सागर की 400 करोड़ की सरकारी जमीन हेराफेरी पर HC सख्त, बेचने वालों और सरकार से मांगा जवाब

सागर में 400 करोड़ की सरकारी ज़मीन घोटाले पर एमपी HC ने विक्रेताओं, खरीदार और प्रशासन से जवाब मांगा है। इस मामले में 14 मई को अगली सुनवाई होगी।

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Neel Tiwari
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सागर जिले में 400 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की 27.82 एकड़ सरकारी जमीन की अवैध बिक्री के मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बुधवार को अहम सुनवाई की। कोर्ट ने विक्रेताओं, खरीदार सुभाग्योदय डेवलपर्स और जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि वे यह सिद्ध करें कि आखिर उक्त जमीन के वे वैध भू-स्वामी कैसे बने। साथ ही, सभी पक्षों को आगामी सुनवाई से पहले जमीन स्वामित्व से जुड़े मूल राजस्व डॉक्यूमेंट हाईकोर्ट में पेश करने के आदेश दिए गए हैं।

2017 में हुआ था 400 करोड़ की जमीन का सौदा

पूरा विवाद सागर के खुरई रोड पर भाग्योदय अस्पताल के सामने स्थित 30 एकड़ सरकारी जमीन से जुड़ा है, जो वर्ष 1925 में एक मुस्लिम (खत्री) परिवार को खेती के लिए लीज पर दी गई थी। आरोप है कि इस जमीन के भू-राजस्व रिकॉर्ड में 2014-15 में हेराफेरी की गई और खसरे के कॉलम क्रमांक 12 में बिना किसी वैध आदेश के एन्ट्री कर दी गई कि परिवार जमीन का मालिक है।

इसके आधार पर वर्ष 2017 में करीब 27.82 एकड़ जमीन सुभाग्योदय डेवलपर्स को बेच दी गई। उस समय इस जमीन की गाइडलाइन वैल्यू 33 करोड़ रुपये थी, जबकि बाज़ार मूल्य 400 करोड़ से अधिक आँकी गई थी। आज की स्थिति में इस जमीन की कीमत 15,000 रुपये प्रति वर्गफुट तक पहुँच चुकी है।

राजस्व मंडल ने बिना अधिकार दी विक्रय अनुमति, अधिकारी ने लिया VRS

सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब यह जमीन कभी भी उक्त परिवार को स्वामित्व अधिकार के रूप में आवंटित ही नहीं की गई, तो फिर मध्यप्रदेश राजस्व मंडल, ग्वालियर ने दिनांक 06 जून 2016 को इसकी विक्रय की अनुमति कैसे दे दी?

हस्तक्षेपकर्ता अधिवक्ता जगदेव सिंह ठाकुर के अनुसार, उक्त आदेश में जिस प्रकरण क्रमांक का उल्लेख किया गया है, उस प्रकरण का कोई आदेश कभी पारित ही नहीं हुआ। यही नहीं, राजस्व मंडल के तत्कालीन सदस्य IAS एम.के. सिंह ने विवाद बढ़ता देख VRS ले लिया, जबकि सरकार की ओर से उन्हें टर्मिनेशन का अल्टीमेटम दिया गया था।

राजस्व दस्तावेजों ने बयां की सच्चाई

हाईकोर्ट में सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल जान्हवी पंडित ने वर्ष 1963 की दायरा पंजी (राजस्व विभाग से संबंधित रिकॉर्ड) प्रस्तुत की। दस्तावेजों के गहन परीक्षण के बाद चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक कुमार जैन की डिविजनल बेंच ने पाया कि जिन विक्रेताओं ने खुद को भूमि स्वामी बताया है, उनका नाम कहीं भी भू-स्वामी के रूप में दर्ज नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि यदि विक्रेताओं को जमीन का स्वामित्व मिला था, तो इसका वैध राजस्व आदेश अगली सुनवाई पूर्व प्रस्तुत किया जाए। इसी प्रकार, कलेक्टर सागर को भी निर्देशित किया गया है कि यदि ऐसे किसी आदेश की कॉपी उनके पास हो, तो उसे कोर्ट में दाखिल किया जाए।

सरकारी वकीलों की लापरवाही से पहले भी एक मामला हुआ खारिज

चौंकाने वाली बात यह है कि जिला न्यायालय में सरकार द्वारा विक्रय पत्रों को शून्य घोषित करने हेतु दायर किया गया मामला, सरकारी वकीलों की अनुपस्थिति के कारण पहले ही खारिज हो चुका है। इस लापरवाही के चलते एक सरकारी वकील को अपनी पदवी से हाथ भी धोना पड़ा।

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14 मई को होगी अंतिम सुनवाई, फैसले पर टिकीं कई निगाहें

इस मामले में विक्रेताओं की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट संजय अग्रवाल, खरीदार सुभाग्योदय डेवलपर्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नगरथ तथा हस्तक्षेपकर्ता अधिवक्ता जगदेव ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, श्याम यादव और शिवांशु कोल ने अपनी दलीलें पेश कीं। अब इस जमीन विवाद की अंतिम सुनवाई 14 मई 2025 को तय की गई है, जिसमें हाईकोर्ट से कड़ा फैसला आने की उम्मीद है।

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