नील तिवारी, JABALPUR. नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने जबलपुर के मास्टर प्लान ( Master Plan ) से संबंधित जनहित याचिका वापस ले ली है। इसके साथ ही राज्य शासन को नए सिरे से लीगल नोटिस भेज दिया गया है। इस मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे ने बताया कि समाजसेवी रजत भार्गव के साथ मिलकर अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय के माध्यम से जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसके जरिये तीन वर्ष से अटके जबलपुर के मास्टर प्लान को लेकर चिंता जताई गई थी।
3 साल से अधर में शहर का मास्टर प्लान
जबलपुर का मास्टर प्लान 3 साल यानी 2021 से अटका पड़ा है। उसे अनिवार्य कानून नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम-1973 के तहत अब तक मंजूरी नहीं प्रदान की गई है। इसलिए मप्र शासन को जबलपुर मास्टर प्लान जल्द से जल्द क्रियान्वित करने की मांग के साथ नए सिरे से लीगल नोटिस भेजा गया है।
जबलपुर की हमेशा अनदेखी की जा रही है
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने बताया कि जबलपुर की हमेशा अनदेखी की जा रही है, नतीजा यह हुआ है कि जबलपुर का मास्टर प्लान तीन साल पिछड़ चुका है। यह स्थिति इंदौर में नहीं है, जहां बकायदा नियमित संयुक्त संचालक की पदस्थापना होकर मास्टर प्लान लगभग बन चुका है। मंच ने बताया कि मास्टर प्लान नहीं होने से अनियंत्रित बसाहट, पर्यावरण यहां तक की जबलपुर के जल स्रोतों तथा जलाशयों को भारी नुकसान पहुंचा है। इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
हाई कोर्ट ने दी नोटिस भेजने की स्वतंत्रता
जबलपुर हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाकर्ता को लीगल नोटिस भेजने की स्वतंत्रता देते हुए जनहित याचिका वापस लेने की मांग मंजूर कर ली। जिसके बाद राज्य शासन को भेजे गए लीगल नोटिस में कहा गया है कि एक जनवरी 2008 को जबलपुर के मास्टर प्लान में क्षेत्र 25 वर्ग किलोमीटर व 109 ग्राम सम्मिलित थे। साथ ही निवेश क्षेत्र 245 वर्ग किलोमीटर था। बाद में 25 जुलाई 2014 में 62 ग्राम पुन: सम्मिलित किए गए। लिहाजा क्षेत्र 25 किलोमीटर से बढ़कर 50 किलोमीटर हो गया। इसके साथ ही निवेश क्षेत्र बढ़कर 400 वर्ग किलोमीटर हो गया। इस वजह से नए मास्टर प्लान की जरूरत है, लेकिन वह पिछले तीन वर्षों से इसके कियान्वयन के प्रति राज्य शासन उदासीन है।