गर्भकाल : विरासत के साथ विकास का पर्याय है 'मोहन' का कृष्ण पाथेय

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 को सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो जाएंगे। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 9 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' लेकर आया है पूरा एनालिसिस... पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर चतुर्वेदी का विशेष आलेख...

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कौशल किशोर चतुर्वेदी @ भोपाल

डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद मध्य प्रदेश में कृष्ण का मानो नया स्वरूप प्रकट हुआ है। अब मध्य प्रदेश की करीब नौ करोड़ आबादी यह समझ पाई है कि मध्य प्रदेश और कृष्ण का नाता कितना गहरा है। यानी मध्यप्रदेश और खास तौर से मालवा के बिना कृष्ण का जीवन ही अधूरा है और अब जब डॉ.मोहन यादव ने जहां कृष्ण गए, उन सभी स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित करने का मन बनाया है...तो पूरी दुनिया यह भी समझ पाएगी कि कृष्ण के बिना मध्य प्रदेश की कल्पना नहीं की जा सकती। तो राम के प्रति भी मोहन का यही भाव है। मोहन मध्य प्रदेश में सनातन और हिंदुत्व के पर्याय बन रहे हैं तो वह 'विरासत के साथ विकास' की अवधारणा संग नए मध्य प्रदेश का चेहरा भी बन रहे हैं।

गर्भकाल …

मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…

कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…

आप भी बताएं मोहन कौन सी तान बजाएं…. 

इस लिंक पर क्लिक करके जानें सबकुछ…

https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/cm-mohan-yadav-garbhkal-the-sootr-survey-6952867

डॉ. मोहन यादव के मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद कृष्ण से मध्य प्रदेश का पूर्ण साक्षात्कार हो रहा है। अभी तक बस यही लगता था कि कृष्ण ने सांदीपनि आश्रम उज्जैन के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण की और फिर दूसरी बार मध्य प्रदेश में कदम ही नहीं रखा। शिक्षा की बात भी तब लोगों को याद आती थी, जब एक संदर्भ आता था कि सुदामा को भूख लगी थी और भरी बारिश में कृष्ण ने सुदामा के हिस्से के चने खा लिए थे। उज्जैन पहुंचे हर श्रद्धालु के मन में कृष्ण की यही लीला उमड़ती घुमड़ती रहती थी, पर डॉ. मोहन यादव ने देश और दुनिया को यह बता दिया है कि कृष्ण ने तन रूप में भले ही मथुरा में जन्म लिया हो, पर कृष्ण का मन मानो मध्य प्रदेश की गलियों में ही रमता था। यहां पथ-पथ पर कृष्ण की सुगंध बिखरी पड़ी है। कृष्ण की वह गलियां और पथ-पथ पर कृष्ण की खुशबू से सराबोर होने का सुयोग अब मध्य प्रदेश में भी देश और दुनिया के कृष्ण भक्तों को मिलेगा। यह सब संभव हो रहा है मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के भागीरथी प्रयासों से। 

पाथेय का मतलब होता है 'पथ का सहारा' और कलियुग में कृष्ण तो हर मानव मन में धूनी रमाए महायोगी की तरह विराजे सबका सहारा बने बैठे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मन में यही भाव है कि मध्य प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर महायोगी कृष्ण से सबका साक्षात्कार हो सके। मध्य प्रदेश कृष्ण भक्ति में धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सके। इसीलिए मोहन सरकार ने बड़ा फैसला लिया है कि राम वनगमन पथ की तर्ज पर मध्य प्रदेश में श्रीकृष्ण पाथेय भी बनेगा। अब चूंकि हाल ही में हम सबने कृष्ण जन्माष्टमी मनाई है तो 'कृष्ण पाथेय' की चर्चा अनिवार्य है। और 'मोहन' का यह 'कृष्ण पाथेय' प्रमाणित करेगा कि 'कृष्णमय मध्य प्रदेश' और 'मध्य प्रदेशमय कृष्ण' हैं। 

