गर्भकाल : शिवराज के चार कार्यकाल के काम को एक ही पारी से पाटने में जुटे मोहन

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 यानी आज सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो रहे हैं। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 9 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' ने किया है पूरा एनालिसिस, पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजय गुप्ता का विशेष आलेख...

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संजय गुप्ता
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संजय गुप्ता @ इंदौर

गर्भकाल एक जीवन की तुलना में बहुत छोटा समय है, औसत उम्र आज भारत में 67 साल है और गर्भकाल केवल नौ माह का होता है, लेकिन गर्भकाल में ही कई शिशु हाथ-पैर चलाने से ही अपने तेवर दिखा देता है कि वह क्या कर सकता है... यही तेवर प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव ने दिखा दिए हैं। तेजी ऐसी दिख रही है कि जो काम शिवराज सिंह चौहान ने चार बार शपथ लेकर अपने कार्यकाल में किए, वह एक ही पारी से करने की ठानी हो।

11 दिसंबर 2023 को जब एक पर्ची से उनका नाम खुला, वह पिछली पंक्ति से एकदम से बड़े दिग्गजों को पछाड़कर आगे आए। यह कई लोगों को आश्चर्यजनक लगा, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह यदि कोई फैसला करते हैं तो यूं ही नहीं करते। यह बात मोहन यादव को लेकर फिर साबित हुई। लोगों को बता दिया गया कि वह ऐसे ही पर्ची पर नाम आने से सीएम नहीं बने, बल्कि इसके लिए उनकी क्षमताओं पर केंद्र स्तर पर हुई बारीक रिसर्च अहम थी। 

योगी सरकार की छवि से हटना था जरूरी

शुरू में मोहन यादव ने योगी सरकार की झलक दिखाई, चाहे बात पहले लाउड स्पीकर हटाने की हो या फिर बुलडोजर चलाने वाली, लेकिन इससे भी जल्द वह उबर गए, क्योंकि वह समझ गए कि किसी की लाइन पर चलकर आगे नहीं बढ़ सकते, इसके लिए खुद की लाइन आगे बढ़ानी होगी। इसके बाद उन्होंने खुद को आगे किया और बोल्ड फैसले लेने शुरू किए। इनसे वरिष्ठ मंत्री तक चौंक रह गए कि यह सीएम ने क्या किया। हर वरिष्ठ मंत्री भी उनके पीछे ही दिख रहा है, जो प्रोटोकाल के हिसाब से भी होना ही चाहिए, वह सरकार के मुखिया हैं और उनका व्यवहार भी मुखिया जैसा ही है, चाहे बात कैबिनेट मीटिंग, सरकार के फैसले हों या फिर ब्यूरोक्रेसी की। 

सीएस को पीछे बैठाकर दिया संदेश

ब्यूरोक्रेसी में मुख्य सचिव जो पहले सीएम के दाएं हाथ पर पास में बैठता थे, वह अब मंत्रियों के पीछे कुर्सी पर हो गए हैं, यह संकेत बहुत है बताने के लिए कि सीएम सबसे आगे, मंत्री उनके साथ और फिर ब्यूरोक्रेसी को उनके पीछे अनुपालन के लिए चलना है, ना कि सरकार चलाना है, जो शिवराज सरकार में तो सोचने में भी नहीं आता था। अधिकारी मनचाहे तरीके काम कर रहे थे।

मोहन को शिवराज की लेतलाली ही पड़ रही भारी

अब चुनौतियों की बात करते हैं, तो शिवराज सरकार की लाड़ली बहना ने बीजेपी को सत्ता तक पहुंचा तो दिया, लेकिन इसके लिए सरकार को अपना पेट काटना पड़ रहा है। यह ना उगलते बन रहा और ना ही निगलते। लाड़ली बहना के चलते कई वर्ग नाराज हो रहे हैं, खासकर युवा। बात चाहे अतिथि शिक्षकों की हो, सरकारी नौकरी में भर्ती की हो या 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण की। ऐसे कई मुद्दे हैं, जिसमें शिवराज सरकार के समय केवल जुबानी बातें हुई और ठोस कुछ नहीं हुआ। ये मामले मोहन के लिए बड़ी चुनौती हैं।

अभी भी सख्त और तेज फैसले लेने होंगे

मोहन ने अपने काम की तेजी तो दिखा दी है, लेकिन अभी भी सख्त और तेज फैसले लेने की जरूरत है, खासकर रोजगार स्तर पर। रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव अच्छी पहल है, लेकिन देखना होगा कि यह करार और बातें धरातल पर कितनी आती हैं? इसके लिए मोहन सरकार को अपने सही नौ रत्न चुनकर संजीदा जगहों पर बैठाने होंगे, जो फैसला लेने में हिचके नहीं। 
मोहन, भगवान महाकाल की नगरी से आते हैं। प्रभु की उन पर कृपा है। ...तो बस वे अब एक ही ध्येय रखें और जनता का हित करते जाएं। 

(लेखक 'द सूत्र' के विशेष संवाददाता हैं।)  

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