गर्भकाल : ‘मन-मोहन’ ‘वो’ नहीं जो मौन रहते हैं, बल्कि मन को ‘मोहने’ वाले ‘वाचाल’ मोहन

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 को सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो जाएंगे। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 09 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' लेकर आया है पूरा एनालिसिस... पढ़िए वरिष्ठ लेखक राजीव खंडेलवाल का विशेष आलेख…

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राजीव खंडेलवाल
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राजीव खंडेलवाल @ बैतूल

9 महीने के गर्भकाल के बाद होने वाले बच्चे का ‘प्रतिबिंब’ पूर्णतः माता-पिता का ही होता है। ठीक इसी प्रकार डॉ. मोहन यादव की सरकार के 9 महीने के रूप को हमें उस (माता-पिता) ‘मतदाता’ (भ्रूण) की नजर से देखना होगा, जिन्होंने चुनाव परिणाम आने के पहले सत्ता विरोधी लहर बताए जाने के बावजूद ऐतिहासिक बहुमत से 9 महीने पूर्व भाजपा सरकार को चुना है। अतः प्रचंड बहुमत के प्रथम नौ महीनों का परिणाम अच्छा ही होना चाहिए और अच्छा ही है।
यद्यपि आम चुनाव का चेहरा डॉ. मोहन यादव नहीं थे, ठीक जैसे लगभग समान परिस्थितियों में बनाए गए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चुनावी चेहरा नहीं थे। तथापि 9 महीने के कार्यकाल में मोहन यादव ने यह अहसास जरूर करा दिया है कि वोट ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी’ के नाम पर भाजपा को मिले, शिवराज के चिर-परिचित चेहरे को देखकर नहीं।
  • गर्भकाल …
  • मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…
  • कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…
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https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/cm-mohan-yadav-garbhkal-the-sootr-survey-6952867

गहरी ‘छाया व छाप’ से बाहर निकलकर स्वयं की ‘पहचान’ बनाई

देश के 9.38% क्षेत्र पर बसे दूसरा सबसे बड़ा राज्य, हृदय प्रदेश ‘मध्य प्रदेश’ के डॉ मोहन यादव, संघ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ‘गूढ़ राजनीति’ के तहत (कुछ लोग उन्हें मनमोहन सिंह के सामान ‘एक्सीडेंटल’ मुख्यमंत्री भी कह सकते हैं) उस शख्सियत के उत्तराधिकारी बने हैं, जिन्होंने लगभग 18 साल मध्य प्रदेश में एक छत्र राज्य किया और मामा बनकर कई कीर्तिमान बनाए जो ‘गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स’ में दर्ज हुए।
ऐसे व्यक्तित्व की वट वृक्ष छाया के नीचे 18 साल की ‘गढ़ी छवि’ के ऊपर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर मात्र 9 महीनों में अपनी अलग ‘स्वतंत्र पहचान’ बना लेना, मेरी नजर में यही सबसे बड़ी उपलब्धि उच्च शिक्षत डॉ मोहन यादव की मुख्यमंत्री के रूप में है। क्योंकि पहचान तो विशिष्ट कार्यों व शैली से ही बनती है, जुमलेबाजी से नहीं। कोई भी शख्सियत जब मुख्यमंत्री मोहन यादव के 9 महीनों के कार्यकाल का आकलन करेगा तो निश्चित रूप से मोहन यादव की तुलना उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से की ही जाएगी l यद्यपि यह एक बेमानी ही होगी कि मात्र 9 महीने के कार्यकाल की तुलना 18 वर्ष से की जाए। फिर भी इस परीक्षा में आप आगे देखेंगे की मोहन यादव सफलता पूर्वक ‘छाप और छाया’ से बाहर निकल कर आगे बढ़ रहे हैं।
‘शिव-राज’ के ‘राज’ में जनता को ‘ना-राज’ न करने की शिव शैली से अलहदा मोहन यादव सधे हुए कदमों से ने जनहित में कड़क फैसले लेते समय नाराजगी की कोई चिंता नहीं की है। मध्य प्रदेश में निशुल्क पीएम श्री एयर एंबुलेंस सेवा का शुभारंभ किया गया। देश में चाचा (पंडित नेहरू), ‘बुलडोजर बाबा’ (योगी) के बाद ‘मामा’ के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पहचान बनाई थी। दो कदम आगे चल कर ‘लाडली बहना योजना’’ के लाभार्थी ‘आशा’ और ‘लीला’ दो बहनों के घर जाकर राखी बांधकर ‘मामा’ की छाया से प्रदेश को बाहर निकाल कर ‘भैया’ के परसेप्शन को बनाने की ओर डॉक्टर मोहन यादव निकल चले हैं। यद्यपि ‘मामा’ ने चुनाव के पूर्व ‘लाडली बहना योजना’ लाकर ‘भैया’ बनने का भी प्रयास किया था।
इसी कड़ी को आगे बढाते एक जननायक की छवि को मजबूत करते हुए मुख्यमंत्री रास्ते चलते अचानक रुक कर एक हाथ ठेले वाली महिला से अमरुद खरीद लेते हैं। जननायक की छवि के चलते उन्होंने लोकसभा की पूरी की पूरी 29 सीटों पर धमाकेदार जीत, जिसमें 1952 से अभी तक की अपराजित (बीच में सिर्फ एक उपचुनाव को छोड़कर) कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट भी शामिल है और उसके बाद हुए छिंदवाड़ा जिले की ही अमरवाड़ा विधानसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की। ‘पर्ची’ से मुख्यमंत्री बने मोहन यादव के शासन में अब ‘पर्ची लिखना और चलना बंद’ हो गया है। (याद कीजिए व्यापम के समय का)

