गर्भकाल: फैसलों से लोकप्रियता हासिल करने की जुगत में मोहन यादव

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 को सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो जाएंगे। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 09 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' लेकर आया है पूरा एनालिसिस... पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार मयूर भार्गव का विशेष आलेख...

Advertisment
author-image
The Sootr
New Update
 मयूर भार्गव
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

मयूर भार्गव@बैतूल.

मध्यप्रदेश में नवम्बर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बनाई गई लाड़ली बहना योजना की ऐसी आंधी चली थी कि इस योजना की बात जहां घर-घर तक होने लगी थी, वहीं इसका परिणाम यह हुआ था कि भाजपा को 2018 की तुलना में 2023 में अप्रत्याशित बहुमत मिला। शिवराज सिंह चौहान की महिलाओं में मामा और भाई की छवि चुनावी स्याही की तरह इतनी अमिट हो गई है कि मध्यप्रदेश में मुखिया के रूप में डॉ. मोहन यादव ने भले ही सत्ता संभाल ली है, लेकिन 9 माह बीतने और शिवराज सिंह चौहान के केंद्र में मंत्री बनने के बाद भी मध्यप्रदेश से मामा की परछाई दूर नहीं हो पा रही है। 

गर्भकाल …

मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…

कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…

आप भी बताएं मोहन कौन सी तान बजाएं…. 

इस लिंक पर क्लिक करके जानें सबकुछ…

https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/cm-mohan-yadav-garbhkal-the-sootr-survey-6952867

डॉ. मोहन यादव अपने फैसलों से लोकप्रियता हासिल करने की पूरी जुगत भिड़ा रहे हैं और उनके फैसले चर्चा का विषय भी बन रहे हैं, लेकिन वैसा बूम नहीं ला पा रहे हैं, जिससे उनकी छवि घर-घर तक पहुंच सके। बात चाहे प्रभावी भाषण के माध्यम से हार्ट टच करने की हो या फिर प्रदेश की जनता से सीधे संबंध स्थापित करने की ही क्यों ना हो? इन सभी के लिए डॉ.मोहन यादव को लंबा संघर्ष करना पड़ सकता है। हालांकि डॉ.मोहन यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभालते ही सबसे पहला आदेश मंदिर और मस्जिदों से लाउड स्पीकर उतरवाने और खुले में मांस का विक्रय नहीं किए जाने का किया था। इस फैसले ने कुछ दिनों तक मुख्यमंत्री की कट्टर हिन्दुत्व के रूप में छवि का निर्माण किया था, लेकिन गाहे-बगाहे फिर होने वाले लाउड स्पीकर के शोर और निरंतर खुले में बिकते मांस से सीएम का आदेश धुंधला होता प्रतीत हो रहा है। 

इसी के साथ एक भाजपा कार्यकर्ता की धर्म विशेष के व्यक्ति द्वारा कलाई काटने पर मुख्यमंत्री ने उसके घर पर बुलडोजर चलाने के आदेश देकर एक तरह से जहां यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के जैसे ताबड़तोड़ सख्त फैसले लेने वाली छवि बनाने का प्रयास किया था तो वहीं दूसरी ओर अपराधियों की जमानत निरस्त कराने का भी बड़ा फैसला लिया था। लेकिन प्रदेश में विशेष तौर पर मुख्यमंत्री के गृह नगर उज्जैन में लगातार-बार-बार बिगड़ रही कानून व्यवस्था जरूर सीएम के प्रशासनिक कंट्रोल पर उंगली उठाती है। 

