गर्भकाल: संतुलन साधकर आगे बढ़ रही है मोहन सरकार

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 को सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो जाएंगे। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 09 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' लेकर आया है पूरा एनालिसिस... पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर का विशेष आलेख...

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प्रकाश भटनागर
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प्रकाश भटनागर@भोपाल.

मध्यप्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल के नौ महीने पूरे होने को हैं। यह मोहन यादव की सरकार का गर्भकाल जैसा है। यह मोहन सरकार के कामकाज के आंकलन के लिए पर्याप्त समय नहीं है। फिर भी इस समय चक्र को तीन दृष्टिकोण से आसानी से समझा जा सकता है। 

पहला यह कि बीता यह समय अपनी प्रवृत्ति के लिहाज से बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा। इसकी मुख्य वजह यह रही कि डॉ. मोहन यादव के सामने अपने ही पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान की छवि से आगे जाने की चुनौती थी। चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पद तो डॉ. यादव ने पा लिया था, लेकिन क्या वह शिवराज वाला कद भी हासिल कर सकेंगे, पहले ही दिन से यह सवाल उठ रहा था। और आज देखिए। महज नौ महीने की अवधि में उसका उत्तर मिल गया है। डॉ. यादव ने सधे हुए कदमों से इस यात्रा में कई उल्लेखनीय पड़ाव हासिल किए हैं। 

यादव ने शिवराज के भूतकाल से किसी प्रेत छाया की तरह छुटकारा पाने का कोई प्रयास नहीं किया। बल्कि शिवराज की सभी अच्छी नीतियों को डॉ. यादव ने आगे बढ़ाया है और वह भी एक्सटेंशन वाली मुद्रा में। रक्षाबंधन पर लाड़ली बहनों के खाते में ढाई-ढाई सौ रुपए की अतिरिक्त राशि दी गई। इसके साथ ही डॉ.यादव ने इस बात के भी पुख्ता संकेत दे दिए कि लाड़ली बहनों को सरकार मकान के लिए जमीन भी उपलब्ध कराएगी। राज्य की गर्भवती महिलाओं के लिए मुफ्त सोनोग्राफी की सुविधा वाला निर्णय भी बताता है कि मुख्यमंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री के आधी आबादी को पूरी ताकत देने वाले बेहद सफल प्रयोग में नवाचार का उपहार देने वाले दृष्टिकोण का परिचय भी दिया है। 

राज्य में इसी साल 31 अगस्त तक चलाया गया राजस्व महा अभियान-2.0 भी मुख्यमंत्री के अच्छे काम को आगे ले जाने वाली सोच का परिचय देता है। वैसे यह भी सच है कि सोलह साल के मुख्यमंत्री शिवराज की तुलना में महज नौ महीने वाले डॉ. मोहन यादव के कामकाज का तुलनात्मक अध्ययन तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता, फिर भी इस विषय पर चर्चा इसलिए की जा सकती है कि डॉ. मोहन यादव ने इस अल्प समय में ही यह आभास करा दिया है कि वह सोलह साल के इस बड़े फासले को जल्दी ही पाटने का फैसला लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं। 

अब दूसरा मामला... डॉ. मोहन यादव के सामने एक चुनौती यह भी थी कि शिवराज सरकार के समय की कुछ कमियों को वे कैसे दूर कर सकेंगे? खासतौर से तब, जबकि मामला मुख्यमंत्री के रूप में काम के अनुभव की न्यूनता और अफसरशाही की गहरी जड़ों वाला था। इसमें कोई दो राय नहीं कि शिवराज के समय राज्य में ब्यूरोक्रेसी की मनमानी चरम स्तर को छूने लगी थी। चौहान के तीसरे कार्यकाल में तो अफसरों की संस्कृति का वह बड़ा रूप देखने को मिला था, जिसने स्वयं को सत्ता का विकल्प जताने में भी कोई कसर नहीं उठा रखी थी। अगर ऐसे 'छोटे तीर, घाव गंभीर' वाले खतरे से शिवराज ने चौथे कार्यकाल में पूरी तरह निजात पा ली थी, तो डॉ. यादव ने तो ऐसा कुछ होने की कोई संभावना ही शेष रहने नहीं दी है। 

