वन विकास निगम महाप्रबंधक की सजगता से टला 22 करोड़ का फटका

मध्य प्रदेश के एक अधिकारी की चतुराई से वन विकास निगम को 22 करोड़ की जीएसटी से राहत मिली है। अब निगम को यह भारी भरकम राशि वस्तु एवं सेवा कर के रूप में जमा नहीं करानी होगी।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश के एक अधिकारी की चतुराई से वन विकास निगम को 22 करोड़ की जीएसटी से राहत मिली है। अब निगम को यह भारी भरकम राशि वस्तु एवं सेवा कर के रूप में जमा नहीं करानी होगी। वन विकास निगम के महाप्रबंधक ने साल 2017_18 में इमारती लकड़ी की बिक्री के बदले टैक्स, ब्याज और जुर्माने में रियायत की मांग की थी। इसके लिए महाप्रबंधक ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर और उत्पाद शुल्क प्राधिकरण के समक्ष याचिका दायर की थी। अधिकारी की सजगता का लाभ वन विकास निगम को मिला है।  

यह है जीएटी में राहत का मामला 

वन विकास निगम द्वारा साल 2017 से 2018 के बीच इमारती लकड़ी की बिक्री की थी। जंगल से की गई कटाई से प्राप्त इस लकड़ी की बिक्री से निगम को जो आय हुई थी उस पर जीएसटी द्वारा 22 करोड़ रुपए से अधिक राशि का टैक्स लगाया गया था। इसके साथ ही तय अवधि में टैक्स जमा नहीं करने पर ब्याज और जुर्माना भी निगम को भरना था। जीएसटी की डिमांड से वन विकास निगम पर पड़ने वाले भार को देखते हुए महाप्रबंधक बीएन अंबाडे ने प्राधिकरण में याचिका लगाते हुए अपना पक्ष रखा था। जिसकी सुनवाई चल रही थी। 

वनोपज भी कृषि उपज के समान 

केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अपील आयुक्त के समक्ष हुई सुनवाई में निगम के एमडी बीएन अंबाडे ने दलीलें दीं। उनकी ओर से बताया गया कि वनोपज भी कृषि उपज की श्रेणी में आती है। जीएसटी के प्रावधानों में कृषि उपज जीएसटी से मुक्त है। इसलिए इमारती लकड़ी की बिक्री भी वनोपज की तरह टैक्स से बाहर रखी जानी चाहिए। अपील आयुक्त के सामने तर्क रखा गया कि वन विकास निगम सार्वजनिक उपक्रमों को डिपॉजिट वर्क श्रेणी के तहत पौधरोपण जैसे कार्यों के लिए सेवा उपलब्ध कराता है। यह सेवा वनोपज से संबंधित है। वन भूमि पर पेड़ों की कटाई से निगम को मिली लकड़ी, रेशा, ईंधन और कच्चे माल के रूप में उपयोग में आती है। तर्कों से सहमत अपील आयुक्त ने वन उपज को भी कृषि उपज के समान मानते हुए जीएसटी से राहत दे दी। 

तो निगम को उठाना पड़ता भार 

मध्यप्रदेश वन विकास निगम को 22 करोड़ के जीएसटी से राहत मिली है लेकिन कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में ऐसे मामलों में प्राधिकरण की रुख सख्त रहा है। संबंधित राज्यों में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर और केंद्रीय उत्पाद शुल्क द्वारा वन उपज को कृषि उत्पाद की श्रेणी में मानने से इंकार किया है। इस वजह से उन्हें जीएसटी का भुगतान करना पड़ा है। जबकि मध्यप्रदेश वन विकास निगम को न केवल 22 करोड़ के जीएसटी बल्कि वनोपज यानी लकड़ी की ढुलाई पर हुए खर्च को भी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत कर मुक्त रखा गया है। यानी इस काम के लिए निगम को जो अनुबंध राशि प्राप्त हुई  थी उस पर भी टैक्स नहीं लगेगा।

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