विजयदत्त श्रीधर @ भोपाल
तारीख 11 दिसंबर... मध्यप्रदेश की सोलहवीं विधानसभा में बहुमत प्राप्त भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की पहली बैठक... विधायक दल का नया नेता चुना जाना था, अर्थात मध्यप्रदेश का नया मुख्यमंत्री। पहली कतार में प्रमुख नेता बैठे थे। इस पद के लिए जिनके नाम सुर्खियों में थे। स्वागत-सत्कार-भाषण-आभार आदि औपचारिकताओं के बाद पार्टी आलाकमान के पर्यवेक्षक मनोहरलाल खट्टर नाम घोषित करते हैं डॉ.मोहन यादव का... सर्वथा अप्रत्याशित। वे पिछली कतार में बैठे थे, कार्यकर्ता-भाव से। उन्हें आगे बुलाया गया। औपचारिक रूप से प्रस्ताव और समर्थन की प्रकिया पूरी होती है। साथ ही पीढ़ीगत बदलाव की पटकथा साकार रूप ले लेती है। ऐसे नेता से आशा कुछ अधिक और लीक से हटकर चलने की होती है। इसके संकेत भी मिलने लगे।
पहला प्रसंग मध्यप्रदेश परिसीमन आयोग का। मध्यप्रदेश में इस समय 55 जिले हैं। तीन नए जिले बनने की कतार में हैं। दस संभाग हैं। एक नवंबर 1956 को जब नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया, तब कुल 43 जिले थे। छत्तीसगढ़ तब मध्यप्रदेश का हिस्सा था। सन् 1972 में भोपाल और राजनांदगांव दो नए जिले बने। मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने 1998 में 16 नए जिले बनाए। एक नंवबर 2000 को पृथक छत्तीसगढ़ प्रदेश बनने पर मध्यप्रदेश में 45 और छत्तीसगढ़ में 16 जिले रहे। उमा भारती ने सन् 2003 में तीन नए जिले बनाए। सन् 2008 से 2023 के बीच पांच किश्तों में शिवराज सिंह चौहान ने सात जिलों का नवगठन किया। चम्बल, नर्मदापुरम और शहडोल तीन नए संभाग बने। कुछ जिलों का निर्माण भौगोलिक परिस्थितियों के कारण जरूरी था, परंतु इस कवायद के पीछे प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक मंतव्य रहे हैं। इसलिए अधिकतर जिलों के गठन की घोषणाएं विधानसभा चुनावों के कुछ माह पहले हुईं। यद्यपि ऐसा कोई अध्ययन-सर्वेक्षण सामने नहीं आया है कि नया जिला बनने ने चुनावी जीत-हार में क्या भूमिका निभाई।
अभी नौ सितंबर, 2024 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जिलों, तहसीलों और संभागों की सीमाओं का युक्तियुक्तकरण करने के लिए मध्यप्रदेश परिसीमन आयोग के गठन की घोषणा की है। इस आयोग को मध्यप्रदेश में संभागों, जिलों और तहसीलों का नए सिरे से सीमाकंन करना है। मुख्यालय से दूरी और जनता की सहूलियत इसका प्रमुख आधार होगा। आयोग यह भी देखेगा कि इन प्रशासनिक इकाइयां का आकार अर्थात् भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से असंतुलित नहीं हों। कोई संभाग, जिला या तहसील बहुत बड़े और कोई बहुत छोटे आकार में न हों। नए जिलों के गठन की उठ रही मांगें भी मध्यप्रदेश परिसीमन आयोग की विवेचना में परखी जाएंगी। यह एक व्यावहारिक कदम है, जिसमें आम नागरिक की भी भागीदारी होगी। आयोग का प्रतिवेदन आने पर वह जन साधारण के संज्ञान के लिए प्रकाशित किया जाएगा। उस पर आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। जन सुनवाई का अवसर दिया जाएगा। लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए औचित्य के आधार पर अंतिम निर्णय लिए जाएंगे।
इसके पहले परिसीमन का एक और महत्वपूर्ण कदम मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उठाया। पुलिस थानों का परिसीमन। यह आवश्यकता दीर्घकाल से अनुभव की जा रही थी। अक्सर थानों के बीच सीमा को लेकर विवाद होते रहे हैं। हादसे/वारदातें पीछे रह जाते थे। किस थाने में घटना-दुर्घटना हुई, कौन प्रथम सूचना रपट लिखेगा, इसी पर विवाद चलते। कई बार थानों की सीमा के विवाद अमानवीयता की हद तक चले जाते। फिर, दूरियों का भी प्रश्न रहता। मुख्यमंत्री ने इस विडंबना को महसूस किया। परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश के 22,000 से अधिक पुलिस थानों के परिसीमन का काम पूरा हुआ। जनता को विसंगतियों से मुक्ति मिली।
मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने एक ओर जहां डीजे के कोलाहल पर शोर की सीमा का अंकुश लगाया। मर्यादा में बांधा। वहीं हर एक जिले में पुलिस बैण्ड का गठन करवाया। इसके लिए स्टॉफ दिया और उनका प्रशिक्षण कराया। इस बार उज्जयिनी में महाकाल की सवारी में पुलिस बैण्ड भी शामिल रहा। एक और कदम जनजातीय कला-संस्कृति को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उठाया गया। महाकाल की सवारी में जनजातीय परंपरागत वेषभूषा में नर्तक दल कला की छटा बिखेरते चले।
मध्यप्रदेश की आध्यात्मिक-सांस्कृतिक पर्यटन नीति का प्रभाव दिखने लगा है। उज्जयिनी की जितनी जनसंख्या है, हर सप्ताह उतने लोग धार्मिक यात्रा पर आ रहे हैं। इस पौराणिक नगरी में रोजगार और व्यवसाय की बढ़ोतरी को स्पष्ट देखा जा सकता है। छोटे-मोटे कामकाज से लेकर सितारा होटलों, घरों में बनाए गए अतिथि कक्षों, रेस्तरां और ढाबों, परिवहन के साधनों- हर तरफ काम बढ़ा है, आमदनी बढ़ी है। इस सबके कारण शहर का चेहरा भी बदल रहा है। मध्यप्रदेश की कई धार्मिक नगरियों में यह प्रयोग आकार ले रहा है। नई सरकार की नई यात्रा के ये दिशा संकेत कोई दावा करने की चेष्टा नहीं करते। बस यही संदेश देते हैं- सधे कदम, स्पष्ट दिशा।