप लगा दिया कि उसके खिलाफ यूनिवर्सिटी ने आरटीआई के जो दस्तावेज दिए हैं वह नकली हैं। उसने खुद को प्रतिष्ठित नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनैतिक रूप से सक्रिय बताया।
वकील के माध्यम से अदालत को यह भी बताया गया कि शुभम का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, वह स्थानीय निवासी है और समाज में उसका सम्मानजनक स्थान है। लेकिन अदालत ने इस तर्क को यह कहते हुए नकार दिया कि जांच अभी प्रारंभिक अवस्था में है और दस्तावेज़ों की सत्यता पर इस स्तर पर विचार नहीं किया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के समाज में सम्मान या राजनीतिक स्थिति उसे कानूनी प्रक्रिया से बचने का अधिकार नहीं देती।
बीजेपी से पहले ही निष्कासित हो चुका है आरोपी
शिकायतकर्ता की ओर से अदालत को यह भी अवगत कराया गया कि शुभम अवस्थी अब भाजपा का सक्रिय सदस्य नहीं है। दो साल पूर्व ही पार्टी ने उसे अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए संगठन से निष्कासित कर दिया था। इसके बावजूद वह स्वयं को 'बीजेपी नेता' के रूप में प्रचारित करता रहा, जो जनता को भ्रमित करने का प्रयास है। अदालत ने इस बिंदु को भी ध्यान में रखते हुए माना कि आरोपी द्वारा स्वयं को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त बताना तथ्यों के विपरीत है और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का एक प्रयास मात्र है।
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अब गिरफ्तारी की लटक रही तलवार
जमानत याचिका खारिज होने के बाद अब शुभम अवस्थी के सामने गिरफ्तारी का सीधा खतरा मंडरा रहा है। चूंकि एफआईआर उच्च न्यायालय के आदेश पर दर्ज की गई है और पुलिस जांच प्रारंभिक स्तर पर है, ऐसे में अब उसकी गिरफ्तारी की संभावना प्रबल हो गई है। पुलिस का कहना है कि मामले से जुड़े सभी दस्तावेज़ एकत्र किए जा रहे हैं और जल्दी ही आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ की जाएगी। यदि जांच में और भी फर्जी दस्तावेज़ या ऐसे अन्य मामलों के सुराग मिलते हैं, तो उस पर और धाराएं भी जोड़ी जा सकती हैं।
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