साहसिक, निर्भीक व त्वरित निर्णय लेने की क्षमता

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कदमों पर चलते हुए संघ के स्वयंसेवक और एबीवीपी से आने के कारण अपनी ‘कट्टर हिंदुत्व’ की छवि को और मजबूत करने के लिए उन्होंने कुछ बोल्ड महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जो उन्हें योगी से भी आगे ले जाते हैं। सर्वप्रथम तो मोहन यादव ने महाकाल में रूककर इस मिथक को तोड़ा कि कोई राजा (मुख्यमंत्री) महाकाल (उज्जैनिय) में रात्रि विश्राम करता नहीं है। अन्यथा उसकी कुर्सी चली जाती है। कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलते खुले बाजार में मीट बेचने तथा धार्मिक स्थलों पर ध्वनि प्रदूषण पर प्रतिबंध लगाने से लेकर धार्मिक न्यास व धर्मास्त्र विभाग का मुख्यालय भोपाल से गृह नगर महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थानांतरित करने, भगवान कृष्ण के आराध्य होने से एक सेवक होकर कृष्ण पथ (राम गमन पथ समान) निर्माण करने जैसे निर्णय लिए। जन्माष्टमी के पर्व को जिस प्रकार सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन दिया गया, यह भी अपने आप में ‘‘हिंदुत्व’’ के साथ स्वयं को खड़ा करने का मोहन यादव का एक बड़ा कदम है।
गौ-वंश की रक्षा के लिए मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024 प्रावधान किया गया है, जिसके तहत अब 7 साल की सजा का प्रावधान है। रानी दुर्गावती व अवंती बाई के विषयो को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कर भारतीय संस्कृति के प्रति अपने समर्पण को दृष्टिगोचर किया। चंदेरी को पवित्र नगरी घोषित की जाएगी के साथ उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा ‘‘देश में रहना है तो राम-कृष्ण की जय करना होगा’’।
मध्य प्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बन गया जहां ‘‘साइबर तहसील’’ को पूरे प्रदेश में लागू करने की व्यवस्था शुरू की गई है, जिसके तहत किसी भी संपत्ति की रजिस्ट्री होते ही तत्काल नामांतरण हो जाएगा। पुलिस ट्रेनिंग में ‘‘साइन लैंग्वेज’’ शुरू कर दिव्यांगों को नई आवाज देने वाला देश का पहला राज्य मध्य प्रदेश मोहन यादव द्वारा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अंतर्गत लिए गए निर्णय से बना। मोटे अनाज के उत्पादन पर 10 रू प्रति किलो अनाज देने वाला मध्य प्रदेश शायद पहला राज्य है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की छवि कभी भी एक त्वरित दबंग निर्णय लेने की नहीं रही है। डॉ. मोहन यादव ने शिवराज सिंह के कारण बनी प्रदेश की इस छवि को तोड़ा है। विवादित पटवारी परीक्षा कांड होने के बावजूद मुख्यमंत्री ने पटवारी भर्ती शुरू की। भोपाल का बीआरटीएस कॉरिडोर खत्म करने का निर्णय लिया, जिसकी अनुपयोगिता कई समय पूर्व शिवराज सिंह सरकार के समय ही सिद्ध हो चुकी थी। एक बहुत छोटा सा लेकिन 52 साल पुराने वीआईपी कल्चर के नियम को समाप्त कर दिया, जहां सरकार मंत्रियों के आयकर भर्ती थी। आज ही मुख्यमंत्री ने प्रदेश के संभाग व जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करने के लिए रिटायर्ड एसीएस मनोज श्रीवास्तव के कमान में परिसीमन आयोग का गठन करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। शपथ ग्रहण करते ही शिवराज सिंह के निकट नौकरशाहों का स्थानांतरण प्रथम अवसर पर कर मोहन यादव ने अपने शासन की दशा व दिशा को इंगित कर दिया था।