अपने कार्यकाल के पहले महीने में ही नौ कलेक्टर और तीन पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को हटाकर उन्होंने यह संदेश दे दिया कि सरकार केवल उनके साथ है, जो पूरी निष्ठा से सरकार के साथ हैं। कामकाज संभालने के बेहद शुरुआती दौर में डॉ.यादव ने शाजापुर में आम जनता से अभद्र व्यवहार करने वाले आईएएस अफसर के गुरूर की धूल झाड़कर यह जता दिया था कि वह प्रशासनिक कामकाम में सुधार के लिहाज से ठोस नीयत और कड़ी नीति के साथ ही आगे बढ़ रहे हैं। 

इसका असर अब दिख रहा है। भोपाल स्थित राज्य मंत्रालय से लेकर तमाम जिलों के कलेक्टर भवन और अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों में 'आप सरकार की सीधी नजर में हैं' वाला भाव आज सहज ही महसूस किया जा सकता है। हां, इस दिशा में अभी और भी बहुत काम होना है और डॉ. यादव के फैसले बताते हैं कि वह भी इस बात को ही ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं।      

तीसरी बात यह कि डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की सभी 29 लोकसभा सीटों पर धमाकेदार सफलता हासिल की है। खास बात यह कि इस चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के रूप में बड़े फैसले लेने का उन्हें खास अवसर नहीं मिला था। वजह यह कि राज्य में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई थी।  फिर भी अपने कम अवधि के कामकाज से ही डॉ. यादव प्रदेश को 'अच्छे दिनों' वाला विश्वास दिलाने में सफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस आम चुनाव में भाजपा उत्तरप्रदेश जैसे अपने खास गढ़ तक में पस्त हो गई, उसी चुनाव में मध्यप्रदेश की एक-एक सीट पर कमल खिल गया। इस सफलता के और भी फैक्टर हैं। आज भी उनकी लगभग हर बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों का उल्लेख प्रमुख रूप से होता है। स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव ने किसी की लकीर का स्पर्श किए  बगैर अपनी एक अलग लकीर स्थापित करने में भी सफलता हासिल की है। 

 

निरापद कोई भी नहीं है। प्रदेश में कानून व्यवस्था की चुनौती अब भी कायम है। राजधानी भोपाल में दिनदहाड़े डकैती से लेकर छतरपुर में पुलिस थाने पर भीड़ के हमले से शांति के टापू में आशंका की लहरों का संचार होना स्वाभाविक है। यह संतोष का विषय है कि डॉ. मोहन यादव इस दिशा में भी निर्णायक सख्ती के साथ आगे बढ़ रहे हैं। असामाजिक तत्वों के खिलाफ पुलिस के कड़े कदम इस बात का संकेत हैं कि सरकार इस दिशा में भी असरकार तरीके से काम कर रही है। ग्वालियर और जबलपुर में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का डॉ. मोहन यादव का इरादा कानून व्यवस्था के लिहाज से बड़ी अनिवार्यता की पूर्ति की दिशा में अहम कदम कहा जाएगा। 

अभी और भी कई मोर्चे हैं, जिन पर डॉ.मोहन यादव को सुधारवादी कदम उठाने हैं। ये नौ महीने कई मायनों में इस बात की आशा जगाते हैं कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव हर क्षेत्र में सफलता के साथ आगे बढ़ने और प्रदेश को आगे ले जाने की दिशा में अग्रसर हैं। देश का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की धड़कनों को डॉ. मोहन यादव ने जो संतुलित गति प्रदान की है, वह वाकई तारीफ के काबिल है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस खेल में उनके निजी विचार हैं।)

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