राम और कृष्ण में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अगाध श्रद्धा है। मध्य प्रदेश सरकार एक तरफ राम वनगमन पथ के विकास का काम प्राथमिकता से कर रही है तो श्री कृष्ण पथ का निर्माण मोहन यादव की प्राथमिकता में है। भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के लीला स्थलों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। राम वन गमन और कृष्ण पाथेय सनातन धर्म प्रेमियों को दैहिक, दैविक, आध्यात्मिक और धार्मिक पथ पर लेकर जाएंगे। इससे मध्य प्रदेश से सनातन धर्म की सुगंध पूरी दुनिया में बिखरेगी। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने कहा है कि 'मध्य प्रदेश सरकार ने भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण से जुड़े प्रदेश के स्थलों के विकास के लिए कार्ययोजना तैयार की है। भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के स्थलों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। श्री कृष्ण पाथेय मार्ग के लिए पर्यटन एवं संस्कृति विभाग को निर्देश जारी किए गए हैं।' 

मध्य प्रदेश सरकार श्रीकृष्ण की यात्राओं से संबंधित जिन स्थानों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने जा रही है, उनमें उज्जैन में भगवान कृष्ण की शिक्षा, जानापाव में भगवान परशुराम जी द्वारा उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान करना और धार के पास अमझेरा में रुक्मिणी जी के हरण का पवित्र स्थान शामिल हैं। वैसे मध्य प्रदेश सरकार ने 'श्री कृष्ण पाथेय' योजना के तहत भगवान श्रीकृष्ण की यात्रा से जुड़े सभी स्थानों को विकसित करने का फैसला किया है। इसके साथ ही राज्य सरकार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े 3200 से अधिक मंदिरों के संरक्षण पर भी काम कर रही है। इस योजना के तहत सरकार उज्जैन में एक विश्वविद्यालय स्थापित करेगी, जो सांदीपनि गुरुकुल की तर्ज पर होगा। सांदीपनि गुरुकुल वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान कृष्ण 12 वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्त करने के लिए उज्जैन आए थे। श्री कृष्ण पाथेय योजना के तहत तैयार किए गए दस्तावेज में कहा गया है कि भगवान कृष्ण ने मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में तीन यात्राएं कीं। उनकी पहली यात्रा शिक्षा प्राप्त करने के लिए थी, दूसरी मित्रविंदा से विवाह करने के लिए और तीसरी रुक्मणी से विवाह करने के लिए थी।

संस्कृति विभाग ने भगवान कृष्ण से जुड़ी विभिन्न कथाओं का मार्ग-चित्र तैयार कर लिया है और अभी भी और अधिक की पहचान करने के लिए काम कर रहा है। इन का केंद्र उज्जैन ही है। 