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिवराज सिंह चौहान की छवि से इतर प्रदेश में अपनी इमेज बनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान के बीआरटीएस कॉरिडोर जैसे फैसले को पलटने में भी कोताही नहीं बरती। इतना ही नहीं नौकरशाही पर नकेल कसने और पारदर्शी प्रशासन, भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस नीति के माध्यम से सुशासन का संदेश दिया है। मुख्यमंत्री ने इस दौरान सभी को यह संदेश दिया है कि जनता को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए और जनता की समस्याएं अधिकारी तत्परता के साथ सुलझाने की कोशिश करें। मोहन सरकार ने एसीएस, एडीजी अधिकारियों को अपने कार्यालयों से बाहर निकल कर जमीन पर जाने के आदेश ने प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचाई है। वहीं बार-बार भ्रष्टाचार की शिकायत आने वाले आरटीओ बैरियरों को पूरे प्रदेश में बंद कराकर एक कड़ा संदेश भी दिया है। 

सीएम डॉ. मोहन यादव ने गुना बस हादसे के लिए पूरी नौकरशाही को जिम्मेदार मानते हुए कलेक्टर पर एक्शन लेने के साथ ही अधिकारियों को सस्पेंड कर अपने बुलंद इरादे सभी के सामने जता दिए थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुना जिले के कलेक्टर, एसपी के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और प्रमुख सचिव परिवहन को भी पद से हटा कर समूची नौकरशाही को कड़क लहजे में अपना संदेश दिया था। प्रदेश के किसी सड़क हादसे में सरकार द्वारा अब तक की गई यह सबसे बड़ी कार्रवाई थी। बहरहाल मुख्यमंत्री मोहन यादव फैसले लेने में तो क्विक एक्शन दिखाते हैं लेकिन लॉ एण्ड आर्डर के मामले में जरूर प्रदेश में स्थिति गड़बड़ है। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के सभी सरकारी और निजी महाविद्यालयों में डिजीलॉकर सिस्टम लाकर छात्र-छात्राओं की समास्याओं के निवारण के लिए गंभीर प्रयास किया है। जमीनों के फर्जीवाड़े को रोकने की दिशा में रजिस्ट्री के साथ अब नामांतरण की प्रक्रिया भी शुरू होने जा रही है। इसके साथ ही हाल ही में डॉ. यादव ने भौगोलिक आधार पर जिले, ब्लाक और तहसील के सीमांकन के लिए आयोग गठित कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि आम जनता को परेशानी नहीं होने दी जाएगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री को यह भी कई बार कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि लाड़ली बहना योजना बंद नहीं होगी। 

बहरहाल प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव द्वारा 9 माह के कार्यकाल के दौरान लगभग एक दर्जन चर्चित फैसले लिए गए हैं जो कि कुछ समय तक के लिए चर्चा का विषय जरूर बने हैं लेकिन मील का पत्थर अभी तक एक भी फैसला साबित नहीं हुआ है। प्रदेश की जनता से मुख्यमंत्री का सीधा जुड़ाव महसूस हो ऐसा अभी तक कुछ धरातल पर नजर नहीं आ रहा है। हो सकता है आगे मुख्यमंत्री के दूरगामी फैसले जनता को हार्ट टच कर सकते हैं लेकिन यह कहना यहां पर अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कट्टर हिन्दुत्व, आक्रमक छवि, अफसरों पर नकेल कसने ताबड़ तोड़ कार्यवाही करने सहित नवाचारों के बावजूद भी अभी तक प्रदेश के मुखिया जनता को अपने संबोधन में दिए जाने वाले भाषणों से बांधने और फैसलों के माध्यम से अमिट छाप छोडऩे का भरसक प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन मामा की छवि से इतर अपनी छवि बनाने में कामयाब होने की दौड़ लगाते भी नजर आ रहे हैं। अब यह देखना और अधिक दिलचस्प होगा कि प्रदेश की 6 करोड़ से अधिक जनता के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कब तक चेहते, प्यारे और दुलारे के रूप में रिश्ता कायम कर घर-घर तक पहुंच बनाने में सफल हो पाते हैं।

(लेखक राष्ट्रीय जनादेश के संपादक हैं, इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें

 

CM Mohan Yadav सीएम मोहन यादव MP Government मप्र सरकार मोहन यादव Mohan Yadav गर्भकाल सीएम मोहन यादव का गर्भकाल द सूत्र गर्भकाल मयूर भार्गव