अफसर शाही के ‘घोड़े’ पर सवार ‘घुड़सवार’ मोहन

पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी और वीरेंद्र कुमार सकलेचा के काफी समय बाद शायद यह मौका आया है, जब अफसर शाही बेलगाम, निरंकुश न होकर उन पर जनप्रतिनिधि का संवैधानिक अंकुश कार्य रूप में परिणत होते दिख रहा है। तथापि इस दिशा में आगे और कदम उठाने की आवश्यकता भी है। मतलब कार्यपालिका और विधायिका अपनी अपनी सीमाओं में रहकर प्रशासन और शासन चला रहे हैं। नौकरशाह द्वारा अपने कार्यों के प्रति लापरवाही व घटनाओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के लिए मोहन यादव, शिवराज सिंह से ज्यादा ‘‘कड़क’’ शासक सिद्ध हुए हैं, जब दोषी अक्षम लापरवाह अफसरों के विरुद्ध विरुद्ध कार्रवाई करने में लेश मात्र भी संकोच या समय नहीं लिया।

गलतियां व कमियां शासन चलाने का अभिन्न व अविभाज्य अंग है

दिन-रात, सुख-दुख, अंधेरा-उजेला की तरह किसी भी शासन की उपलब्धियां के साथ कमियां व गलतियां भी होती ही हैं। जब किसी भी सरकार या व्यक्ति का आकलन किया जाता है, तो उनकी उपलब्धियां का बखान तो होता ही है। परन्तु उनकी कमियों को ओर भी जनता का ध्यान आकर्षित किया जाना आवश्यक है। ताकि वह व्यक्ति उन गलतियों, को सुधार कर, कमियों को दूर कर और सफलता प्राप्त कर सफल जन नायक बन सकें।
शिवराज सिंह के जमाने में न्यूज़ चैनल की  सुर्खियों में मध्य प्रदेश की अजब-गजब के रूप में प्रसिद्ध  छवि को मोहन यादव तोड़ नहीं पाये, जहां एक मंत्री (रामनिवास रावत) को एक ही दिन में दो बार मंत्री पद की शपथ लेनी पड़ गई। हालांकि इसके लिए मोहन यादव कदापि जिम्मेदार नहीं थे। विगत दिवस उज्जैन में हुई सार्वजनिक रूप से महिला की शील भंग की घटना निश्चित रूप से प्रदेश के लिए एक धब्बा है, परन्तु इसके लिए मोहन सरकार से ज्यादा वहां के नागरिक जिम्मेदार है, जहां हमारी नागरिक और मानवीय संवेदनाएं खत्म होती जा रही दिख रही है। एक व्यक्ति कैसे बलात्कार को मोबाइल में वीडियो रिकॉर्डिंग कर वायरल कर सकता है? और उस शैतान से महिला को बचाने के लिए वह कुछ भी प्रयास नहीं करता है। वहां से गुजरने वाले लोग भी शायद घटना को अनदेखा कर देते हैं? मामले का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने कड़ी कार्रवाई करने की निर्देश दिए है।