  • उज्जैन से द्वारका के बीच भगवान कृष्ण उज्जैन-चंदूखेड़ी, नलवा, चिकली, इंगोरिया, खरसोदखुर्द, मौलाना। बड़नगर: पंचकवास, पितगरा, कटोदिया छोटा, बदनावर, सातरूंडा, लीलीखेड़ी, सेमलखेड़ा, कंबारदा, दोत्र्या, मोहनपुरा, बेगनवर्दी, हिंडोला बावड़ी, डाबड़ी फांटा, सारंगी, साजेलिया, रूपारेल जामली, रायपुरिया, अलस्याखेड़ी, राल्यावन, मोहनकोट, पाडलधाटी, मुंडाल, भमरदा, लोहारिया, बड़ौद, पिपलिया, मसूरिया, बाबड़ी बड़ी, कालाकुंट, कटला, चंदवाना, जालत, दाहोद, गोधरा, राजकोट आदि से होकर गुजरे।
  • उज्जैन से मथुरा के बीच भगवान कृष्ण ने घाटिया, घोंसला, तनोदिया, आगर, सेमलखेड़ी, सोयत कलां, डोंगरगांव, काली तलाई, रायपुर, डाबल, बोंदा, नारली, नायरा, माधोपुर, झालरापाटन, कोटा, सवाई माधोपुर का मार्ग अपनाया।
  • उज्जैन से नारायणा गांव के बीच कृष्ण ने जेठल, बांदका, पानबिहार, कालूहेड़ा, अरन्या, नारायणा गांव के पथों पर गमन किया। 
  • उज्जैन से जानापाव के बीच कृष्ण उज्जैन, गोदला, पिपलिया राघो, कोकलाखेड़ी, रामवासा, किठौदा, बड़ोदिया खान, सांवेर, लखमन खेड़ी, तराना, सिलोदा बुजुर्ग, धरमपुरी, रिंगनोदिया, भरसाला, टिगरिया बादशाह, बड़ा बांगदादा, इंदौर: महू, भाटखेड़ी, बंजारी, खंडवा, कल्याणसी खेड़ी , जामनिया, अवलम धवलम, अहिल्यापुरी, मिचोली, कुवली, बड़कुनवां-जानपाव के रास्तों से गुजरे। 
  • उज्जैन से अमझेरा के बीच कृष्ण ने उज्जैन, गोदला, पिपलिया राघो, कोकलाखेड़ी, रामवासा, किठोदा, बड़ोदिया खान, सांवरे, लखमनखेड़ी, तराना, सिलोदा बुर्जुन, राजोदा, धरमपुरी, रिंगनोदिया, भवरासला, टिगरिया बादशाह, इंदौर: मेचल, बेटमा, घाटाबिल्लोद, गुनावदा, उटावद, मगजपुरा, धार, तिरला, माघोद, अमझेरा की राह तय की। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पूरी तरह से कृष्णमय हैं। आजकल वह हर मंच से कृष्ण कथा करते थकते नहीं हैं, जिसमें हर श्रोता का मन रम ही जाता है और यह सत्य स्थापित होता है कि कृष्ण चाहे श्री कृष्ण बने हों, तो मध्यप्रदेश के बिना संभव नहीं था। कृष्ण चाहे सुदर्शन चक्र धारी बने हों तो मध्यप्रदेश का ही प्रताप है। कृष्ण चाहे पांचजन्य पाए हों तो उसकी राह भी मध्यप्रदेश से गुजरती है। यानि मध्यप्रदेश के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण के बिना मध्यप्रदेश पूर्ण नहीं है। और इसीलिए बिना मध्यप्रदेश आए कोई भी कृष्णभक्त पूर्णता का अनुभव नहीं कर सकता। अब 'मोहन' के प्रयासों से निर्मित होता 'कृष्ण पाथेय' सभी कृष्ण भक्तों को भक्ति से लबालब होने में सहारा बनेगा। और यह प्रमाणित करेगा कि कृष्ण मध्यप्रदेशमय हैं तो मध्यप्रदेश कृष्णमय हैं।

इस तरह मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के प्रयासों से यह साफ हो रहा है कि मध्यप्रदेश जितना राममय रहा है, उतना ही कृष्णमय भी रहा है। और मध्यप्रदेश की माटी में भगवान राम कण-कण में समाए हैं तो भगवान कृष्ण की खुशबू भी मध्यप्रदेश की माटी में कण-कण में समाई है। 
'श्री कृष्ण पाथेय' के तहत यह स्थान जब विकसित होंगे, तब मध्यप्रदेश की धरा पर भगवान कृष्ण से कृष्णप्रेमी सीधा साक्षात्कार कर सकेंगे। 'कृष्ण पाथेय' यानी हृदय प्रदेश में पथ-पथ पर बिखरी कृष्ण की खुशबू...सनातन धर्म प्रेमियों को संतुष्टि के सागर में सराबोर कर देगी। और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सनातन धर्म और संस्कृति प्रेमियों को दी गई यह अनुपम भेंट स्‍वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो जाएगी...।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार में हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।

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