आलोक मेहता @ नई दिल्ली
पौराणिक कथा में भी यह सन्देश रहा है कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। इसलिए मध्य प्रदेश में लम्बे अर्से के बाद आए नए नेतृत्व मुख्यमंत्री मोहन यादव के नौ महीने के कार्यकलाप को उदारता और सकारात्मक ढंग से देखना उचित लगता है। फिर केंद्र और प्रदेश के अनुभवी नेताओं के साथ बेहतर संबंधों, सलाह और दो तीन पीढ़ी की जनता की जमीनी समस्याओं को जानने वाले मोहन यादव ने एक नया उत्साह और विश्वास तो पैदा किया है।
- गर्भकाल …
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संभव है एक हद तक दूर बैठे और कुछ सुने पढ़े जाने के कारण मेरी राय से कुछ लोग सहमत न हों, जो लोकतंत्र में सबका अधिकार है। लेकिन मैंने लगभग पांच दशकों में कांग्रेस, जनता पार्टी, फिर भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों के कामकाज और राजनीति, प्रशासन, सामाजिक आर्थिक बदलाव को देखा और समझा है। इसलिए यह कह सकता हूं कि कम समय और सीमाओं के बावजूद मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में विकास का रथ तेजी से दौड़ता दिख रहा है। गर्भ काल न कहकर यदि नवजात बालक के बहुत जल्दी खिलखिलाने, पाँव चलने और दांत निकलने की प्रक्रिया जैसी तुलना सही होगी।
सत्ता के सन्दर्भ में यह स्मरण रखना जरूरी है कि त्रेता, द्वापर युग में भी सबको खुश करना या देखना संभव नहीं हुआ। उज्जयिनी के सांदीपनी आश्रम में शिक्षित श्रीकृष्णजी के आलोचक ही नहीं निंदक भी रहे थे। फिर मोहन यादव तो विक्रम ( विश्वविद्यालय ) की ऊँची शिक्षा-दीक्षा के साथ छात्र राजनीति से संघर्ष के बाद प्रदेश और पार्टी में अपने कार्यों, संबंधों के बल पर शीर्ष स्थानों पर पहुंचे हैं। मेरी नजर में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में उनके उठाए गए कदमों, घोषणाओं और रोजगार के नए अवसरों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता देना बड़ी आशा जगाता है। एक समय था, जब कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री मुझ जैसे पत्रकार तक से कहते थे कि काम करने से क्या होता है, लालू यादव भी तो बिहार में वर्षों से राज करते हैं।
उन वर्षों में सड़कों की हालत इतनी खराब थी कि भोपाल से उज्जैन कार से जाने पर छह सात घंटे लग जाते थे। इसलिए कुछ वर्षों तक मैंने प्रदेश जाना ही बंद कर दिया था। स्थिति में बदलाव होने पर मैंने आउटलुक के अपने कॉलम में भी इस स्थिति और बदलाव पर लिखा था। इसी तरह सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को नाकारा मानकर मात्र 1800 रुपए की मासिक तनख्वाह पर ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थाई शिक्षक रखे जाने की प्रवृत्ति का नुकसान हुआ है। इसलिए हर जिले में अच्छे स्कूल, एक आदर्श कॉलेज, शिक्षा संस्थाओं में पुस्तकालयों को महत्व देने की पहल के दूरगामी लाभ समूर्ण समाज को होगा। इसी तरह अस्पतालों का सुधार, बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती, एयर एम्बुलेंस का प्रावधान लाखों लोगों को लाभान्वित करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई नई शिक्षा नीति, आयुष्मान भारत और कौशल विकास की योजनाओं के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश पहले से कुछ आगे है और मोहन यादव की सरकार, पुराने नए अनुभवी मंत्री, अधिकारी तथा सामाजिक संस्थाएं उन कार्यक्रमों को अधिक सफल बनाकर प्रदेश को सशक्त कर सकती है।
एक समय था, जब भाजपा की अटल सरकार के ही एक केंद्रीय मंत्री कहते थे कि 'उज्जैन में उद्योग धंधों से अधिक भरोसा महाकाल मंदिर ही पार्यप्त है। उनकी कृपा से प्रगति होती रहेगी। मुझे इस तर्क से भी तकलीफ थी। यही नहीं उज्जैन के होने के बावजूद इंदौर पर अधिक ध्यान देने पर श्री प्रकाशचद्र सेठी के कार्यकाल में भी हम लोग शिकायत करते थे। दिग्विजय सिंह की शिक्षा इंदौर में हुई थी, लेकिन उनके राज में उज्जैन भोपाल के रास्तों तक की दशा नहीं सुधरी। हां मोहन यादव ने आने के बाद उज्जैन के लिए कुछ अधिक घोषणाएं कर दी और वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर उज्जैन में उद्योगपतियों का सम्मेलन कर दिया, लेकिन ये उधोग धंधे पूरे प्रदेश के उपयुक्त स्थानों पर लगेंगे। महाकाल मंदिर ही नहीं प्रदेश के अन्य धार्मिक और पर्यटन केंद्रों के विकास, सुविधाओं का विस्तार, हवाई, रेल, सड़क मार्गों की योजनाओं से सर्वांगीण विकास होगा। शिवराज सिंह राज में भी किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में हुए कार्यों को आगे बढ़ाने के कार्यक्रम मोहन यादव सरकार ने बनाए हैं।
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पसंदगी के साथ प्रदेश के नेता भी उनकी सरकार के काम को सफल बनाने में सहयोग देते दिख रहे हैं। चुनौती संसाधनों को जुटाने और अधिकाधिक लोगों को संतुष्ट करने की है और रहेगी। शायद इसीलिए मुख्यमंत्रियों को कम समय में भी प्रशासन में जल्दी-जल्दी बदलाव करने पड़े। वैसे मेरी याददाश्त के हिसाब से शुक्ल, सिंह, कमलनाथ राज के दौरान भी अफसरों के तबादलों या निर्णयों को पलटने के दौर थे। वहीं भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए राष्ट्रीय स्तर से मध्य प्रदेश तक निरंतर निगरानी, कड़ी कार्रवाई, अदालतों से कम समय में सजा के लिए अभियान जरूरी होगा। आंकड़ों के जाल में फंसने के बजाय नेक कल्याणकारी इरादों और सपनों को साकार करने की अपेक्षा के साथ उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी जानी चाहिए।
(लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार एवं पद्मश्री से सम्मानित हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)
जानिए आलोक मेहता के बारे में -
पद्मश्री से सम्मानित आलोक मेहता नई दुनिया, हिंदुस्तान समाचार और साप्ताहिक हिंदुस्तान में काम करने के बाद वॉइस ऑफ जर्मनी में भी रह चुके हैं। भारत लौटने के बाद दिनमान और नवभारत टाइम्स में राजनीतिक संवाददाता के रूप में काम किया। इसके बाद आप नवभारत टाइम्स में संपादक, हिंदुस्तान दिल्ली, दैनिक भास्कर, आउटलुक साप्ताहिक, गवर्नेंस नाउ में संपादक, नई दुनिया, नेशनल दुनिया में प्रधान संपादक और करियर -360 पत्रिका में सलाहकार संपादक रहे हैं।
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