इसी तरह एक वर्ष पूर्व इसी समय (6 सितम्बर 2023) उज्जैन में दिन दहाड़े सड़क के किनारे बलात्कार से पीड़ित महिला लोगों से सहायता की भीख मांग रही थी, लेकिन तब भी नागरिक, मानवीय और नागरिक कर्तव्य का बोध नहीं करा पाये, बल्कि शर्मसार किया और कुछ लोगों ने तो वीडियो बनाकर वायरल भी किया। मोहन यादव की असफलता और कमजोरी इस रूप में भी दिख रही है कि वे न तो अभी तक मंत्रियों को उनकी इच्छा के अनुरूप स्टाफ उपलब्ध करा पाए और मानसून प्रारंभ होने के पहले जो स्थानांतरण नीति लागू होनी चाहिए थी, वह भी अभी तक नहीं बन पाई है।

आगे और काम करने की जरूरत

अंत में जिस प्रकार इस कोई भी व्यक्तित्व पूर्ण नहीं होता है, आखरी सांस तक कुछ न कुछ सीखने की, करने की प्रवृत्ति होती है। ठीक वैसे ही मोहन सरकार को ‘‘मील का पत्थर’’ बनने के लिए अभी आगे बहुत से कदम उठाने होंगे। मध्य प्रदेश जिस पर पूर्व से ही लगभग 3रू82 लाख करोड रुपए से अधिक का कर्जा है, अभी तक के इतिहास में मोहन सरकार वित्तीय वर्ष 24-25 के लिए अभी तक का सबसे बड़ा कर्जा रू. 88450 करोड अतिरिक्त लेने जा रही है, जिसे कम करना मोहन सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहेगी?
महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण के अपराधों के मामलों में मध्य प्रदेश का देश में शीर्ष में तीसरा स्थान है, जो चिंताजनक है। तथापि मोहन सरकार ने इस दिशा कुछ कठोर कदम अवश्य उठाए हैं, जिस कारण से पिछले 6 महीने में महिलाओं के अपराधों सहित गंभीर अपराधों में राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार कमी आई है। देश में लागू किए गए नए आपराधिक कानून के अंतर्गत महिलाओं बच्चों के मामले की जांच महिला ऑफिसर ही कर सकती है, जिनकी संख्या प्रदेश में बहुत कम है। उनकी संख्या बढ़ाए जाने की तुरंत आवश्यकता हैै। वैसे किसी भी जन प्रिय शासक के लिए जनता के बीच जन प्रिय बने रहने के लिए जनहित में जनोपियोगी काम करने के असीमित व अंतहीन क्षेत्र व अवसर हमेशा बने रहते हैं।
उपसंहार।
अंत में 9 महीने के गर्भ के पूर्ण विकसित होने के बाद डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में आप अपने प्रदेश की एक अच्छे भविष्य की आशा निश्चित रूप से रख सकते हैं, क्योंकि कहा भी गया है। ‘‘पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’’।

राजीव खंडेलवाल वरिष्ठ लेखक, कर सलाहकार एवं बैतूल सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।

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